याची राहत , भविष्य और बुनियाद : राहुल पांडे 'अविचल'
मैंने पिछले पांच वर्ष में देखा कि सोशल मीडिया पर तमाम लोगों की टिप्पणियां मेरे विरुद्ध पड़ी होती हैं , कुछ लोग धमकियाँ भी देते हैं लेकिन उनमें से सामने जो भी मिला वह हाथ मिलाकर , हाथ जोड़कर या फिर दुआ
हक़ीक़त में सोशल मीडिया और जमीनी हक़ीक़त में मुझमे बहुत फर्क है ।
किसी को मुझसे सोशल मीडिया पर बहुत शिकायत हो सकती है लेकिन मुलाक़ात के बाद उसे मुझपर नयी सोच को जन्म देना ही पड़ता है ।
यहाँ मुझे अहंकारी भी समझ लिया जा सकता है लेकिन यदि मैं हक़ीक़त में कहूँ कि मै अहंकारी नहीं हूँ तो यह भी अहंकार ही कहा जायेगा ।
वर्ष 2011 के बाद उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा में हुयी सभी भर्तियां सर्वोच्च अदालत के अंतिम निर्णय के आधीन हैं और उसपर संविधान के अवलोक में फैसला हो तो नोटबंदी से भी बड़ी त्रासदी सामने आ सकती है ।
सरकारों का रुझान बीएड के लिए RTE एक्ट लागू होने के बाद बहुत ही नकारात्मक हो गया लेकिन अदालतें बीएड को लेकर गंभीर रहीं ।
अब जो भी मिलता है तो यही पूंछता है कि अंतिम निर्णय में क्या होगा ?
उस वक़्त मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता हूँ कि क्या जवाब दिया जाये ।
RTE एक्ट लागू होने के बाद NCTE नोटिफिकेशन , गाइडलाइन और सेवा नियमावली के नियम बीएड के लिए शिक्षक भर्ती में बाध्यकारी हो गये ।
प्रिंसिपल सेक्रेटरी बेसिक शिक्षा अनिल संत ने बीएड के लिए 72825 भर्ती निकाली परंतु टीईटी परीक्षा धांधली सरकार परिवर्तन और चयन के आधार परिवर्तन ने बड़ा उथल-पुथल किया ।
न्यायाधीशों ने बीएड की अंतिम भर्ती होने के कारण बीएड का साथ दिया ।
प्रथम विज्ञप्ति 72825 भर्ती नियम पर न होने के कारण उसपर स्थगन लगा और न्यायमूर्ति को मुकदमे के अवलोक में विज्ञापन रद्द करना था लेकिन कोर्ट को पता था कि विज्ञापन रद्द करने के बाद सरकार बीएड का विज्ञापन नहीं निकालेगी और तब तक बीटीसी प्रशिक्षुओं का जन्म हो जायेगा और बीएड का भविष्य प्राइमरी से ख़त्म हो जायेगा और एक भी भर्ती न हो पाएगी इसलिए न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन ने सरकार से विज्ञापन वापस कराया और उसका विरोध करने वाले याची कपिल देव की याचिका निष्क्रिय हो गयी और ख़ारिज हो गयी ।
जस्टिस श्री अरुण टंडन ने नया विज्ञापन मंगाया तो सरकार नियमावली से टीईटी मेरिट ख़त्म करके शैक्षिक मेरिट का निर्माण करके उससे नया विज्ञापन लायी ।
उस वक़्त कुछ बीटीसी के लड़कों ने नये विज्ञापन में आवेदन का मौका माँगा तो जस्टिस श्री अरुण टंडन ने कहा कि बीएड की पुराने विज्ञापन की बहाली की मांग वाली याचिका अभी लंबित है अतः बीटीसी को इसमें मौका नहीं मिलेगा और अगले ही सप्ताह में जबकि बीएड वालों की पुराने विज्ञापन की बहाली की मांग वाली याचिका खारिज हुयी लेकिन न्यायमूर्ति ने बीएड का साथ दिया था ।
पुरानी विज्ञप्ति नियम से नहीं थी तो उसको जस्टिस अरुण टंडन द्वारा बहाल नहीं किया गया ।
मुकदमा खंडपीठ गया तो दो जजों की पीठ ने नये विज्ञापन पर स्थगन कर दिया ।
