शिक्षकों के पदावनत पर रोक: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की वृहदपीठ के फैसले पर लगाई रोक

इलाहाबाद : प्रदेश के माध्यमिक विद्यालयों में प्रोन्नति पाने वाले शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनके पदावनत होने का खतरा फिलहाल टल गया है।
असल में माध्यमिक कालेजों में प्रोन्नति और सीधी भर्ती से रिक्त पदों को एक साथ उसी वर्ष भरे जाने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल विशेष अनुमति याचिका पर सर्वोच्च अदालत ने ऐसे शिक्षकों को पदावनत करने पर रोक लगा दी है, जो हाईकोर्ट के निर्णय से पूर्व प्रोन्नति पा चुके हैं।

ज्ञात हो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के पांच जजों की वृहदपीठ ने मई 2017 में फैसला दिया था कि यदि प्रोन्नति कोटे के पद पर योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलता है तो उस पद को उसी वर्ष सीधी भर्ती के लिए अधियाचित कर दिया जाएगा। ऐसे पद को भविष्य के लिए रिक्त नहीं रखा जा सकता है। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने फैसले के इस हिस्से पर रोक लगाते हुए पक्षकारों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा गया कि वृहदपीठ के फैसले से ऐसे शिक्षक प्रभावित होंगे, जिनको पूर्व से रिक्त चले आ रहे पद पर अर्हता प्राप्त होने के बाद प्रोन्नति दी गई है। उन्हें पदावनत नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पूरे निर्णय को चुनौती दी गई है। याचीगण की ओर से हाईकोर्ट के अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आर भानुपती की पीठ के समक्ष पक्ष रखा। पांच जजों की पीठ के समक्ष रईसुलहसन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के तीन जजों की पूर्ण की ओर से दिए निर्णय को चुनौती दी गई थी। पूर्णपीठ ने कहा था कि यदि प्रोन्नति कोटे के तहत भरा जाना वाला पद योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलने पर रिक्त रह जाता है तो उसे आगे के वर्षो में योग्य अभ्यर्थी मिलने पर भरा जा सकता है। एक जज ने रईसुलहसन के फैसले को गलत मानते हुए इसका रिफरेंस भेजा था। वृहद पीठ ने पूर्णपीठ के फैसले को पलट दिया। पूर्णपीठ ने कहा कि प्रोन्नति कोटे के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता है। जिस वर्ष रिक्ति सृजित हुई है उसी वर्ष यदि वह नहीं भरा जाता है तो सीधी भर्ती के लिए आयोग को अधियाचन भेजना होगा।

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