इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की कृषि तकनीकी सहायक संवर्ग-3
भर्ती को लेकर एक और विवाद खड़ा हो गया है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 176
पदों पर अनुसूचित जाति (एससी) के अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। इस भर्ती
में आरक्षण और कटऑफ समेत कई बिंदुओं पर प्रतियोगियों के बढ़ते दबाव के बाद
आयोग के सचिव रिजवानुर्रहमान की ओर से स्पष्टीकरण जारी कर
यह जानकारी दी गई है।
सचिव का कहना है कि अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी नहीं मिलने की स्थिति में शासनादेश के अंतर्गत ऐसा किया गया है, लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि पूर्व की कई भर्तियों में आयोग ने यह प्रक्रिया नहीं अपनाई है। अभ्यर्थी नहीं मिलने की स्थिति में दोबारा विज्ञापन की संस्तुति के साथ पद शासन को वापस कर दिए जाते रहे हैं। प्रतियोगियों ने भी आयोग के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने का फैसला किया है।
आरक्षण तथा वर्गवार पदों की संख्या में हेरफेर के विरोध में भर्ती को पहले से ही हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। इसके बाद कटआफ को लेकर विवाद शुरू हो गया। आयोग की ओर से मई में घोषित रिजल्ट में अनुसूचित जाति के 228 या इससे अधिक अंक पाने वाले अभ्यर्थियों को चयनित किया गया। उन्हें एसएमएस से भी चयन की सूचना दी गई। इसके विपरीत अगस्त में जारी मार्कशीट तथा मेरिट लिस्ट में अनुसूचित जाति का कटऑफ 232 अंक बताया गया। इस तरह से 228 से 231 तक पाने वाले अभ्यर्थी बाहर हो गए। इसके विरोध में आयोग को ज्ञापन सौंपने के साथ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट जाने की भी तैयारी की है। पहले से विवादित इस भर्ती में और दबाव बढ़ने पर शुक्रवार को आयोग की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया गया। उसमें बताया गया है कि अनुसूचित जाति का कटऑफ 232 अंक ही है। अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी नहीं मिले। इसलिए 176 पद पर 232 से 228 अंक प्राप्त करने वाले अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। खास यह कि इतने महत्वपूर्ण निर्णय पर आयोग ने अब तक चुप्पी साधे रखी। सचिव की ओर से यह भी बताया गया है कि कटऑफ मार्क्स पर कई अभ्यर्थी हैं, लेकिन चयन पद के सापेक्ष किया गया है। अभ्यर्थियों का यह भी कहना है कि दूसरे श्रेणी में इस तरह से पद कनवर्ट नहीं किए जा सकते। आयोग ने गड़बड़ी छिपाने के लिए यह सब किया है। ऐसे में अभ्यर्थियों ने आयोग के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट जाने की घोषणा की है।
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सचिव का कहना है कि अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी नहीं मिलने की स्थिति में शासनादेश के अंतर्गत ऐसा किया गया है, लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि पूर्व की कई भर्तियों में आयोग ने यह प्रक्रिया नहीं अपनाई है। अभ्यर्थी नहीं मिलने की स्थिति में दोबारा विज्ञापन की संस्तुति के साथ पद शासन को वापस कर दिए जाते रहे हैं। प्रतियोगियों ने भी आयोग के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने का फैसला किया है।
आरक्षण तथा वर्गवार पदों की संख्या में हेरफेर के विरोध में भर्ती को पहले से ही हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। इसके बाद कटआफ को लेकर विवाद शुरू हो गया। आयोग की ओर से मई में घोषित रिजल्ट में अनुसूचित जाति के 228 या इससे अधिक अंक पाने वाले अभ्यर्थियों को चयनित किया गया। उन्हें एसएमएस से भी चयन की सूचना दी गई। इसके विपरीत अगस्त में जारी मार्कशीट तथा मेरिट लिस्ट में अनुसूचित जाति का कटऑफ 232 अंक बताया गया। इस तरह से 228 से 231 तक पाने वाले अभ्यर्थी बाहर हो गए। इसके विरोध में आयोग को ज्ञापन सौंपने के साथ अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट जाने की भी तैयारी की है। पहले से विवादित इस भर्ती में और दबाव बढ़ने पर शुक्रवार को आयोग की ओर से स्पष्टीकरण जारी किया गया। उसमें बताया गया है कि अनुसूचित जाति का कटऑफ 232 अंक ही है। अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी नहीं मिले। इसलिए 176 पद पर 232 से 228 अंक प्राप्त करने वाले अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। खास यह कि इतने महत्वपूर्ण निर्णय पर आयोग ने अब तक चुप्पी साधे रखी। सचिव की ओर से यह भी बताया गया है कि कटऑफ मार्क्स पर कई अभ्यर्थी हैं, लेकिन चयन पद के सापेक्ष किया गया है। अभ्यर्थियों का यह भी कहना है कि दूसरे श्रेणी में इस तरह से पद कनवर्ट नहीं किए जा सकते। आयोग ने गड़बड़ी छिपाने के लिए यह सब किया है। ऐसे में अभ्यर्थियों ने आयोग के इस फैसले के विरोध में हाईकोर्ट जाने की घोषणा की है।
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