UPPSC: आयोग में वर्षो पड़ा रहा पारदर्शिता पर पर्दा, आयोग की खामियां रह-रहकर उजागर होती रहीं

इलाहाबाद :उप्र लोकसेवा आयोग को बिना किसी हस्तक्षेप के कार्य करने की स्वायत्तता हासिल है। इस खूबी का आयोग में जमकर बेजा इस्तेमाल हुआ। नियमों के बजाय आयोग यहां के अफसरों की मनमर्जी से चला। इसीलिए आयोग में वर्षो तक पारदर्शिता पर पर्दा पड़ा रहा।
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद पीसीएस 2015 से प्रारंभिक परीक्षा की आंसर शीट जारी होना शुरू हुआ। उसके बाद से आयोग की खामियां रह-रहकर उजागर हो रही हैं। 1आयोग यानी यूपीपीएससी भले ही नियम कायदों की बात करें, लेकिन हकीकत यही है कि नियमों का धता बताने का कार्य यहां के अफसर ही करते रहे। असल में आयोग ने वर्ष 2001 में आंसर की जारी करने का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। 1यह प्रस्ताव एक प्रतियोगी के हाथ लगने पर उसने हाईकोर्ट ले गया और आंसर शीट जारी करने की मांग की। इसके बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया व पहली आंसर शीट पीसीएस 2015 की जारी हुई। करीब 14 साल तक आयोग में पारदर्शिता पर पर्दा पड़ा रहा। इस व्यवस्था से प्रतियोगियों को यह भी पता चला कि मनमाने ढंग से प्रश्नों के उत्तर रखे गए हैं। जिस पर कई मुकदमे हुए और उनका निर्णय आना अभी शेष है।

इन परीक्षाओं के प्रश्नों पर असर : प्रतियोगी अवनीश पांडेय ने पीसीएस 2011, 2013, 2014, आरओ-एआरओ 2011, पीसीएस जे 2013 के प्रश्नों का गलत उत्तर रखने का मामला न्यायालय के समक्ष रखा है। कोर्ट ने पीसीएस जे 2013 में 11 प्रश्नों के उत्तर बदलने का आदेश दिया। आरओ-एआरओ 2011 में प्रश्नों के गलत उत्तर रखने के कारण तत्कालीन आयोग अध्यक्ष अनिल कुमार यादव को हाईकोर्ट ने तलब किया था यह प्रकरण अब शीर्ष कोर्ट में लंबित है।

मुख्य परीक्षा पर अब भी पड़ा पर्दा : प्रतियोगी लगातार मुख्य परीक्षा की आंसर शीट जारी करने की लंबे समय से मांग कर रहे हैं और आयोग मांग की अनसुनी कर रहा है। असल में मुख्य परीक्षा में 200-200 अंक के दो पेपर होते हैं। जिनका अंक अंतिम चयन में जोड़ा जाता है। प्रतियोगियों का कहना है कि जब प्री परीक्षा का यह हाल है तो मुख्य परीक्षा का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए उसकी आंसर शीट भी जारी की जाए।

मेंस की छाया प्रति भी नहीं मिलती : आयोग आरटीआइ का उपयोग करने पर मुख्य परीक्षा में हुई लिखित परीक्षा की कॉपियों को दिखाने के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन सामान्य अध्ययन की ओएमआर शीट को दिखाने से इन्कार किया जा रहा है। यही नहीं मेंस की कॉपियों की छाया प्रति भी अभ्यर्थियों को नहीं दी जा रही। ज्ञात हो कि आदित्य बंदोपाध्याय एवं सेंटर बोर्ड सेकेंडरी एजूकेशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि अभ्यर्थियों को दो रुपये प्रति पेज की दर लेकर छाया प्रति उपलब्ध कराई जाए, लेकिन आयोग के अफसर अपनी शैली में काम कर रहे हैं।

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