यूपी चुनाव में खराब प्रदर्शन का असर बीएसपी चीफ मायावती के राज्यसभा के अगले कार्यकाल पर भी पड़ेगा। अप्रैल 2018 के बाद उनके लिए राज्यसभा का रास्ता लगभग बंद होने जा रहा है।
लेकिन यूपी चुनाव में उनकी पार्टी को सिर्फ 19 सीटें ही मिली हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन ने उनके लिए राज्यसभा के साथ ही विधान परिषद का रास्ता भी बंद कर दिया है। विधान परिषद सदस्य चुने जाने के लिए उन्हें कम से कम 29 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा।
दो अप्रैल 2018 को मायावती सहित यूपी के 10 राज्यसभा सदस्यों की सदस्यता खत्म होगी। इनमें मायावती के साथ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी, एसपी नेता जया बच्चन, किरणमय नंदा, नरेश अग्रवाल और बीजेपी नेता विनय कटियार शामिल हैं। जबकि, 18 मई 2018 को यूपी विधान परिषद की 13 सीटें खाली हो रही हैं। इनमें एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और राजेंद्र चौधरी प्रमुख नाम हैं।
राज्यसभा की राह आसान नहीं
2017 विधानसभा के जो चुनाव परिणाम आए हैं। उसमें 325 सीटें बीजेपी और उनके सहयोगी दलों को मिली हैं, जबकि एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें और बीएसपी को 19 सीटें मिली हैं। इस हिसाब से 2018 के राज्यसभा चुनावों का आंकलन करें तो 2 अप्रैल को राज्यसभा की 10 सीटें खाली होगीं और चुनावी अंकगणित के मुताबिक राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए कम से कम 37 विधायकों का वोट जरूरी होगा। इस हिसाब से बीजेपी अपने 8 नेताओं को तो आसानी से राज्यसभा भेज देगी। नवें नेता को राज्यसभा भेजने के लिए बीजेपी को 8 और विधायकों का जुगाड़ करना होगा।
इसी तरह एसपी सिर्फ एक नेता को राज्यसभा भेजने की स्थिति में होगी और इसके बाद एसपी के पास 10 वोट अतिरिक्त होंगे। अगर एसपी की सहयोगी कांग्रेस के वोट भी जोड़ लें तो इसके पास एक राज्यसभा सीट जीतने के बाद 17 वोट बचेंगे। बीएसपी के पास मात्र 19 विधायक हैं और इन विधायकों के बल पर उनका कोई भी नेता राज्यसभा नहीं पहुंच पाएगा।
विधान परिषद के दरवाजे भी बंद
अपने 19 विधायकों के बल पर बीएसपी का कोई नेता 2018 को रिक्त होने वाली सीटों पर विधान परिषद भी नहीं जा सकता। परिषद की 13 सीटों की चुनावी गणित में एक सीट के लिए कम से कम 29 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा।
हालांकि, विधायकों की संख्या के हिसाब से बीजेपी विधान परिषद की 11 सीटों पर कब्जा कर लेगी और एसपी एक सीट हासिल कर सकेगी। ऐसे में अगले वर्ष राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद मायावती के लिए संसद के ऊपरी सदन और विधान परिषद दोनों की राह मुश्किल हो जाएगी।
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लेकिन यूपी चुनाव में उनकी पार्टी को सिर्फ 19 सीटें ही मिली हैं। वहीं, विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन ने उनके लिए राज्यसभा के साथ ही विधान परिषद का रास्ता भी बंद कर दिया है। विधान परिषद सदस्य चुने जाने के लिए उन्हें कम से कम 29 विधायकों का समर्थन चाहिए होगा।
दो अप्रैल 2018 को मायावती सहित यूपी के 10 राज्यसभा सदस्यों की सदस्यता खत्म होगी। इनमें मायावती के साथ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी, एसपी नेता जया बच्चन, किरणमय नंदा, नरेश अग्रवाल और बीजेपी नेता विनय कटियार शामिल हैं। जबकि, 18 मई 2018 को यूपी विधान परिषद की 13 सीटें खाली हो रही हैं। इनमें एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और राजेंद्र चौधरी प्रमुख नाम हैं।
राज्यसभा की राह आसान नहीं
2017 विधानसभा के जो चुनाव परिणाम आए हैं। उसमें 325 सीटें बीजेपी और उनके सहयोगी दलों को मिली हैं, जबकि एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 54 सीटें और बीएसपी को 19 सीटें मिली हैं। इस हिसाब से 2018 के राज्यसभा चुनावों का आंकलन करें तो 2 अप्रैल को राज्यसभा की 10 सीटें खाली होगीं और चुनावी अंकगणित के मुताबिक राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए कम से कम 37 विधायकों का वोट जरूरी होगा। इस हिसाब से बीजेपी अपने 8 नेताओं को तो आसानी से राज्यसभा भेज देगी। नवें नेता को राज्यसभा भेजने के लिए बीजेपी को 8 और विधायकों का जुगाड़ करना होगा।
इसी तरह एसपी सिर्फ एक नेता को राज्यसभा भेजने की स्थिति में होगी और इसके बाद एसपी के पास 10 वोट अतिरिक्त होंगे। अगर एसपी की सहयोगी कांग्रेस के वोट भी जोड़ लें तो इसके पास एक राज्यसभा सीट जीतने के बाद 17 वोट बचेंगे। बीएसपी के पास मात्र 19 विधायक हैं और इन विधायकों के बल पर उनका कोई भी नेता राज्यसभा नहीं पहुंच पाएगा।
विधान परिषद के दरवाजे भी बंद
अपने 19 विधायकों के बल पर बीएसपी का कोई नेता 2018 को रिक्त होने वाली सीटों पर विधान परिषद भी नहीं जा सकता। परिषद की 13 सीटों की चुनावी गणित में एक सीट के लिए कम से कम 29 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा।
हालांकि, विधायकों की संख्या के हिसाब से बीजेपी विधान परिषद की 11 सीटों पर कब्जा कर लेगी और एसपी एक सीट हासिल कर सकेगी। ऐसे में अगले वर्ष राज्यसभा की सदस्यता समाप्त होने के बाद मायावती के लिए संसद के ऊपरी सदन और विधान परिषद दोनों की राह मुश्किल हो जाएगी।
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