शिक्षा के अधिकार अधिनियम में योग्य शिक्षकों व गुणवत्ता परक शिक्षा से क्या बच्चो को वंचित रखा जाना चाहिए ? कहा गया है - Education is the chief defense of a nation

शिक्षा के अधिकार अधिनियम में योग्य शिक्षकों व गुणवत्ता परक शिक्षा से क्या बच्चो को वंचित रखा जाना चाहिए ?कहा गया है - Education is the chief defense of a nation
क्या उत्तर प्रदेश में शिक्षक नियुक्ति की लड़ाई सिर्फ एक नौकरी की लड़ाई है
बच्चों का अच्छी शिक्षा पाने के बुनियादी हक़ को कोन देखेगा
सरकार जनता से टेक्स वसूलती है , उसकी कोई जवाबदेही नहीं
आज हर इंसान अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए भरसक प्रयास करता है लेकिन गरीब के बच्चे को मुफ्त शिक्षा के नाम
पर जो अधिनियम बना वह महज एक रोजगार की लड़ाई में तब्दील हो गया |
शिक्षा देश की रीढ़ की हड्डी होती है , देश की बुनियाद होती है , विकास का आधार होती है |
शिक्षा का अधिकार एक मूलभूत मानव अधिकार है १९५२ से यूरोपीय मानवाधिकार लोक संमति (European Convention on Human Rights) के अनुछेद २ का पहला प्रोटोकॉल सभी हस्ताक्षरकर्ता दलों को शिक्षा के अधिकार की गारंटी करने के लिए मजबूर करता है विश्व स्तर, पर संयुक्त राष्ट्र संघ' १९६६ के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संश्राव (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights) के तहत यह अधिकार अपने अनुच्छेद १३ के द्वारा इस अधिकार की गारंटी देता है।
शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास से है। (महात्मा गांधी)
मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। (स्वामी विवेकानन्द)
शिक्षा व्यक्ति की उन सभी भीतरी शक्तियों का विकास है जिससे वह अपने वातावरण पर नियंत्रण रखकर अपने उत्तरदायित्त्वों का निर्वाह कर सके। (जॉन ड्यूवी)
शिक्षा व्यक्ति के समन्वित विकास की प्रक्रिया है। (जिद्दू कृष्णमूर्ति)
शिक्षा का अर्थ अन्तःशक्तियों का बाह्य जीवन से समन्वय स्थापित करना है। (हर्बट स्पैन्सर)
शिक्षा मानव की सम्पूर्ण शक्तियों का प्राकृतिक, प्रगतिशील और सामंजस्यपूर्ण विकास है। (पेस्तालॉजी)
शिक्षा राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक विकास का शक्तिशाली साधन है, शिक्षा राष्ट्रीय सम्पन्नता एवं राष्ट्र कल्याण की कुंजी है। (राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, 1964-66)
शिक्षा बच्चे की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन है। ('सभी के लिए शिक्षा' पर विश्वव्यापी घोषणा, 1990)



बच्चे  किसी भी देश के सर्वोच्च संपत्ति हैं

एक तरफ, सरकार गरीबों को सस्ती और सुलभ शिक्षा का वादा कर रही है और दूसरी तरफ, उसे गुणवत्तापरक शिक्षा देने के उसके हक़ को अनदेखा करना
क्या दर्शाता है

हमारे देश की संविधान के अनुसार, 14 साल तक के प्रत्येक बच्चों को मुफ्त शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। एक तरफ, देश के राजनीतिज्ञ अपने लिए तमाम सुविधाओं का जुगाड़ कर लेते हैं और दूसरी तरफ, इस देश के लोगों के लिए ना ही कोई अच्छी  शिक्षा का प्रबंध है और ना ही चिकित्सा या अन्य सुविधाओं का। देश में शिक्षक और छात्र का अनुपात को किसी भी मायने में उचित नहीं ठहराया जा सकता। जानवरों की तरह एक ही कमरे में सरकारी स्कूलों में कई-कई कक्षायें चलती हैं और मास्टर साहब या तो खैनी मलते हैं आपसी बातचीत में मशगूल रहते हैं, जब नींद खुली तो एक-आध डंडा छात्रों पर बरसा देते हैं। शाम को या छुट्टी के समय में गिनती कराके अपनी ड्यूटी से मुक्ति पा लेते हैं। हमारे यहां के अधिकांश सरकारी स्कूलों का यही हाल है। ऐसे शिक्षक छात्रों को क्या शिक्षा देते होंगे, ये तो वही जानें।

जब तक इस देश का एक-एक बच्चा योग्य  व शिक्षित नहीं होगा तब तक हमें सच्ची आजादी नहीं मिल सकती। इसके लिए जरूरी है गंभीर प्रयासों की ना कि बयानजबाजी की, जिसमें इस देश के नेता पारंगत हैं।

शिक्षा के स्लोगन :
अच्छी शिक्षा से राष्ट्र का विकास होगा अपार
सब पढ़ो सब बढ़ो,  देश के विकास में भागीदार बनो
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