कोर्ट के आदेश का असर , 599 माध्यमिक विद्यालयों के लिए प्रधानाचार्य पदों का साक्षात्कार थमेगा
700 एलडी ग्रेड शिक्षकों का समायोजन अधर में
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : योग्यता को दरकिनार कर सत्ता में पैठ रखने वालों को वैधानिक-संवैधानिक पद दिए जाने की सरकार की प्रवृत्ति ने एक बार फिर माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को अपनी पुरानी स्थिति में धकेल दिया है। हाईकोर्ट द्वारा आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष व दो सदस्यों के कामकाज पर रोक लगाने के बाद बोर्ड में दस हजार से अधिक नियुक्तियां सीधे तौर पर प्रभावित होंगी। इसमें टीजीटी-पीजीटी की आठ हजार से अधिक नियुक्तियां भी हैं। विडंबना है कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के तीन साल बाद भी चयन बोर्ड किसी की नियुक्ति करने में सफल नहीं हो पाया। सत्ता में गहरी पैठ रखने वाले लोग यहां अध्यक्ष और सदस्य बनकर आते रहे जिनके अपने आग्रहों ने बोर्ड को परस्पर हितों का अखाड़ा बना दिया। हालांकि इसकी शुरुआत बसपा शासनकाल में आरपी वर्मा को अध्यक्ष बनाने के साथ ही हो गई थी लेकिन सपा सरकार भी इससे अलग न दिखी। सपा सरकार ने इस पद पर सबसे पहले 5 फरवरी 2013 को देवकीनंदन को अध्यक्ष बनाकर भेजा था लेकिन दिसंबर, 2013 में ही उनका निधन हो गया। उसके बाद आशाराम को कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। उम्मीद थी कि स्थिति सुधरेगी लेकिन और बिगड़ गई। बोर्ड खुलकर खेमों में बंट गया और प्रधानाचार्य पदों के साक्षात्कार की अनियमितताएं शासन तक गूंजी।
परिणाम हुआ कि राज्य सरकार ने आशाराम से कार्यवाहक अध्यक्ष का जिम्मेदारी ले ली और 2 अगस्त 2014 को डा. परशुराम पाल को माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। उनके समय में कार्यो ने गति पकड़ी और टीजीटी-पीजीटी की परीक्षाएं हुईं। इसमें पीजीटी के इतिहास विषय का प्रश्नपत्र रद करने की वजह से उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। डा. परशुराम पाल ने रद हुए प्रधानाचार्य पदों का साक्षात्कार भी शुरू करा दिया लेकिन वह आठ माह ही रह सके। अप्रत्याशित रूप से सरकार ने अप्रैल 2015 में उनसे इस्तीफा ले लिया। उसके बाद ही अनीता यादव को कार्यवाहक अध्यक्ष का प्रभार मिला था जिनके कामकाज पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है। अन्य दो सदस्यों में ललित श्रीवास्तव पहले भी बोर्ड के सदस्य रह चुके थे और हाल ही में ऊंची पहुंच की वजह से उन्हें दोबारा नियुक्ति मिली थी। डा. आशा लता सिंह की योग्यता को लेकर पहले भी बोर्ड में सवाल खड़े हुए थे।
प्रधानाचार्य पदों की भर्ती में सिर्फ एक मंडल बाकी : कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जबकि प्रधानाचार्य पदों में सिर्फ कानपुर मंडल का साक्षात्कार बाकी है। बाकी मंडलों का साक्षात्कार पूरा किया जा चुका है। कानपुर मंडल का साक्षात्कार भी इसी पंद्रह जुलाई से शुरू किया जाना था।
टीजीटी-पीजीटी में आज जारी होना था परिणाम : आठ हजार से अधिक भर्ती वाली इन परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा बोर्ड ने पिछले हफ्ते से ही शुरू की थी। चार विषयों के 129 अभ्यर्थियों ही अब तक सफल घोषित किया गया है। कुछ और विषयों के परिणाम मंगलवार को घोषित किए जाने थे।