उसी बीच वृहद् पीठ ने NCTE की गाइडलाइन की क्लॉज़ 9 बी की व्याख्या करके चयन में टीईटी अंकों को अनिवार्य कर दिया ।
जस्टिस श्री अशोक भूषण और जस्टिस श्री विपिन सिन्हा की खंडपीठ ने बीएड के नये और पुराने विज्ञापन के बीच के विवाद को निपटाते हुये देखा कि वृहदपीठ टीईटी के अंकों को अनिवार्य कर चुकी थी और जस्टिस श्री अशोक भूषण की पीठ उस आदेश से बंधी हुई थी ।
बीएड के नये विज्ञापन में टीईटी का वेटेज नहीं था इसलिए उसको नहीं बचाया जा सकता था, पुराना विज्ञापन नियम पर नहीं था इसलिए उसे सरकार रद्द कर चुकी थी इस प्रकार बीएड की दोनों विज्ञप्ति समाप्ति की कगार पर थी तो न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने देखा कि दिनांक 31 मार्च 2014 तक बीएड की नियुक्ति की अंतिम तारीख है तो उन्होंने पुराने विज्ञापन पर बहस ही नहीं कराया और उस विज्ञापन को नियमावली के संशोधन 12 पर आया विज्ञापन तथा सर्विस रूल पर सहायक अध्यापक के पद पर आया विज्ञापन बताकर जबरजस्ती बहाल कर दिया ।
न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने कहा कि प्रशिक्षु शिक्षक सिर्फ नाम मात्र है बाकी सब कुछ सहायक अध्यापक की शर्तों पर है ।
जबकि हक़ीक़त में वह विज्ञापन पूर्णतया काल्पनिक और नियम नियमावली आरक्षण सबके विरुद्ध था ।
मगर इन सब विषयो पर हाई कोर्ट जाती तो बीएड को एक भी पद न मिलता क्योंकि उस वक़्त दोनों विज्ञापन गलत थे और यह बात तो जस्टिस श्री अरुण टंडन ने भी खुलेआम अशोक खरे से कही थी अर्थात मामला यदि सुप्रीम कोर्ट जाता और टीईटी की अंकों की अनिवार्यता होती तो दोनों विज्ञापन ख़त्म हो जाते और टीईटी के अंकों की अनिवार्यता ख़त्म होती तो नया विज्ञापन बहाल होता ।
जस्टिस श्री अशोक भूषण ने सोचा था कि सरकार नियम से भर्ती कर देगी और उन्होंने आदेश में 2.7 लाख पद रिक्त भी बताया था । टीईटी मेरिट पर भर्ती हो इसके लिए जस्टिस श्री अशोक भूषण ने अकादमिक अंकों को संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध भी घोषित किया ।
सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और अपनी SLP के पेज नंबर 354 पर विज्ञापन को भी उठाया ।
कपिल देव भी सुप्रीम कोर्ट गये ।
RTE के कारण पद रिक्त देखकर सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के आदेश पर अंतरिम रूप से भर्ती करने का आदेश दे दिया ।
जस्टिस श्री दीपक मिश्रा को मुकदमा मिला तो वे उस आदेश को तमाम तरीके से फॉलो कराने का प्रयास करते रहे ।
दिनांक 2 नवंबर 2015 को सबसे पहले कपिल देव के वकील राकेश द्विवेदी ने याची राहत मांगी थी तब जस्टिस श्री दीपक मिश्रा ने इंकार कर दिया था और फाइनल आर्डर के लिए बहस हेतु चार प्रश्न बना दिया था।
(दिनांक 2 नवंबर 2015 के आदेश का अंश:
Mr. Rakesh Dwivedi , the learned senior counsel , would submit that he represent the set of the people who are qualified as per the prevalent rules and they should have been appointed had the High Court not struck down the Rules as ultra vires .
