टीईटी 2017 की परीक्षा को हजारों अभ्यर्थियों की ओर से कुल 316 याचिकाएं दाखिल करते हुए चुनौती दी गई थी। इन याचिकाओं में कहा गया था कि परीक्षा के बाद जारी की गई उत्तरमाला में दिए कई जवाब या तो गलत हैं अथवा कुछ प्रश्नों के एक से अधिक जवाब सही हैं। कुछ ऐसे प्रश्न भी पूछे गए थे जो सिलेबस के बाहर से थे। .
याचिकाओं में इसे एनसीटीई के गाइडलाइंस का पूरी तरह उल्लंघन बताया गया था। मामले पर विस्तृत सुनवाई करने के पश्चात एकल पीठ ने 6 मार्च 2018 को पारित आदेश में 14 प्रश्नों को गलत, आउट ऑफ सिलेबस व एक से अधिक विकल्पों का सही होना पाते हुए, इन्हें हटाकर पुनर्मूल्यांकन के आदेश दिये। .
एकल पीठ के उक्त आदेश को सरकार ने दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष अपील दाखिल कर चुनौती दी। परंतु सरकार की ओर से दाखिल अपील में सभी 316 याचिकाओं के याचियों को प्रतिवादी न बनाते हुए, मात्र एक याचिका के याचियों को प्रतिवादी बनाया गया। हालांकि दो सदस्यीय खंडपीठ ने सरकार की अपील पर एकल पीठ के निर्णय में संशोधन करते हुए, हटाए जाने वाले प्रश्नों की संख्या को कम कर दिया। .
जिसके बाद 316 याचिकाओं के कुछ याचियों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने दो सदस्यीय खंडपीठ के संशोधित आदेश को खारिज करते हुए, सभी याचियों को सुनवाई के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। .
शीर्ष अदालत के आदेश पर सोमवार को हुई सुनवाई में न्यायालय ने सरकार से पूछा कि उसने सभी 316 याचिकाओं में अपील क्यों नहीं दाखिल की। क्या उसने एकल पीठ के 6 मार्च 2018 केनिर्णय को स्वीकार कर लिया है। .
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जिसके बाद 316 याचिकाओं के कुछ याचियों ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने दो सदस्यीय खंडपीठ के संशोधित आदेश को खारिज करते हुए, सभी याचियों को सुनवाई के लिए वापस हाईकोर्ट भेज दिया। .
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