शिक्षामित्र अवैध समायोजन को बचाने के लिए सरकार और शिक्षा संगठनों की तरफ से अलग-अलग दिये तर्क: Mohd Arshad की कलम से
दोस्तों
पिछली पोस्ट पर हमने आपको शिक्षा मित्र अवैध समायोजन मामले मे एक एसएलपी मे "घरों के चूल्हे न जलने वाली बात को सुप्रीम कोर्ट मे उठाने के संबंध मे लिखा था और यह भी बताया था की अवैध समायोजन को बचाने के लिए सरकार और शिक्षा संगठनों की तरफ से अलग अलग तर्क दिये गए हैं ।
#उत्तर_प्रदेश_शासन_का_तर्क
उत्तर प्रदेश सरकार आरटीई एक्ट के नियमों मे संशोधन का अधिकार रखती है और शिक्षा मित्रों को न्यूनतम योग्यता के मामले मे छूट दे सकती है । सरकार द्वारा इस हेतु "आरटीई एक्ट के तहत नियम " बनाया जिसे नियम 16(क) कहा जाता है ।
#उत्तर_प्रदेश_बेसिक_शिक्षा_परिषद_का_तर्क
बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव श्री संजय सिन्हा द्वारा दायर अनुज्ञा याचिकाओं मे यह तर्क दिया गया है की आज़ादी के पूर्व "बेसिक एडुकेशन एक्ट -1922" मे परिषद को न्यूनतम योग्यता मे छूट देते हुए अन-ट्रेंड टीचर रखने का प्रावधान था । बेसिक एडुकेशन एक्ट -1972 के प्रभाव मे आने के बाद भी उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के पास अन-ट्रेंड टीचर रखने का अधिकार सुरक्षित है । अतः वर्ष 1999 मे संविदा पर रखे गए शिक्षा मित्र अन ट्रेंड टीचर हैं । "बेसिक एडुकेशन एक्ट -1922" के तहत परिषद के यह अधिकार है की वो बेसिक शिक्षा सेवा भर्ती नियमावली -1981 को दरकिनार करते हुए 1922 के एक्ट के अनुपालन मे अन-ट्रेंड टीचर भर्ती करे ।
मज़े की बात यह है की एक ही मुद्दे पर सरकार और परिषद के विचार अलग अलग हैं । यही बेसिक शिक्षा परिषद का तर्क सही माना जाए तो सरकार को आरटीई एक्ट के तहत नियम बनाकर 16(क ) को जोड़ने की क्या ज़रूरत थी ?
वही दूसरी तरफ परिषद अपने की बेसिक शिक्षा एक्ट -1972 तथा उस से बनी नियमावली 1981 को कैसे दरकिनार कर सकती है तथा भारत वर्ष मे आरटीई एक्ट लागू होने के बाद से यह सभी राज्यों पर लागू होने की तिथि से प्रभावी है ऐसे मे परिषद के 1922 के एक्ट का अनुपालन अनिवार्य है या आरटीई एक्ट का अनुपालन अनिवार्य है ।
उपरोक्त दोनों तर्कों को हाइ कोर्ट की वृहद पीठ द्वारा असंवैधानिक बताते हुए खारिज किया जा चुका है । इन तथ्यों को लेकर सरकार और शिक्षा मित्रों की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे देश के सबसे प्रतिष्ठित वकीलों की फौज खड़ी होगी । राम जेठमलानी , हरीश सॉल्वे , चिदम्बरम , राजू राम चन्द्रन और इनके समकक्ष लगभग 2 दर्जन से अधिक सीनियर अधिवक्ता अपीयर होंगे ।
सुप्रीम कोर्ट मे मामले कई आधारों पर निर्णीत होते हैं यदि मामला नियम और कानून पर निर्णीत हुआ तो सरकार और शिक्षा मित्रों के बड़े बड़ेर वकील कोर्ट मे औंधे मुह गिरेंगे और समायोजन रद्द होगा । बी टी सी ट्रेनी वेलफ़ेयर असोसियेशन द्वारा हर मुद्दे की काट निकालते हुए कुल 12 काउंटर फ़ाइल किए गए हैं अवैध समायोजन के खिलाफ पैरवी करने वाली किसी टीम ने कोई काउंटर नही फ़ाइल किया है । यदि 22 फरवरी को अवैध समायोजन मामले की बहस हुई तो सरकार और शिक्षा मित्रों को मुहतोड़ जवाब दिया जाएगा । सीनियर अधिवक्ताओं को केस की ब्रीफिंग का दौर 17 फरवरी से शुरू हो जाएगा । बी टी सी वाले आर्थिक रूप से कमजोर हैं लेकिन कानूनी रूप से उनकी काट किसी के पास नही है ।
