शून्य जनपद की ओर से दाख़िल याचिकाओं के सम्बंध में
⚫️ शून्य जनपद की ओर से दाख़िल 2 नयी याचिकाएँ आज सुनवाई हेतु
लगीं थीं जिसमें ज़िला वरीयता के नियम 14(1)(a) को रद्द कराने की माँग की
गयी है।
⚫️ आज सुबह कोर्ट नम्बर 2 में इन याचिकाओं पर सुनवाई हुई
जिसमें कोर्ट ने मुकदमा सुने बिना ही इन याचिकाओं को पुरानी याचिकाओं के
साथ कनेक्ट कर दिया। इन्ही याचिकाओं में शून्य जनपद के अभ्यर्थीयों को याची
बनाया गया है।
⚫️ उपरोक्त दोनो याचिकाओं पर शून्य जनपद की ओर से अधिवक्ता श्री हिमांशु राघव जी ने बहस की।
👉 यदि नियुक्त अध्यापकों की ओर से बेहतर पैरवी जारी रही तब
ऐसी अवस्था में ज़िला वरीयता के नियम से नियुक्त हो चुके किसी भी शिक्षक की
नौकरी जाने की सम्भावना लगभग शून्य है।अब यदि नियम रद्द कराने की याचिका
दाख़िल करने वालों के ख़्वाब के विषय में एक बार कल्पना करते हुए मान भी
लिया जाए कि तुम्हारी याचिकाएँ अलाऊ हो गयी- तुम जीत गए और नियम रद्द हो
गया..... अब आगे क्या होगा ?
👉 ऐसी कल्पना के अनुसार जो अध्यापक वर्षों से कार्य कर रहे
हैं उनकी नौकरी चली जाएगी और अगर राज्य सरकार के पास नई छात्र संख्या के
अनुसार रिक्तियाँ होंगी तब नए नियम से उन पदों पर लिखित परीक्षा से भर्ती
होगी जिसमें BTC, बी॰एड तथा अन्य अभ्यर्थी प्रतिभाग करेंगे....
ऊपर जो बताया गया वह विपक्षियों की कल्पना का शिखर है.... #अब प्रश्न उठता है कि याची बने लोगों को क्या मिला या क्या मिलेगा ?
🔴 उत्तर आप सभी समझ ही चुके हैं..... याची लाभ का तो प्रश्न ही नही उठता भाई।
◼️ स्क्रीन शॉट ले लीजिए.. नियुक्ति प्राप्त कर चुके शिक्षकों की नौकरी कोई छू भी नही पायेगा..
वैसे आज तो शून्य के याचिओ की ओर से श्री हिमांशु राघव जी ने
बहस की... हो सकता है कि वरिष्ठ अधिवक्ता परिहार साहब कहीं बिज़ी रहे
होंगे।