यदि एक शिक्षक अपने कर्तव्यों के निर्वहन कहीं कोई कमी नही छोड़ता है तो मुश्किल हालात में भी उसे किसी शिक्षक संघ की आवश्यकता नही होती। उसके साथ स्वतः ही समाज खड़ा हो जाता है।"
कुछ ऐसा ही हुआ है सीतापुर में। जहां बीएसऐ द्वारा 22 तारीख को शिक्षक को सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया गया कि उसने मध्यान्ह भोजन में तेहरी के साथ गाँव के गरीब बच्चों को पनीर की सब्जी और पूड़ी खिला दी।
वहीं सुनने में यह भी आ रहा है कि जिस कार्य विशेष के लिए सीतापुर में शिक्षकों को निलंबित किया गया है ठीक वैसा ही कार्य कल रविवार में विद्यालय खोलकर कराए जाने का आज शाहजहाँपुर में आदेश दिया गया है।
फ़िलहाल सीतापुर में विभाग द्वारा शिक्षक पर हुई इस करवाई के बाद तथाकथित शिक्षक संघ तो कहीं दिखाई नही दिया किन्तु विद्यालय के नन्हे-मुन्ने बच्चे अपने माता-पिता के साथ विभाग के उस आदेश के विरोध में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय पर अवश्य एकत्रित हुए और ऐसे तुगलकी फ़रमान का पुरज़ोर विरोध भी किया।
मैं प्रणाम करता हूँ विद्यालय के बच्चों और उनके परिवार को और तलाश भी करता हूँ उस शिक्षक संगठन की जो सिर्फ कोरी नेतागिरी हेतु ही खड़े ना हों।
✍मयंक तिवारी
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