मेरी कलम से (मानो न मानो)- 12
प्रिय साथियो , क्रांतिकारी अभिवादन ।
समस्या जीवित समाज की पहचान, संघर्ष समस्या का समाधान, संघर्ष काल उस समाज की सम्मान, और सफलता ही उसका वास्तविक पहचान होती है
शायद ही अतिशयोक्ति हो की जीवन समाप्त हो गया क्योंकि मृत व्यक्ति के पास शायद कोई समस्या नही होती है तभी हम उसे मृत घोषित कर सकते है मेरे विचार से यह यथार्थ है और इस तथ्य की विवेचना करना या तोड़ -मरोड़ करना सामाजिक व न्यायिक रूप से शायद ही तर्कसंगत हो । जीवन की सकारात्मक पक्ष समस्या है और समस्या के परिवर्तित स्वरूप को हम सुख -दुख आदि नामो से समयानुसार जाना पहचाना करते है । हम एक शिक्षा मित्र है इसलिए हमारे किसी बात मे शिक्षा मित्र न हो यह ठीक उसी तरीके से असम्भव है जैसे किसी प्राणि मात्र के पास समस्या न हो और समस्या का एकमात्र समाधान "संघर्ष पूर्ण जीवन " है । समस्या ही शिक्षा मित्र है क्योंकि प्राथमिक शिक्षा की समस्या ने शिक्षा मित्रो को जन्म दिया और शिक्षा मित्रो की समस्या ने संघर्ष को अर्थात शिक्षा मित्र अपने जन्म काल मे भी संघर्ष रत था और आज पूर्ण काल मे भी संघर्षशील है इससे सिद्ध होता है कि आज भी इस प्रदेश का शिक्षा मित्र जीवंत है और अपनी पहचान बनाने व बढाने के लिए प्रयत्नशील है तब के समय मे और आज के समय मे अन्तर बस इतना है कि तब शिक्षक बनने के लिए संघर्ष कर रहा था और आज शिक्षक बने रहने के लिए संघर्ष जारी किए है इस बीच कुछ परिवर्तन जरूर आये कुछ अति समृद्ध और चालाक लोगो ने सफल संघर्ष काल से मुँह चुराना शुरू कर दिया है तो वही कुछ अतिचालाक लोगो ने सफलता दिलाने का छद्म वेश धारण कर संघर्ष के बीच है और शिक्षा मित्रो के मसीहा होने का दावा ठोकते है उनका एक सूत्र है कि जीत जाय तो चना- चबेना ,और न जीते तो क्या लेना -देना । जिनका कोई अतीत नही उनका वर्तमान ऐतिहासिक कैसे हो सकता है ऐसे लोग संघ के साथियो को अंधभक्त ऐसे विशेषण से नवाजने का प्रयास करते है और अपने को जागरूक । उनको यह ज्ञान नही है कि अन्धभक्त वही है जो जागरूक है जो अन्धभक्त नही है वह जागरूक नही है क्योंकि एक जागरूक व्यक्ति कभी भी स्वार्थ परक और पदलोलुप नही हो सकता उसकी नीतियाँ कभी भी विघटनकारी नही हो सकती है यह हमारी अन्धभक्ति ही है कि हमारी एकता की ताकत से दिल्ली और लखनऊ ने पानी माँगा है आज के अति जागरूक तब जागरूक नहीं अन्धभक्ति के समुद्र मे तैरने वालो मे ही थे संघ किसी व्यक्ति का रिश्तेदार या परिवार का नाम नहीं है बल्कि संघ उस समूह के सदस्यो का एकीकृत स्वरूप है जो एक कुव्यवस्था का शिकार हो और परिवर्तन की इच्छा रखता हो । हमारे एक साथी ने अपने ही एक साथी से कहा कि अबकी बार एक ऐसा वकील रखा है जो कोर्ट मे गाजी शाही को धराशायी कर देगा तो उन्होंने पूछा कि शिक्षा मित्रो का सहयोग गाजी शाही को धराशायी करने के लिए नही हिमाँशु और अरशद को धराशायी करने के लिए प्राप्त होता है सोचनीय जिसकी सोच कौम तक सीमित हो वह राष्ट्र को क्या दे सकता है इससे प्रतीत होता है कि प्रदेश की तमाम लोगो की रणनीतियाँ याचिका केन्द्रित न होकर संघ केन्द्रित है इससे शिक्षा मित्रो का भला शायद हो मै यह जानना चाहता हूँ कि हम अन्धभक्ति से सराबोर होकर विधान सभा ,शहीद पार्क का आन्दोलन कर सकते है जेल जा सकते है 28 जनवरी 2014 का विशाल महासम्मेलन कर सकते है 05 अक्टूबर को दिल्ली घेर सकते है तो न्यायिक संघर्ष मे इतना जागरूक कैसे हो जाते है ऐसी कौन सी वस्तु है जो हमे उस व्यक्ति के साथ एकमात्र न्यायालय मे जाने से रोकती है जिसके पीछे हम अन्धभक्ति मे चौदह -पन्द्रह साल चले विद्यालय से सचिवालय तक लड़ने -भिड़ने का इतिहास लिखा एक ताकत की पहचान बनाई व्यवस्था परिवर्तन की ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की और शिक्षक बने तो अन्धभक्ति से जागरूक कैसे हो गये यह समय आपस मे पछाड़ खाने -खिलाने का नही है और न ही 35000/ माह लेकर भागने का है समय है समस्या को पहचाने और एकजुट होकर लड़ने का , जागरूकता आरोप लगाने और संगठन को नीचा दिखाने के लिए है तो आवश्यक नही बल्कि जागरूकता एकता व शिक्षा मित्रो के सम्मान को बचाने के लिए आवश्यक है ।
सावधानियां -
1- भविष्यवाणी करने व सुनने से बचे ।
2- सहयोग से भागे नही सहयोग जरूर करें।