Ordinarily , we would have dealt with this order making some kind of interim arrangement but we do not intend to get into the same now as we have been apprised that there are huge number of candidates and there will be a confusion . Be that as it may , the main thrust of the matter will be gone into on the next date of hearing .)
इस प्रकार जस्टिस श्री दीपक मिश्रा ने कहा कि मै किसी को राहत देकर नये विवाद को जन्म नहीं दूंगा ,
परंतु अगली तिथि दिनांक 7 दिसंबर 2015 की सुनवाई में शिक्षामित्रों की गर्दन पाकर न्यायमूर्ति कुर्सी पर स्टेट हो गये और जैसे ही राकेश द्विवेदी ने कहा कि शिक्षामित्रों को बाद में सुनें पहले मै चार प्रश्न पर बहस करूँगा तो न्यायमूर्ति ने कहा कि अगली डेट पर सुनूँगा तो राकेश द्विवेदी बोले कि फिर मेरे याची को तब तक के लिए राहत दीजिये तो न्यायमूर्ति मान गये और महाधिवक्ता का गला पकड़कर याची राहत बाँट दी । शिक्षामित्र मामले पर हाई कोर्ट के आर्डर पर स्थगन पाने के लिए महाधिवक्ता ने भी सहमति दे दी ।
(दिनांक 7 दिसंबर 2015 के आदेश का अंश:
They represent approximately 1100 people and some arrangement should be made for them. On being asked , Mr. Vijay Bahadur Singh , learned Advocate General submitted that the state has no objection to offer them appointment on ad hoc basis subject to result of the special leave petitions. )
इस प्रकार यह सुनिश्चित हो गया कि दिनांक 30 नवंबर 2011 की विज्ञप्ति पूर्णतया काल्पनिक थी मगर कोर्ट उसे रद्द नहीं करना चाहती है क्योंकि उसपर नौकरी दे चुकी है ।
इसलिए विरोधियो को राहत मिली तथा साथ में न विरोध करने वाले भी राहत पा गये और दिनांक 26 अप्रैल 2016 तक नये याचियों को स्वीकार किया ।
इस प्रकार अंतिम निर्णय में दिनांक 26 अप्रैल 2016 तक बने याची और पुरानी विज्ञप्ति के चयनितों का एक समान भविष्य है ।
अभी हाल में हाई कोर्ट से 99 हजार लोग मात्र इसलिए अवैध हो गये कि उनके चयन में टीईटी का अंक नहीं जुड़ा है, ये सब भी सुप्रीम कोर्ट पहुँच रहे हैं और पहली सुनवाई इनकी दिनांक 20 जनवरी 2017 को है और मामला बीएड के मुकदमे में टैग होगा ।
इस प्रकार दिनांक 22 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश विशेष रहेगा ।
मेरा बड़ा स्पष्ट मत है कि जस्टिस श्री दीपक मिश्रा पूर्ण न्याय करेंगे ।
यदि गाइडलाइन का क्लॉज़ 9बी बाध्यकारी हुआ तो बीएड का नया विज्ञापन ख़त्म हो जायेगा और पुराने विज्ञापन में जिसका ग्रीवांस होगा वही उसका विरोध कर पायेगा । मेरी चुनौतियाँ बढ़ी हैं लेकिन भविष्य में भी हम कभी रक्षात्मक तो कभी आक्रामक बैटिंग करते रहेंगे ।
परिणाम चाहे जो हो लेकिन मेरे लिए बीएड का हित सर्वोपरि है ।
यदि गाइडलाइन का क्लॉज़ 9बी बाध्यकारी न हुआ तो फिर 99 हजार भर्तियां बच जाएंगी और बीएड वालों का नया विज्ञापन भी बहाल हो जायेगा और पुराने विज्ञापन को कोर्ट बचाना चाहेगी तो नया विज्ञापन बहाल करने के बावजूद मेरे याचियों को राहत देनी होगी ।
