गड़बड़ियों ने गिराई भर्ती संस्थाओं की साख
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का विवादों से पुराना नाता
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और लोक सेवा आयोग में भी विश्वसनीयता का संकट
राज्य सरकार के अधीन विभिन्न पदों की भर्ती का बड़ा केंद्र माने जाने वाले इलाहाबाद में परीक्षा संस्थाओं के सामने अब साख का सवाल है। प्रवक्ता परीक्षा में जिस तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को बैकफुट पर आना पड़ा है, उससे जाहिर है कि नियुक्तियों के एक बड़े केंद्र इलाहाबाद में भर्ती संस्थाओं की साख गिर रही है।
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माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का विवादों से पुराना नाता
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और लोक सेवा आयोग में भी विश्वसनीयता का संकट
राज्य सरकार के अधीन विभिन्न पदों की भर्ती का बड़ा केंद्र माने जाने वाले इलाहाबाद में परीक्षा संस्थाओं के सामने अब साख का सवाल है। प्रवक्ता परीक्षा में जिस तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को बैकफुट पर आना पड़ा है, उससे जाहिर है कि नियुक्तियों के एक बड़े केंद्र इलाहाबाद में भर्ती संस्थाओं की साख गिर रही है।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से लेकर उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में परीक्षाओं को लेकर लगातार उठ रहे विवाद भी इसकी पुष्टि करते हैं।
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का तो मानो शुरू से ही विवादों से नाता रहा है। यहां सदस्यों की खींचतान ने कभी स्थितियां सामान्य ही नहीं होने दीं। कई बार तो सदस्यों में मारपीट तक की नौबत आ चुकी है। हाल ही में प्रधानाचार्य पदों के साक्षात्कार रद किए जाने के पीछे भी असली वजह सदस्यों के बीच की कलह ही रही है।
आयोग से जुड़े रहे अधिकारियों की मानें तो इससे पहले कई बार बोर्ड के सदस्यों ने अपने हितों के लिए शासन की परवाह भी नहीं की। अंतत: प्रधानाचार्य के 599 पदों पर नियुक्तियां इंतजार में अटक गईं। हाल ही में बोर्ड ने तेजी से कदम बढ़ाए तो विशेषज्ञों के कमजोर पैनल ने उसे अभ्यर्थियों के निशाने पर ला दिया। टीजीटी में पूछे गए सवाल और उनके उत्तर अभ्यर्थियों की कसौटी पर खरे नहीं हैं और आपत्तियों की भरमार है।
पीजीटी यानी प्रवक्ता पदों की परीक्षा के पहले चरण में ही उसे तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और एक विषय की परीक्षा रद भी करना पड़ी। अभी दूसरे चरण की परीक्षा बाकी है।
कमोबेश ऐसा ही हाल उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का है। पिछले साल तक बीमार हाल में पड़े रहे इस आयोग में सदस्यों की नियुक्ति के रूप में थोड़ी जान आई तो भर्ती की गाड़ी भी पटरी पर आई। हालांकि जल्द परीक्षा कराने के प्रयासों में यहां भी विशेषज्ञता की कमी उजागर हुई। कई सवालों पर अभ्यर्थियों ने आपत्तियां जताई हैं तो कामर्स विषय में ओएमआर शीट की चूक भी सामने आ गई।
आयोग से जुड़े रहे लोग साफ कहते हैं कि काम चलाऊ अधिकारियों के भरोसे भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने से ही इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
