Breaking Posts

Top Post Ad

सपा भुनाना चाहती है शिक्षामित्रों के मुद्दे को , चुनावी मुद्दा बनकर न रह जाये शिक्षामित्रों की नियुक्ति

उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति का मामला आये दिन नई खबर लेकर आता है, कभी उनका धरना प्रदर्शन, तो कभी खून से लिखा गया पत्र तो कभी आत्महत्या की खबर। दरअसल शिक्षामित्रों की नियुक्ति में शुरुआत से विवाद रहा।
मुलायम सिंह ने वोट बैंक के चक्कर में 12वीं पास छात्रों को मामूली से वेतन पर प्राइमरी स्कूलों में तैनाती तो कर दी। लेकिन उनके भविष्य के बारे में नहीं सोचा। हालांकि कुछ लोग उस समय भी आरोप था कि शिक्षामित्रों की तैनाती में जमकर धांधली हुई है और सरकार ने अपने चाहने वालों को ही पद पर काबिज कर दिया है।

लेकिन थोड़े समय बाद धांधली का आरोप ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद यह खेल दोबारा मुलायम के बेटे अखिलेश द्वारा यूपी विधानसभा चुनावों में खेला जाता है। अखिलेश भी पिता की आगे बढ़कर सत्ता मिलने पर शिक्षामित्रों को असिस्टेंड टीचर बनाने का वादा कर बैठते हैं और वोटबैंक बटोर ले उड़ते हैं, जबकि उनको मालूम होता है
कि यह नियुक्ति नियमों से उलट होगी। लेकिन उस वक्त इसकी फिक्र कहां होती है किसी को उनकों तो वोट बैंक हथियाना था। वहीं दूसरी ओर अखिलेश चुनाव जीतकर यूपी की कुर्सी पर काबिज हो जाते हैं। लेकिन शिक्षामित्रों की नियुक्ति को लेकर चुप्पी साध जाते हैं। लेकिन शिक्षक यूनियनों द्वारा दबाव बनाये जाने के लगभग 2 साल बाद इस ओर काम शुरु होता है। इसके बाद जैसा कि मालूम था मामला कोर्ट चला जाता है और धीरे-धीरे अखिलेश सरकार के 5 साल पूरे हो चलते हैं।

दोबारा चुनाव आने को हैं, अब फिर से इस मुद्दे को सपा भुनाना चाहती है। शायद इसीलिए शिक्षामित्रों के केस को कोर्ट में मजबूती से सरकार की ओर से नहीं रखा गया और हुआ यूं कि सुप्रीम कोर्ट से शिक्षा मित्रों की असिस्टेंट टीचर के तौर पर नियुक्ति रद करने के फैसले पर रोक बरकरार रखा। इससे पहले पिछले साल 7 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बगैर टीचर एलिजबिलिटी टेस्ट (TET) पास किए 1.72 लाख शिक्षा मित्रों को बतौर असिस्टेंट टीचर नियुक्त करने के यूपी सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। हालांकि इस फैसले के खिलाफ शिक्षामित्रों ने खूब हंगामा किया। कई शिक्षक संगठनों ने खून से लिखे पत्र लिखे तो कई शिक्षामित्रों ने आत्महत्या तक कर ली। इसके बाद शिक्षामित्रों का एक दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिला।


वहीं उस समय की शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी ने मंत्रालय से कुछ छूट देकर कुछ शिक्षामित्रों को राहत भी दी। लेकिन ज्यादातर पर अब भी फैसला होना बाकी है। शिक्षामित्रों के कई संगठन अब भी आंदोलन-प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं और इस आंदोलन में समाजवादी पार्टी के नेता जमकर अपनी राजनीति को रंग दे रहे हैं। आज हालात यह हैं कि शिक्षामित्रों सरकारों के आगे मांगों को रखते हुए 10 वर्ष से ज्यादा का समय हो गया है। लेकिन सरकारें हैं कि शिक्षामित्रों का उपयोग केवल वोटबैंक भर के लिए करती आयी हैं।
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines

No comments:

Post a Comment

Facebook