मुझ जैसे पुराने विज्ञापन की टीईटी मेरिट के समर्थक का भविष्य पुराने विज्ञापन के विरोध पर ही टिका है ।
यही समय और विधि की विडंबना है, मेरी हालत उस शराबी के समान है जो कि अपने बच्चे के गले पर चाक़ू लगाकर अपने अमीर पिता से शराब पीने का पैसा वसूलता है वृद्ध पिता अपने पोते के प्यार में अपने बेटे को शराब पीने का पैसा देता है ।
मेरा मानना है कि जो ज़माने के साथ नहीं चलेगा जमाना उसको इतना पीछे छोड़ देगा कि वह ज़माने का कभी पीछा नहीं कर पायेगा ।
मुझे लोगों की सोशल मीडिया पर यह चमचमाती पोस्ट नहीं चाहिए कि टीईटी मेरिट के योद्धा को जन्मदिन की शुभकामना ।
मुझे खूब पता है कि कोई इंसान कैसे किसी को भुला देता है , जीवन में बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला है ।
एक मित्र थे जो कि मेरे साथ हर आंदोलन में शामिल होते थे मेरी बड़ी तारीफ करते थे लेकिन जब चयन प्रक्रिया शुरू हुई तो उन्होंने बड़े प्यार से मुझसे कहा कि मै आपका दिल नहीं तोड़ना चाहता हूँ आपका चयन नहीं होगा कृपया कुछ और सोचें।
मैंने कहा कि मै संघर्ष में विश्वास करता हूँ , पराजित व्यक्ति से उसके माँ , बाप भी नफरत करते हैं ।
शायद उनको मेरी यह पोस्ट मिले , पिछले दो वर्ष से मैंने उनको चैन से सोने नहीं दिया है उनको सपने में मेरा चेहरा डराता है क्योंकि मैंने तलवार की धार पर अपनी अलग लड़ाई शुरू की और मात्र एक व्यक्ति साथ था जिसका नाम पूरा उत्तर प्रदेश जानता है और अंत में हम लोग अपराजेय इस जंग के मैदान से विदा लेंगे ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि जल्द मुकदमे की समाप्ति होगी।
पाठकों को साधुवाद ।
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
मैंने पिछले पांच वर्ष में देखा कि सोशल मीडिया पर तमाम लोगों की टिप्पणियां मेरे विरुद्ध पड़ी होती हैं , कुछ लोग धमकियाँ भी देते हैं लेकिन उनमें से सामने जो भी मिला वह हाथ मिलाकर , हाथ जोड़कर या फिर दुआ
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हक़ीक़त में सोशल मीडिया और जमीनी हक़ीक़त में मुझमे बहुत फर्क है ।
किसी को मुझसे सोशल मीडिया पर बहुत शिकायत हो सकती है लेकिन मुलाक़ात के बाद उसे मुझपर नयी सोच को जन्म देना ही पड़ता है ।
यहाँ मुझे अहंकारी भी समझ लिया जा सकता है लेकिन यदि मैं हक़ीक़त में कहूँ कि मै अहंकारी नहीं हूँ तो यह भी अहंकार ही कहा जायेगा ।
वर्ष 2011 के बाद उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा में हुयी सभी भर्तियां सर्वोच्च अदालत के अंतिम निर्णय के आधीन हैं और उसपर संविधान के अवलोक में फैसला हो तो नोटबंदी से भी बड़ी त्रासदी सामने आ सकती है ।
सरकारों का रुझान बीएड के लिए RTE एक्ट लागू होने के बाद बहुत ही नकारात्मक हो गया लेकिन अदालतें बीएड को लेकर गंभीर रहीं ।
अब जो भी मिलता है तो यही पूंछता है कि अंतिम निर्णय में क्या होगा ?
