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सुविधाएं तो दूर, प्राथमिक स्कूलों में टॉयलेट तक नहीं

उत्तर प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का नितांत अभाव है। यहां तक कि टॉयलेट तक उपलब्ध नहीं है। बच्चों को स्कूल के बाहर जाना पड़ता है।
कहीं टॉयलेट है तो लड़के-लड़कियों को उसी का इस्तेमाल करना पड़ता है। प्रदेश के स्कूलों की जांच सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित टीम करने पहुंची तो गंभीर अनियमितता सामने आना तय है।
एनजीओ हरिजन महिला की ओर से उत्तर प्रदेश के खिलाफ अवमानना याचिका की मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को जांच सौंपी है। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्तूबर 2012 को छह महीने में पेयजल, शौचालय, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। लेकिन हकीकत यह है कि ग्रामीण इलाके तो दूर बीच, शहर में कई स्कूलों में शौचालय तक नहीं है।
छोटे बच्चों को आधा किमी दूर सिर्फ टॉयलेट के लिए जाना पड़ता है। कहीं लड़कों के टॉयलेट में लड़कियां जाती हैं तो कहीं जान जोखिम में डालकर सड़क पार कर बच्चे टॉयलेट जाते हैं। सबसे खराब हालात कटघर, मिंटो पार्क, मोरी दारागंज और बक्शी बाजार आदि मोहल्ले के प्राथमिक विद्यालयों की है जहां कक्षा एक से पांच तक के बच्चों को 200 मीटर से लेकर आधा किलोमीटर तक ‘उधार के टॉयलेट में जाना पड़ रहा है।
डेढ़ दर्जन स्कूलों में टॉयलेट नहीं है। प्राथमिक विद्यालय दरियाबाद, कटघर, मीरापुर बालक, दरियाबाद कन्या, करेली कन्या, पुराना लूकरगंज, बक्शी बाजार, दारागंज कन्या, मोरी दारागंज, मिंटो पार्क, पीडी टंडन मार्ग, मालवीय नगर और पूर्व माध्यमिक विद्यालय दारागंज कन्या में अपना टॉयलेट नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की जांच के आदेश का स्वागत
इलाहाबाद। प्राथमिक स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं की जांच के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वच्छ वसुंधरा सोसायटी ने स्वागत किया है। सचिव विवेक अग्रवाल ने कहा कि सरकारी स्कूलों में सुविधाओं न होने के कारण 5 से 10 बच्चे भी नहीं है। केवल रजिस्टर में हाजिरी भरकर सरकारी पैसे का गबन हो रहा है।
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