कृपया पूरी पोस्ट पढ़ें.......शिक्षामित्रों का 2 वर्षीय दूरस्थ प्रशिक्षण तथा सहायक अध्यापक पद पर समायोजन : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

शिक्षामित्रों का 2 वर्षीय दूरस्थ प्रशिक्षण तथा सहायक अध्यापक पद पर समायोजन संजीव राघव तथा कुलदीप सिंह द्वारा दायर याचिका 7682/2016 के निर्णय के अधीन......
प्रशिक्षण पर इलाहबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार तथा एन॰सी॰टी॰ई॰ से 28 अप्रैल तक जवाब दाख़िल करने को कहा।
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दोस्तों 14 मार्च 2016 को इलाहबाद उच्च न्यायालय के कोर्ट नम्बर 7 में न्यायमूर्ति पी॰के॰एस॰ बघेल के यहाँ हमारी याचिका 7682/2016 (कुलदीप सिंह व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सरकार व अन्य) पर सुनवाई हुई जो लगभग 43 मिनट तक चली।
बहस के दौरान हमारे अधिवक्ता श्री अरविन्द श्रीवास्तव तथा अशोक दुबे ने कोर्ट को बताया कि शिक्षामित्रों का 2 वर्षीय दूरस्थ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण पूर्ण रूप से अवैध है क्यूँकि एन॰सी॰टी॰ई॰ रेग्युलेशन के appendix 9 के अनुशार एस॰सी॰ई॰आर॰टी॰ को दूरस्थ माध्यम से बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण कराने का अधिकार ही नही है तथा इस प्रकार का प्रशिक्षण केवल किसी National open university या State open university द्वारा ही कराया जा सकता है।
अतः एस॰सी॰ई॰आर॰टी॰ द्वारा दिया गया 2 वर्षीय दूरस्थ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण पूर्ण रूप से अवैध है तथा उक्त दूरस्थ प्रशिक्षण को ही आधार बनाकर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समयोजित कर दिया गया है।
न्यायमूर्ति पी॰के॰एस॰ बघेल ने यह सब सुनकर हैरानी जताते हुए राज्य सरकार के वक़ील से इस बाबत जवाब माँगा जिस पर राज्य सरकार के वक़ील ने सम्बंधित प्रश्न का जवाब देने के बजाय कोर्ट को गुमराह करने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा कि शिक्षामित्रों के दूरस्थ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण को माननीय मुख्य न्यायाधीश की फ़ुल बेंच ने वैध घोषित कर दिया है.... जिसके जवाब में हमारे अधिवक्ता श्री अरविन्द श्रीवास्तव ने कहा कि दूरस्थ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण पर लम्बित याचिका 28004/2011 में जो फ़ैसला फ़ुल बेंच द्वारा दिया गया वह इसलिए दिया गया क्यूँकि इस याचिका में यह तथ्य कोर्ट के सामने प्रस्तुत ही नही किया गया कि जिस संस्था ने शिक्षामित्रों को दूरस्थ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र दिया वह संस्था वास्तव में दूरस्थ माध्यम से बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षिण देने का अधिकार ही नही रखती। अतः यह प्रशिक्षण पूर्ण रूप से अवैध है।
इसके बाद सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट से कहा कि उक्त तथ्य इतने वर्षों के पश्चात कोर्ट के समक्ष रखा गया है अतः यह याचिका delay पर ख़ारिज कर देनी चाहिये जिस पर बघेल साहब ने हमारे अधिवक्ता से जवाब माँगा जिस पर जवाब देते हुए हमारे अधिवक्ता ने कहा कि याचिककर्ता कुलदीप सिंह द्वारा सप्रीमकोर्ट में दायर याचिका पर 8 जनवरी 2016 को सुनवाई के दौरान उक्त तथ्य पर अपनी बात रखते हुए Liberty to approach Highcourt की माँग की जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने याचिककर्ता को इतने समय पश्चात भी अपनी बात कोर्ट के समक्ष रखने का अधिकार दिया है, अतः इतने समय बाद यह तथ्य कोर्ट के समक्ष रखने के आधार पर हमारी याचिका ख़ारिज नही की जा सकती।
सभी पक्ष सुनने के पश्चात के न्यायमूर्ति पी॰के॰एस॰ बघेल ने कहा कि यह अत्यन्त ही गम्भीर मसला है तथा इसे किसी भी रूप से नज़रान्दाज नही किया जा सकता क्यूँकि प्रथम दृष्ट्या यह प्रतीत होता है कि एस॰सी॰ई॰आर॰टी॰ ने अपनी सीमाओं से परे जाकर यह कार्य किया इसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार तथा एन॰सी॰टी॰ई॰ को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाख़िल करने को कहा है इसके बाद कोर्ट ने शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति को याचिका 7682/2016 के अन्तिम निर्णय के अधीन कर दिया।
अब इस मामले पर 28 अप्रैल 2016 को पुनः सुनवाई होगी।

नोट- हमारे पास बहुत ही सीमित संसाधन एवं फ़ण्ड है फिर भी हम पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ बी॰टी॰सी॰ प्रशिक्षुओ के हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। निश्चिन्त रहिए कोई कुछ भी करता रहे परन्तु हम पूर्व की भाँति सीमित संसाधनों में ही सर्वश्रेष्ठ कार्य करते रहेंगे। उम्मीद है कि आप सभी अपना सहयोग एवं विश्वास बनाये रखेंगे।इसी आशा एवं विश्वास के साथ........
आपका अपना....
कुलदीप सिंह

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