700 एलडी ग्रेड शिक्षकों का समायोजन अधर में
राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : योग्यता को दरकिनार कर सत्ता में पैठ रखने वालों को वैधानिक-संवैधानिक पद दिए जाने की सरकार की प्रवृत्ति ने एक बार फिर माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को अपनी पुरानी स्थिति में धकेल दिया है। हाईकोर्ट द्वारा आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष व दो सदस्यों के कामकाज पर रोक लगाने के बाद बोर्ड में दस हजार से अधिक नियुक्तियां सीधे तौर पर प्रभावित होंगी। इसमें टीजीटी-पीजीटी की आठ हजार से अधिक नियुक्तियां भी हैं। विडंबना है कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के तीन साल बाद भी चयन बोर्ड किसी की नियुक्ति करने में सफल नहीं हो पाया। सत्ता में गहरी पैठ रखने वाले लोग यहां अध्यक्ष और सदस्य बनकर आते रहे जिनके अपने आग्रहों ने बोर्ड को परस्पर हितों का अखाड़ा बना दिया। हालांकि इसकी शुरुआत बसपा शासनकाल में आरपी वर्मा को अध्यक्ष बनाने के साथ ही हो गई थी लेकिन सपा सरकार भी इससे अलग न दिखी। सपा सरकार ने इस पद पर सबसे पहले 5 फरवरी 2013 को देवकीनंदन को अध्यक्ष बनाकर भेजा था लेकिन दिसंबर, 2013 में ही उनका निधन हो गया। उसके बाद आशाराम को कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। उम्मीद थी कि स्थिति सुधरेगी लेकिन और बिगड़ गई। बोर्ड खुलकर खेमों में बंट गया और प्रधानाचार्य पदों के साक्षात्कार की अनियमितताएं शासन तक गूंजी।
परिणाम हुआ कि राज्य सरकार ने आशाराम से कार्यवाहक अध्यक्ष का जिम्मेदारी ले ली और 2 अगस्त 2014 को डा. परशुराम पाल को माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। उनके समय में कार्यो ने गति पकड़ी और टीजीटी-पीजीटी की परीक्षाएं हुईं। इसमें पीजीटी के इतिहास विषय का प्रश्नपत्र रद करने की वजह से उन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। डा. परशुराम पाल ने रद हुए प्रधानाचार्य पदों का साक्षात्कार भी शुरू करा दिया लेकिन वह आठ माह ही रह सके। अप्रत्याशित रूप से सरकार ने अप्रैल 2015 में उनसे इस्तीफा ले लिया। उसके बाद ही अनीता यादव को कार्यवाहक अध्यक्ष का प्रभार मिला था जिनके कामकाज पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है। अन्य दो सदस्यों में ललित श्रीवास्तव पहले भी बोर्ड के सदस्य रह चुके थे और हाल ही में ऊंची पहुंच की वजह से उन्हें दोबारा नियुक्ति मिली थी। डा. आशा लता सिंह की योग्यता को लेकर पहले भी बोर्ड में सवाल खड़े हुए थे।
प्रधानाचार्य पदों की भर्ती में सिर्फ एक मंडल बाकी : कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जबकि प्रधानाचार्य पदों में सिर्फ कानपुर मंडल का साक्षात्कार बाकी है। बाकी मंडलों का साक्षात्कार पूरा किया जा चुका है। कानपुर मंडल का साक्षात्कार भी इसी पंद्रह जुलाई से शुरू किया जाना था।
टीजीटी-पीजीटी में आज जारी होना था परिणाम : आठ हजार से अधिक भर्ती वाली इन परीक्षाओं के परिणामों की घोषणा बोर्ड ने पिछले हफ्ते से ही शुरू की थी। चार विषयों के 129 अभ्यर्थियों ही अब तक सफल घोषित किया गया है। कुछ और विषयों के परिणाम मंगलवार को घोषित किए जाने थे।
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