उस वक़्त मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता हूँ कि क्या जवाब दिया जाये ।
RTE एक्ट लागू होने के बाद NCTE नोटिफिकेशन , गाइडलाइन और सेवा नियमावली के नियम बीएड के लिए शिक्षक भर्ती में बाध्यकारी हो गये ।
प्रिंसिपल सेक्रेटरी बेसिक शिक्षा अनिल संत ने बीएड के लिए 72825 भर्ती निकाली परंतु टीईटी परीक्षा धांधली सरकार परिवर्तन और चयन के आधार परिवर्तन ने बड़ा उथल-पुथल किया ।
न्यायाधीशों ने बीएड की अंतिम भर्ती होने के कारण बीएड का साथ दिया ।
प्रथम विज्ञप्ति 72825 भर्ती नियम पर न होने के कारण उसपर स्थगन लगा और न्यायमूर्ति को मुकदमे के अवलोक में विज्ञापन रद्द करना था लेकिन कोर्ट को पता था कि विज्ञापन रद्द करने के बाद सरकार बीएड का विज्ञापन नहीं निकालेगी और तब तक बीटीसी प्रशिक्षुओं का जन्म हो जायेगा और बीएड का भविष्य प्राइमरी से ख़त्म हो जायेगा और एक भी भर्ती न हो पाएगी इसलिए न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन ने सरकार से विज्ञापन वापस कराया और उसका विरोध करने वाले याची कपिल देव की याचिका निष्क्रिय हो गयी और ख़ारिज हो गयी ।
जस्टिस श्री अरुण टंडन ने नया विज्ञापन मंगाया तो सरकार नियमावली से टीईटी मेरिट ख़त्म करके शैक्षिक मेरिट का निर्माण करके उससे नया विज्ञापन लायी ।
उस वक़्त कुछ बीटीसी के लड़कों ने नये विज्ञापन में आवेदन का मौका माँगा तो जस्टिस श्री अरुण टंडन ने कहा कि बीएड की पुराने विज्ञापन की बहाली की मांग वाली याचिका अभी लंबित है अतः बीटीसी को इसमें मौका नहीं मिलेगा और अगले ही सप्ताह में जबकि बीएड वालों की पुराने विज्ञापन की बहाली की मांग वाली याचिका खारिज हुयी लेकिन न्यायमूर्ति ने बीएड का साथ दिया था ।
पुरानी विज्ञप्ति नियम से नहीं थी तो उसको जस्टिस अरुण टंडन द्वारा बहाल नहीं किया गया ।
मुकदमा खंडपीठ गया तो दो जजों की पीठ ने नये विज्ञापन पर स्थगन कर दिया ।
उसी बीच वृहद् पीठ ने NCTE की गाइडलाइन की क्लॉज़ 9 बी की व्याख्या करके चयन में टीईटी अंकों को अनिवार्य कर दिया ।
जस्टिस श्री अशोक भूषण और जस्टिस श्री विपिन सिन्हा की खंडपीठ ने बीएड के नये और पुराने विज्ञापन के बीच के विवाद को निपटाते हुये देखा कि वृहदपीठ टीईटी के अंकों को अनिवार्य कर चुकी थी और जस्टिस श्री अशोक भूषण की पीठ उस आदेश से बंधी हुई थी ।
बीएड के नये विज्ञापन में टीईटी का वेटेज नहीं था इसलिए उसको नहीं बचाया जा सकता था, पुराना विज्ञापन नियम पर नहीं था इसलिए उसे सरकार रद्द कर चुकी थी इस प्रकार बीएड की दोनों विज्ञप्ति समाप्ति की कगार पर थी तो न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने देखा कि दिनांक 31 मार्च 2014 तक बीएड की नियुक्ति की अंतिम तारीख है तो उन्होंने पुराने विज्ञापन पर बहस ही नहीं कराया और उस विज्ञापन को नियमावली के संशोधन 12 पर आया विज्ञापन तथा सर्विस रूल पर सहायक अध्यापक के पद पर आया विज्ञापन बताकर जबरजस्ती बहाल कर दिया ।
न्यायमूर्ति श्री अशोक भूषण ने कहा कि प्रशिक्षु शिक्षक सिर्फ नाम मात्र है बाकी सब कुछ सहायक अध्यापक की शर्तों पर है ।
जबकि हक़ीक़त में वह विज्ञापन पूर्णतया काल्पनिक और नियम नियमावली आरक्षण सबके विरुद्ध था ।
