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भर्तियों का भ्रष्टाचार: सरकार ने युवाओं में नया. विश्वास पैदा करने की. शुरुआत की है लेकिन,. उसके आगे कई बड़ी चुनौतियां हैं

विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में हुई भर्तियों के भ्रष्टाचार की जांच का आदेश देकर युवाओं के दर्द पर मरहम लगाने की कोशिश की है।
सपा सरकार में नियुक्तियों में हुई मनमानी, अनियमितता और पक्षपात से युवा काफी आहत थे। इसे देखते हुए ही भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में भी भर्तियों की जांच कराने का वादा किया था। योगी ने न सिर्फ युवाओं की उम्मीदें पूरी की हैं बल्कि सरकार की मंशा भी सामने रखी है कि भर्तियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पूर्व की सरकार ने इससे उलट आचरण किया था और ऐसे लोगों को संरक्षण हासिल हुआ था जो नियुक्तियों में गड़बड़ियों के आरोपी थे। आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव जैसे कई लोगों को तमाम आरोपों के बावजूद पद पर बनाए रखा गया। अब सीबीआइ जांच में ऐसे लोगों के लिए बचाव का रास्ता खोज पाना मुश्किल होगा और यदि उन पर शिकंजा कसा तो तत्कालीन समय के कई नेता भी दायरे में आ सकते हैं।
नियुक्तियों में भ्रष्टाचार पूरे युवा समाज में कुंठा और अवसाद पैदा करता है। यह विडंबना ही है कि पूर्व सरकार में ऐसी कोई भर्ती नहीं रही जिसको लेकर विवाद न खड़ा हुआ हो। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में साढ़े पांच सौ से अधिक मुकदमों का दायर होना इस बात का प्रमाण है कि युवाओं में पूरी प्रक्रिया के प्रति किस हद तक अविश्वास था। सांविधानिक पदों पर अयोग्य लोगों की नियुक्तियों ने कोढ़ में खाज का काम किया। आश्चर्य की बात है कि सपा सरकार अपने पूरे कार्यकाल के दौरान उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में सदस्यों के पूरे पद न भर सकी। 35 हजार पुलिसकर्मियों और चार हजार दारोगाओं की नियुक्ति का भी यही हाल रहा। अब सरकार ने युवाओं में नया विश्वास पैदा करने की शुरुआत की है लेकिन, उसके आगे कई बड़ी चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो आयोग और भर्ती बोर्ड में ईमानदार लोगों की नियुक्ति की है, जो युवाओं के बीच अपने प्रति भरोसा कायम कर सकें।

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