इससे पहले लोक सेवा आयोग भी गलत सवालों की वजह से हाईकोर्ट के कटघरे में खड़ा होता रहा है। खाद्य सुरक्षा अधिकारी पद के लिए साक्षात्कार से रोके जाने के मामला अभ्यर्थी हाईकोर्ट ले जा चुके हैं और अदालत ने नियुक्ति पत्र जारी करने पर रोक लगा रखी है। इससे पहले पीसीएस-2013 और 2014 की प्रारंभिक परीक्षा, पीसीएसजे-2013 के गलत सवालों का मामला भी हाईकोर्ट पहुंचा था। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के प्रवक्ता अवनीश पांडेय खुलकर आरोप लगाते हैं कि बोर्ड व आयोग के अधिकारी अभ्यर्थियों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं, इसीलिए तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।हमारे लिए अभ्यर्थियों का हित महत्वपूर्ण है। इसलिए नियुक्तियों में ईमानदारी के साथ पारदर्शिता बरती जा रही है। यदि कुछ गड़बड़ियां हैं तो हम उसकी जिम्मेदारी से नहीं हिचकेंगे
-डा. परशुराम पाल
अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड।
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का तो मानो शुरू से ही विवादों से नाता रहा है। यहां सदस्यों की खींचतान ने कभी स्थितियां सामान्य ही नहीं होने दीं। कई बार तो सदस्यों में मारपीट तक की नौबत आ चुकी है। हाल ही में प्रधानाचार्य पदों के साक्षात्कार रद किए जाने के पीछे भी असली वजह सदस्यों के बीच की कलह ही रही है।
आयोग से जुड़े रहे अधिकारियों की मानें तो इससे पहले कई बार बोर्ड के सदस्यों ने अपने हितों के लिए शासन की परवाह भी नहीं की। अंतत: प्रधानाचार्य के 599 पदों पर नियुक्तियां इंतजार में अटक गईं। हाल ही में बोर्ड ने तेजी से कदम बढ़ाए तो विशेषज्ञों के कमजोर पैनल ने उसे अभ्यर्थियों के निशाने पर ला दिया। टीजीटी में पूछे गए सवाल और उनके उत्तर अभ्यर्थियों की कसौटी पर खरे नहीं हैं और आपत्तियों की भरमार है।
पीजीटी यानी प्रवक्ता पदों की परीक्षा के पहले चरण में ही उसे तमाम आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और एक विषय की परीक्षा रद भी करना पड़ी। अभी दूसरे चरण की परीक्षा बाकी है।
कमोबेश ऐसा ही हाल उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का है। पिछले साल तक बीमार हाल में पड़े रहे इस आयोग में सदस्यों की नियुक्ति के रूप में थोड़ी जान आई तो भर्ती की गाड़ी भी पटरी पर आई। हालांकि जल्द परीक्षा कराने के प्रयासों में यहां भी विशेषज्ञता की कमी उजागर हुई। कई सवालों पर अभ्यर्थियों ने आपत्तियां जताई हैं तो कामर्स विषय में ओएमआर शीट की चूक भी सामने आ गई।
आयोग से जुड़े रहे लोग साफ कहते हैं कि काम चलाऊ अधिकारियों के भरोसे भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने से ही इस प्रकार की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
इससे पहले लोक सेवा आयोग भी गलत सवालों की वजह से हाईकोर्ट के कटघरे में खड़ा होता रहा है। खाद्य सुरक्षा अधिकारी पद के लिए साक्षात्कार से रोके जाने के मामला अभ्यर्थी हाईकोर्ट ले जा चुके हैं और अदालत ने नियुक्ति पत्र जारी करने पर रोक लगा रखी है। इससे पहले पीसीएस-2013 और 2014 की प्रारंभिक परीक्षा, पीसीएसजे-2013 के गलत सवालों का मामला भी हाईकोर्ट पहुंचा था। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के प्रवक्ता अवनीश पांडेय खुलकर आरोप लगाते हैं कि बोर्ड व आयोग के अधिकारी अभ्यर्थियों को लेकर संवेदनशील नहीं हैं, इसीलिए तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।हमारे लिए अभ्यर्थियों का हित महत्वपूर्ण है। इसलिए नियुक्तियों में ईमानदारी के साथ पारदर्शिता बरती जा रही है। यदि कुछ गड़बड़ियां हैं तो हम उसकी जिम्मेदारी से नहीं हिचकेंगे
-डा. परशुराम पाल
अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड।
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