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पिछली पोस्ट पर हमने आपको शिक्षा मित्र अवैध समायोजन मामले मे एक एसएलपी मे "घरों के चूल्हे न जलने वाली बात को सुप्रीम कोर्ट मे उठाने के संबंध मे लिखा था और यह भी बताया था की अवैध समायोजन को बचाने के लिए सरकार और शिक्षा संगठनों की तरफ से अलग अलग तर्क दिये गए हैं ।
#उत्तर_प्रदेश_शासन_का_तर्क
उत्तर प्रदेश सरकार आरटीई एक्ट के नियमों मे संशोधन का अधिकार रखती है और शिक्षा मित्रों को न्यूनतम योग्यता के मामले मे छूट दे सकती है । सरकार द्वारा इस हेतु "आरटीई एक्ट के तहत नियम " बनाया जिसे नियम 16(क) कहा जाता है ।
#उत्तर_प्रदेश_बेसिक_शिक्षा_परिषद_का_तर्क
बेसिक शिक्षा परिषद के सचिव श्री संजय सिन्हा द्वारा दायर अनुज्ञा याचिकाओं मे यह तर्क दिया गया है की आज़ादी के पूर्व "बेसिक एडुकेशन एक्ट -1922" मे परिषद को न्यूनतम योग्यता मे छूट देते हुए अन-ट्रेंड टीचर रखने का प्रावधान था । बेसिक एडुकेशन एक्ट -1972 के प्रभाव मे आने के बाद भी उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद के पास अन-ट्रेंड टीचर रखने का अधिकार सुरक्षित है । अतः वर्ष 1999 मे संविदा पर रखे गए शिक्षा मित्र अन ट्रेंड टीचर हैं । "बेसिक एडुकेशन एक्ट -1922" के तहत परिषद के यह अधिकार है की वो बेसिक शिक्षा सेवा भर्ती नियमावली -1981 को दरकिनार करते हुए 1922 के एक्ट के अनुपालन मे अन-ट्रेंड टीचर भर्ती करे ।
मज़े की बात यह है की एक ही मुद्दे पर सरकार और परिषद के विचार अलग अलग हैं । यही बेसिक शिक्षा परिषद का तर्क सही माना जाए तो सरकार को आरटीई एक्ट के तहत नियम बनाकर 16(क ) को जोड़ने की क्या ज़रूरत थी ?
वही दूसरी तरफ परिषद अपने की बेसिक शिक्षा एक्ट -1972 तथा उस से बनी नियमावली 1981 को कैसे दरकिनार कर सकती है तथा भारत वर्ष मे आरटीई एक्ट लागू होने के बाद से यह सभी राज्यों पर लागू होने की तिथि से प्रभावी है ऐसे मे परिषद के 1922 के एक्ट का अनुपालन अनिवार्य है या आरटीई एक्ट का अनुपालन अनिवार्य है ।
उपरोक्त दोनों तर्कों को हाइ कोर्ट की वृहद पीठ द्वारा असंवैधानिक बताते हुए खारिज किया जा चुका है । इन तथ्यों को लेकर सरकार और शिक्षा मित्रों की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे देश के सबसे प्रतिष्ठित वकीलों की फौज खड़ी होगी । राम जेठमलानी , हरीश सॉल्वे , चिदम्बरम , राजू राम चन्द्रन और इनके समकक्ष लगभग 2 दर्जन से अधिक सीनियर अधिवक्ता अपीयर होंगे ।
सुप्रीम कोर्ट मे मामले कई आधारों पर निर्णीत होते हैं यदि मामला नियम और कानून पर निर्णीत हुआ तो सरकार और शिक्षा मित्रों के बड़े बड़ेर वकील कोर्ट मे औंधे मुह गिरेंगे और समायोजन रद्द होगा । बी टी सी ट्रेनी वेलफ़ेयर असोसियेशन द्वारा हर मुद्दे की काट निकालते हुए कुल 12 काउंटर फ़ाइल किए गए हैं अवैध समायोजन के खिलाफ पैरवी करने वाली किसी टीम ने कोई काउंटर नही फ़ाइल किया है । यदि 22 फरवरी को अवैध समायोजन मामले की बहस हुई तो सरकार और शिक्षा मित्रों को मुहतोड़ जवाब दिया जाएगा । सीनियर अधिवक्ताओं को केस की ब्रीफिंग का दौर 17 फरवरी से शुरू हो जाएगा । बी टी सी वाले आर्थिक रूप से कमजोर हैं लेकिन कानूनी रूप से उनकी काट किसी के पास नही है ।
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