प्रयागराज : उप्र लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 के बीच हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच सवालों के घेरे में है। जांच में लगी टीम छह माह से नेतृत्व विहीन तो है ही मुख्यालय से अग्रिम कार्रवाई के लिए कोई निर्देश भी नहीं आया है।
पीसीएस 2015 समेत चार प्रमुख भर्तियों की जांच ही 14 माह में पूरी नहीं हो सकी है जबकि 586 भर्तियों की जांच होनी है। सीबीआइ की टीम ने यूपीपीएससी में 31 मार्च 2018 को जब प्रवेश किया था तो अभ्यर्थियों में आस जगी थी कि पांच से छह माह में इसके नतीजे सामने आ जाएंगे। लेकिन, पांच मई 2018 को पहली एफआइआर दर्ज होते ही जांच ठिठक गई। इस बीच 11 हजार अभ्यर्थियों की शिकायतें तक दर्ज हो चुकी थीं। 19 जून 2018 को एक बार फिर सीबीआइ ने तेजी दिखाई और अपर निजी सचिव यानी एपीएस भर्ती 2010 की जांच के लिए उप्र शासन से पत्रचार क्या किया, सीबीआई टीम का व्यवहार ही बदल गया। टीम लगातार ढीली होती गई। और तो और 17 नवंबर को टीम लीडर राजीव रंजन की प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद से अब तक जांच दल को नया नेतृत्व ही नहीं मिल सका। हालांकि इसके दो माह पहले से ही राजीव रंजन को इस जांच से हटाकर दूसरी बड़ी जिम्मेदारी दे दी गई थी। इस परिस्थिति से भर्तियों में मनमानी करने वालों की बांछें खिली हैं। जिन पर बड़ी कार्रवाई की संभावना थी उन्हे बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है तो गड़बड़ी के असल सूत्रधार सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
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