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मैं एक टेट नेता की आत्मा हूँ , मैं बहुत मुश्किल में थी क्योंकि ....... : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

मैं बहुत मुश्किल में थी क्योंकि अगली सुनवायी फिर से सर पर सवार हो गयी थी और अब फिर से वही वकीलों की भारी-भरकम फीस की व्यवस्था करनी थी मुझे,,,अब तो कोई मेरी सुनने वाला था ही नहीं, न किसी ने सुध लेने की जरूरत समझी,,,उड़ती-उड़ती सी खबर सुनी थी की आजकल टेट वाले भैया लोग BSA ऑफिस के बाहर इकट्ठे मिल जाते हैं
इसलिए चल पड़ी उधर ही,,,जाकर देखा तो सच में काफी भीड़ लगी थी और काफी चहल-पहल भी थी,,,लोग ख़ुशी-ख़ुशी अपना काम निपटाने में लगे हुए थे,,कोई डिस्पैच नम्बर लेने के लिये हजार का नोट थामे बाबू के पीछे दौड़ रहा है तो कोई पाँच हजार का बण्डल बनाये वेतन आदेश के लिए चिरौरी कर रहा है,
कोई तो मनचाहा विद्यालय आबंटन करवाने के लिए पूरा 'लक्ष्मी पैकेट' लिए ही खुशामद में चूर है,,,मैं तो हैरान हो उठी यह देखकर की हमारे भाइयों के पास अब वह गरीबी कहीं नहीं दिखायी पड़ रही थी जो अक्सर हियरिंग डेट पर अचानक दिखने लगती थी,,,मैं बहुत खुश थी और लगने लगा था की इस बार मैं आसानी से सब कुछ मैनेज कर लूँगी,,,बस इसी उधेड़बुन में एक भाई को रोका जो अभी-अभी वेतन आदेश के लिए पाँच हजार के नोट सरकारी देवता (क्लर्क) को अर्पण करके आया था, और उससे अपनी व्यथा बतायी,,,मेरी बात सुनने से पहले ही उसने आँखें तरेर कर मुझे घूरना शुरू कर दिया,उसके माथे पर त्योरी चढ़ आयी और नथुने फूलने-पिचकने लगे,,,बहुत ही जहर बुझे शब्दों से उसने फिर विष उगला- ''तुम्हीं लोगों के कारण आज यह दिन देखना पड़ रहा है, तुम लोग घोटालेबाज हो, अरे 60 हजार चयनित हैं तो सबसे 100 रुपये के हिसाब से कितना चन्दा आया होगा,पिछली डेट पर भी तो सब बचाया था उसका क्या हुआ,अरे तुम लोगों ने लूट मचा रखी है लूट,अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना जनता तुम्हें चौराहों पर घसीट कर मारेगी,ये फ़टे-पुराने कपड़े पहनकर दिखाओगी तो क्या हम तुम्हें गरीब मान लेंगे,अरे चलो फूटो अब जो होना था हो चुका, अब तो जस्टिस मिश्रा सब फाइनल कर चुके हैं इसलिए भीख माँगनी बन्द करो",,,,इतना कहते-कहते वह गुस्से से लाल हो चला और मैं डर के मारे थर-थर काँपने लगी,,,मुझे अनदेखा सा करते हुए वह अपने नए साथी को उस बाबू का पता बताने लगा जो पैसे लेकर वेतन आदेश लगा रहा था,,
और मैं,,,
मैं तो जैसे संज्ञाशून्य होकर अंतरिक्ष निहार रही थी की क्या सच में "आज ये दिन" मेरी वजह से ही देखना पड़ रहा है? 'दिन' की परिभाषा क्या है? इन बाबुओं ने इनके लिए कौन से 'दिन' बनाये जो आज ये उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी चढ़ावा चढ़ाने के साथ-साथ उनकी चरण वन्दना भी करते हैं? क्या इन्हीं बाबुओं ने अब तक कोर्ट में इनके लिए पैरवी की? सबसे बड़ा सवाल ये गूँजा कि जो भाई पाँच हजार सिर्फ वेतन आदेश के लिए दे सकता है वह मात्र पाँच सौ के लिए गरीब क्यों बन जाता है,,,इन्हीं तमाम सवालों के झंझावातों में जूझती हुई मैं खाली हाथ और व्यथित हृदय से आँखों में अश्रु लिए वापस मुड़ चली,,,पीछे से आती आवाजें अब भी मेरे कानों में पड़ रही थीं जिनमें अपना वेतन आदेश लगवाने की ख़ुशी साफ़ झलकती थी,,,शायद आप लोग मुझे पहचान ही गए होंगे,मैं एक टेट नेता की आत्मा हूँ।


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