मगर इन सब विषयो पर हाई कोर्ट जाती तो बीएड को एक भी पद न मिलता क्योंकि उस वक़्त दोनों विज्ञापन गलत थे और यह बात तो जस्टिस श्री अरुण टंडन ने भी खुलेआम अशोक खरे से कही थी अर्थात मामला यदि सुप्रीम कोर्ट जाता और टीईटी की अंकों की अनिवार्यता होती तो दोनों विज्ञापन ख़त्म हो जाते और टीईटी के अंकों की अनिवार्यता ख़त्म होती तो नया विज्ञापन बहाल होता ।
जस्टिस श्री अशोक भूषण ने सोचा था कि सरकार नियम से भर्ती कर देगी और उन्होंने आदेश में 2.7 लाख पद रिक्त भी बताया था । टीईटी मेरिट पर भर्ती हो इसके लिए जस्टिस श्री अशोक भूषण ने अकादमिक अंकों को संविधान के अनुच्छेद 14 के विरुद्ध भी घोषित किया ।
सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी और अपनी SLP के पेज नंबर 354 पर विज्ञापन को भी उठाया ।
कपिल देव भी सुप्रीम कोर्ट गये ।
RTE के कारण पद रिक्त देखकर सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के आदेश पर अंतरिम रूप से भर्ती करने का आदेश दे दिया ।
जस्टिस श्री दीपक मिश्रा को मुकदमा मिला तो वे उस आदेश को तमाम तरीके से फॉलो कराने का प्रयास करते रहे ।
दिनांक 2 नवंबर 2015 को सबसे पहले कपिल देव के वकील राकेश द्विवेदी ने याची राहत मांगी थी तब जस्टिस श्री दीपक मिश्रा ने इंकार कर दिया था और फाइनल आर्डर के लिए बहस हेतु चार प्रश्न बना दिया था।
(दिनांक 2 नवंबर 2015 के आदेश का अंश:
Mr. Rakesh Dwivedi , the learned senior counsel , would submit that he represent the set of the people who are qualified as per the prevalent rules and they should have been appointed had the High Court not struck down the Rules as ultra vires .
Ordinarily , we would have dealt with this order making some kind of interim arrangement but we do not intend to get into the same now as we have been apprised that there are huge number of candidates and there will be a confusion . Be that as it may , the main thrust of the matter will be gone into on the next date of hearing .)
इस प्रकार जस्टिस श्री दीपक मिश्रा ने कहा कि मै किसी को राहत देकर नये विवाद को जन्म नहीं दूंगा ,
परंतु अगली तिथि दिनांक 7 दिसंबर 2015 की सुनवाई में शिक्षामित्रों की गर्दन पाकर न्यायमूर्ति कुर्सी पर स्टेट हो गये और जैसे ही राकेश द्विवेदी ने कहा कि शिक्षामित्रों को बाद में सुनें पहले मै चार प्रश्न पर बहस करूँगा तो न्यायमूर्ति ने कहा कि अगली डेट पर सुनूँगा तो राकेश द्विवेदी बोले कि फिर मेरे याची को तब तक के लिए राहत दीजिये तो न्यायमूर्ति मान गये और महाधिवक्ता का गला पकड़कर याची राहत बाँट दी । शिक्षामित्र मामले पर हाई कोर्ट के आर्डर पर स्थगन पाने के लिए महाधिवक्ता ने भी सहमति दे दी ।
(दिनांक 7 दिसंबर 2015 के आदेश का अंश:
They represent approximately 1100 people and some arrangement should be made for them. On being asked , Mr. Vijay Bahadur Singh , learned Advocate General submitted that the state has no objection to offer them appointment on ad hoc basis subject to result of the special leave petitions. )
