नई दिल्लीः फर्जी हाउस रेंट स्लिप दिखाकर टैक्स बचाने वालों के लिए बुरी खबर है. अक्सर आप परिवार या रिश्तेदारों के जरिए फर्जी रेंट स्लिप दिखाकर एचआरए क्लेम कर लेते थे पर अब से ऐसा नहीं हो पाएगा क्योंकि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट टैक्सपेयर से संबंधित प्रॉपर्टी के वैध किराएदार का सबूत मांग सकता है.
अंग्रेजी अखबार ‘इकनॉमिक टाइम्स की वेबसाइट पर छपी खबर के मुताबिक अब से रेंट रसीद देकर टैक्स छूट लेने वालों को ये सबूत देना होगा कि वो दी गई रसीद के पते पर रहता है और वास्तविक किराएदार है. यानी आईटी विभाग आपसे सबूत मांग सकता है कि जहां के किराए की रसीद आपने दी है, आप वहीं रहते हैं.मकान मालिक के साथ लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट, हाऊसिंग सोसायटी को लिखा गया पत्र, इलेक्ट्रिसिटी या वॉटर बिल आदि भी मांगे जा सकते हैं.इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के नए नियमों ने सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के क्लेम पर विचार करने और जरूरी होने पर उस पर सवाल करने के लिए आकलन अधिकारियों को कुछ स्टैंडर्ड तय कर दिए हैं.अगर अधिकारी को लगता है कि जमा की गई रसीद नकली हैं तो आय की जांच कर रहे अधिकारी गहन जांच कर सकते हैं. अब किराया देने की बात साबित करने का जिम्मा जमा करने वाले पर होगा.फिलहाल एचआरए (हाउस रेंट अलाउंस) छूट के क्या हैं नियम?
दरअसल कोई भी सैलरी क्लास कर्मचारी रेंट रसीद देकर रेंट हाउस अलाउंस का 60 फीसदी तक टैक्स बचा सकता है.विस्तार में समझें तो आईटी एक्ट के सेक्शन 10(13ए) के तहत नौकरीपेशा लोग मकान किराए पर किराया भत्ते (एचआरए) या बेसिक सैलरी के 50 फीसदी (मेट्रो सिटी) या 40 फीसदी (दूसरे शहर) या फिर दिए गए किराए में बेसिक सैलरी का 10 फीसदी कम, इनमें जो भी सबसे कम हो, तक की छूट पा सकते हैं.अभी टैक्स बचाने के लिए केवल किराए की रसीद जमा करनी होती है.
1 लाख सालाना से ज्यादा अगर किराया हो तो मकान मालिक का पैन नंबर देना होता है.
क्यों किया आयकर विभाग ने ये कड़ा फैसला?
दरअसल एंप्लॉयर के द्वारा एचआरए के मामलों को गंभीरता से ना देखने के चलते आईटी विभाग ने ये फैसला किया है. खबर के मुताबिक, आयकर अधिकारी अब दिखाई गई टैक्सेबल इनकम का आंकड़ा मंजूर करते वक्त सबूत मांग सकते हैं. कई बार ऐसा होता है कि परिवार के साथ रहने के बावजूद व्यक्ति फर्जी रेंट स्लिप लगाकर किसी को किराया देने की बात करके एचआरए क्लेम कर लेता है. कुछ मामलों में असल में किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है. कई बार जितना किराया होता है उससे कहीं ज्यादा रेंट रसीद दिखाकर ज्यादा एचआरए क्लेम भी होते हैं, इसी सब पर लगाम लगाने के लिए ये फैसला किया गया है.
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दरअसल कोई भी सैलरी क्लास कर्मचारी रेंट रसीद देकर रेंट हाउस अलाउंस का 60 फीसदी तक टैक्स बचा सकता है.विस्तार में समझें तो आईटी एक्ट के सेक्शन 10(13ए) के तहत नौकरीपेशा लोग मकान किराए पर किराया भत्ते (एचआरए) या बेसिक सैलरी के 50 फीसदी (मेट्रो सिटी) या 40 फीसदी (दूसरे शहर) या फिर दिए गए किराए में बेसिक सैलरी का 10 फीसदी कम, इनमें जो भी सबसे कम हो, तक की छूट पा सकते हैं.अभी टैक्स बचाने के लिए केवल किराए की रसीद जमा करनी होती है.
1 लाख सालाना से ज्यादा अगर किराया हो तो मकान मालिक का पैन नंबर देना होता है.
क्यों किया आयकर विभाग ने ये कड़ा फैसला?
दरअसल एंप्लॉयर के द्वारा एचआरए के मामलों को गंभीरता से ना देखने के चलते आईटी विभाग ने ये फैसला किया है. खबर के मुताबिक, आयकर अधिकारी अब दिखाई गई टैक्सेबल इनकम का आंकड़ा मंजूर करते वक्त सबूत मांग सकते हैं. कई बार ऐसा होता है कि परिवार के साथ रहने के बावजूद व्यक्ति फर्जी रेंट स्लिप लगाकर किसी को किराया देने की बात करके एचआरए क्लेम कर लेता है. कुछ मामलों में असल में किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है. कई बार जितना किराया होता है उससे कहीं ज्यादा रेंट रसीद दिखाकर ज्यादा एचआरए क्लेम भी होते हैं, इसी सब पर लगाम लगाने के लिए ये फैसला किया गया है.
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