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एकेटीयू के टीचर्स कोर्ट की शरण में , कुलपति ने बताए थे 20 हजार शिक्षक फर्जी

नोएडा। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नीकल यूनिवर्सिटी के कुलपति ने इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ा रहे टीचर्स के लिए फैकल्टी एप्टीट्यूड टेस्ट (फैट) के खिलाफ सभी टीचर्स लामबंद हो गए हैं।
उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। जिसमें इस टेस्ट को अवैधानिक बताते हुए अदालत से रोक लगाने की मांग की है। हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है। मंगलवार ग्रीष्मकालीन विशेष खंडपीठ सुनवाई करेगी। गाैरतलब है कि यह टेस्ट 19 जून को प्रदेशभर में होगा।

यूनिवर्सिटी को नहीं है अधिकार

फैट के कानूनी और व्यवहारिक पहलुओं पर बात करें तो एकेटीयू नियोक्ता नहीं है। यूनिवर्सिटी टीचर्स की नियुक्ति नहीं करती है, वेतन नहीं देती है। ऐसे में यूनिवर्सिटी प्रशासन को फैट लागू करने का अधिकार नहीं है। यह तभी संभव है, जब एफिलिएटिड कॉलेजों के प्रबंधन फैट को स्वीकार करे। तकनीकी और प्रबंधन कॉलेजों में पढ़ाने के लिए जरूरी शिक्षकों की योग्यता एआईसीटीई और यूजीसी जैसी संस्थाओं ने तय कर रखी हैं। राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएं पास करके शिक्षक कॉलेजों में पढ़ा रहे हैं। ऐसे में यूनिवर्सिटी फैट जैसी अतिरिक्त परीक्षा का आयोजन कैसे कर सकती है?

हाईकोर्ट में पेंडिंग है एक और याचिका

गौतमबुद्घ नगर की एक सामाजिक संस्था ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में ही एक याचिका करीब महीना भर पहले दायर की थी। संस्था ने सवाल उठाया है कि यूनिवर्सिटी ने शिक्षकों के लिए सेवा नियमावली तय नहीं की है। न्यायालय ने प्रदेश सरकार और यूनिवर्सिटी से जवाब मांगा था। इस याचिका के बाद ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने फैट लागू किया। सवाल उठता है कि जब यूनिवर्सिटी के पास सेवा नियमावली ही नहीं है तो टेस्ट कैसे आयोजित करवाया जा सकता है?

कुलपति ने बताए थे 20 हजार शिक्षक फर्जी

एकेटीयू के कुलपति डॉ. विनय पाठक एक के बाद एक विवाद को जन्म दे रहे हैं। कुलपति ने हाल में यूपी के इंजीनियरिंग कॉलेजों में 20 हजार से ज्यादा शिक्षकों को फर्जी बताया था। ऐसा केवल इस आधार पर कहा गया कि शिक्षकों के पेन मैच नहीं हो पाए थे। अगर शिक्षक फर्जी थे तो कुलपति ने कॉलेज प्रबंधनों पर कर्रवाई क्यों नहीं की?

एससी ने लगाई फटकार


सुप्रीम कोर्ट ने तय कर रखा है कि हर साल 15 मई तक कॉलेजों की मान्यता और सम्बद्धता का नवीनीकरण करना अनिवार्य होगा, लेकिन इस साल ऐसा नहीं किया गया। इस मामले में कोर्ट ने यूनिवर्सिटी को फटकार लगाई है। कोर्ट ने साफ कहा कि हमने आदेश दिया था, सुझाव नहीं दिया था। इस बार इसे एक्सशेपनल केस माना जाएगा।
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