इस प्रकार यह सुनिश्चित हो गया कि दिनांक 30 नवंबर 2011 की विज्ञप्ति पूर्णतया काल्पनिक थी मगर कोर्ट उसे रद्द नहीं करना चाहती है क्योंकि उसपर नौकरी दे चुकी है ।
इसलिए विरोधियो को राहत मिली तथा साथ में न विरोध करने वाले भी राहत पा गये और दिनांक 26 अप्रैल 2016 तक नये याचियों को स्वीकार किया ।
इस प्रकार अंतिम निर्णय में दिनांक 26 अप्रैल 2016 तक बने याची और पुरानी विज्ञप्ति के चयनितों का एक समान भविष्य है ।
अभी हाल में हाई कोर्ट से 99 हजार लोग मात्र इसलिए अवैध हो गये कि उनके चयन में टीईटी का अंक नहीं जुड़ा है, ये सब भी सुप्रीम कोर्ट पहुँच रहे हैं और पहली सुनवाई इनकी दिनांक 20 जनवरी 2017 को है और मामला बीएड के मुकदमे में टैग होगा ।
इस प्रकार दिनांक 22 फरवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश विशेष रहेगा ।
मेरा बड़ा स्पष्ट मत है कि जस्टिस श्री दीपक मिश्रा पूर्ण न्याय करेंगे ।
यदि गाइडलाइन का क्लॉज़ 9बी बाध्यकारी हुआ तो बीएड का नया विज्ञापन ख़त्म हो जायेगा और पुराने विज्ञापन में जिसका ग्रीवांस होगा वही उसका विरोध कर पायेगा । मेरी चुनौतियाँ बढ़ी हैं लेकिन भविष्य में भी हम कभी रक्षात्मक तो कभी आक्रामक बैटिंग करते रहेंगे ।
परिणाम चाहे जो हो लेकिन मेरे लिए बीएड का हित सर्वोपरि है ।
यदि गाइडलाइन का क्लॉज़ 9बी बाध्यकारी न हुआ तो फिर 99 हजार भर्तियां बच जाएंगी और बीएड वालों का नया विज्ञापन भी बहाल हो जायेगा और पुराने विज्ञापन को कोर्ट बचाना चाहेगी तो नया विज्ञापन बहाल करने के बावजूद मेरे याचियों को राहत देनी होगी ।
मुझ जैसे पुराने विज्ञापन की टीईटी मेरिट के समर्थक का भविष्य पुराने विज्ञापन के विरोध पर ही टिका है ।
यही समय और विधि की विडंबना है, मेरी हालत उस शराबी के समान है जो कि अपने बच्चे के गले पर चाक़ू लगाकर अपने अमीर पिता से शराब पीने का पैसा वसूलता है वृद्ध पिता अपने पोते के प्यार में अपने बेटे को शराब पीने का पैसा देता है ।
मेरा मानना है कि जो ज़माने के साथ नहीं चलेगा जमाना उसको इतना पीछे छोड़ देगा कि वह ज़माने का कभी पीछा नहीं कर पायेगा ।
मुझे लोगों की सोशल मीडिया पर यह चमचमाती पोस्ट नहीं चाहिए कि टीईटी मेरिट के योद्धा को जन्मदिन की शुभकामना ।
मुझे खूब पता है कि कोई इंसान कैसे किसी को भुला देता है , जीवन में बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला है ।
एक मित्र थे जो कि मेरे साथ हर आंदोलन में शामिल होते थे मेरी बड़ी तारीफ करते थे लेकिन जब चयन प्रक्रिया शुरू हुई तो उन्होंने बड़े प्यार से मुझसे कहा कि मै आपका दिल नहीं तोड़ना चाहता हूँ आपका चयन नहीं होगा कृपया कुछ और सोचें।
मैंने कहा कि मै संघर्ष में विश्वास करता हूँ , पराजित व्यक्ति से उसके माँ , बाप भी नफरत करते हैं ।
शायद उनको मेरी यह पोस्ट मिले , पिछले दो वर्ष से मैंने उनको चैन से सोने नहीं दिया है उनको सपने में मेरा चेहरा डराता है क्योंकि मैंने तलवार की धार पर अपनी अलग लड़ाई शुरू की और मात्र एक व्यक्ति साथ था जिसका नाम पूरा उत्तर प्रदेश जानता है और अंत में हम लोग अपराजेय इस जंग के मैदान से विदा लेंगे ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि जल्द मुकदमे की समाप्ति होगी।
पाठकों को साधुवाद ।
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