मा0 प्रदेश अध्यक्ष श्री गाजी इमाम आला जी के साथ
आपका
(शिव श्याम मिश्र)
प्रांतीय प्रवक्ता
उ0प्र0 प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ ।
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
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शायद ही अतिशयोक्ति हो की जीवन समाप्त हो गया क्योंकि मृत व्यक्ति के पास शायद कोई समस्या नही होती है तभी हम उसे मृत घोषित कर सकते है मेरे विचार से यह यथार्थ है और इस तथ्य की विवेचना करना या तोड़ -मरोड़ करना सामाजिक व न्यायिक रूप से शायद ही तर्कसंगत हो । जीवन की सकारात्मक पक्ष समस्या है और समस्या के परिवर्तित स्वरूप को हम सुख -दुख आदि नामो से समयानुसार जाना पहचाना करते है । हम एक शिक्षा मित्र है इसलिए हमारे किसी बात मे शिक्षा मित्र न हो यह ठीक उसी तरीके से असम्भव है जैसे किसी प्राणि मात्र के पास समस्या न हो और समस्या का एकमात्र समाधान "संघर्ष पूर्ण जीवन " है । समस्या ही शिक्षा मित्र है क्योंकि प्राथमिक शिक्षा की समस्या ने शिक्षा मित्रो को जन्म दिया और शिक्षा मित्रो की समस्या ने संघर्ष को अर्थात शिक्षा मित्र अपने जन्म काल मे भी संघर्ष रत था और आज पूर्ण काल मे भी संघर्षशील है इससे सिद्ध होता है कि आज भी इस प्रदेश का शिक्षा मित्र जीवंत है और अपनी पहचान बनाने व बढाने के लिए प्रयत्नशील है तब के समय मे और आज के समय मे अन्तर बस इतना है कि तब शिक्षक बनने के लिए संघर्ष कर रहा था और आज शिक्षक बने रहने के लिए संघर्ष जारी किए है इस बीच कुछ परिवर्तन जरूर आये कुछ अति समृद्ध और चालाक लोगो ने सफल संघर्ष काल से मुँह चुराना शुरू कर दिया है तो वही कुछ अतिचालाक लोगो ने सफलता दिलाने का छद्म वेश धारण कर संघर्ष के बीच है और शिक्षा मित्रो के मसीहा होने का दावा ठोकते है उनका एक सूत्र है कि जीत जाय तो चना- चबेना ,और न जीते तो क्या लेना -देना । जिनका कोई अतीत नही उनका वर्तमान ऐतिहासिक कैसे हो सकता है ऐसे लोग संघ के साथियो को अंधभक्त ऐसे विशेषण से नवाजने का प्रयास करते है और अपने को जागरूक । उनको यह ज्ञान नही है कि अन्धभक्त वही है जो जागरूक है जो अन्धभक्त नही है वह जागरूक नही है क्योंकि एक जागरूक व्यक्ति कभी भी स्वार्थ परक और पदलोलुप नही हो सकता उसकी नीतियाँ कभी भी विघटनकारी नही हो सकती है यह हमारी अन्धभक्ति ही है कि हमारी एकता की ताकत से दिल्ली और लखनऊ ने पानी माँगा है आज के अति जागरूक तब जागरूक नहीं अन्धभक्ति के समुद्र मे तैरने वालो मे ही थे संघ किसी व्यक्ति का रिश्तेदार या परिवार का नाम नहीं है बल्कि संघ उस समूह के सदस्यो का एकीकृत स्वरूप है जो एक कुव्यवस्था का शिकार हो और परिवर्तन की इच्छा रखता हो । हमारे एक साथी ने अपने ही एक साथी से कहा कि अबकी बार एक ऐसा वकील रखा है जो कोर्ट मे गाजी शाही को धराशायी कर देगा तो उन्होंने पूछा कि शिक्षा मित्रो का सहयोग गाजी शाही को धराशायी करने के लिए नही हिमाँशु और अरशद को धराशायी करने के लिए प्राप्त होता है सोचनीय जिसकी सोच कौम तक सीमित हो वह राष्ट्र को क्या दे सकता है इससे प्रतीत होता है कि प्रदेश की तमाम लोगो की रणनीतियाँ याचिका केन्द्रित न होकर संघ केन्द्रित है इससे शिक्षा मित्रो का भला शायद हो मै यह जानना चाहता हूँ कि हम अन्धभक्ति से सराबोर होकर विधान सभा ,शहीद पार्क का आन्दोलन कर सकते है जेल जा सकते है 28 जनवरी 2014 का विशाल महासम्मेलन कर सकते है 05 अक्टूबर को दिल्ली घेर सकते है तो न्यायिक संघर्ष मे इतना जागरूक कैसे हो जाते है ऐसी कौन सी वस्तु है जो हमे उस व्यक्ति के साथ एकमात्र न्यायालय मे जाने से रोकती है जिसके पीछे हम अन्धभक्ति मे चौदह -पन्द्रह साल चले विद्यालय से सचिवालय तक लड़ने -भिड़ने का इतिहास लिखा एक ताकत की पहचान बनाई व्यवस्था परिवर्तन की ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की और शिक्षक बने तो अन्धभक्ति से जागरूक कैसे हो गये यह समय आपस मे पछाड़ खाने -खिलाने का नही है और न ही 35000/ माह लेकर भागने का है समय है समस्या को पहचाने और एकजुट होकर लड़ने का , जागरूकता आरोप लगाने और संगठन को नीचा दिखाने के लिए है तो आवश्यक नही बल्कि जागरूकता एकता व शिक्षा मित्रो के सम्मान को बचाने के लिए आवश्यक है ।
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