सूबे में सरकारी स्कूलों की शिक्षा पर अरबों रुपये हर साल खर्च होते हैं। इसमें मोटा हिस्सा सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का होता है, लेकिन यूपी बोर्ड की परीक्षा में बहुत कम ही होता है जब इनके छात्र टॉप करते हैं। हाईकोर्ट ने सरकारी खजाने से पगार लेने वाले मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चों की शिक्षा सरकारी स्कूलों में अनिवार्य कर दी है। इस स्थिति में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को इस पर विचार करना होगा कि प्राइवेट स्कूलों से कैसे आगे निकलेंगे।
राज्य सरकार हर साल प्राइमरी से इंटर तक के स्कूलों के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था करती है। राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में बेसिक शिक्षा के लिए 32531.71 करोड़ की व्यवस्था की है। केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान में 15,000 करोड़ दिए हैं। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा के लिए 7941.97 करोड़ दिए।
केंद्र सरकार ने 450 करोड़ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में दिए हैं। सरकारी स्कूलों की शिक्षा के लिए किए गए बजट का मोटा हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है।
परिषदीय स्कूल में नई तैनाती पाने वाले शिक्षक को न्यूनतम 21 हजार रुपये वेतन मिलता है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में बहुत कम वेतन होता है। इसी तरह राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षक को न्यूनतम 32,000 रुपये वेतन मिलता है। इसके बाद भी सरकारी स्कूलों का रिजल्ट देखा जाए तो छात्र मेरिट में नहीं आ पा रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में घट रही संख्या
केंद्र सरकार भी सरकारी स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है। इसके लिए सरकारी व निजी स्कूलों के छात्रों का ब्यौरा हर साल तैयार होता है। यूडायस नाम से तैयार होने वाले ब्यौरे को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार घट रही है।
परिषदीय स्कूलों में कक्षा पांच तक की शिक्षा लेने के बाद 15 से 20 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसी तरह कक्षा आठ तक की पढ़ाई के बाद 25 से 30 फीसदी तक छात्राएं पढ़ाई छोड़ती हैं। सबसे खराब स्थिति कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की है।
इनमें कक्षा आठ तक की शिक्षा लेने वाली करीब 30 फीसदी छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं। सरकारी इंटर कॉलेजों का भी बुरा हाल है। राजकीय इंटर कॉलेजों में छात्र संख्या में खासा इजाफा नहीं हो रहा है।
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राज्य सरकार हर साल प्राइमरी से इंटर तक के स्कूलों के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था करती है। राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 में बेसिक शिक्षा के लिए 32531.71 करोड़ की व्यवस्था की है। केंद्र सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान में 15,000 करोड़ दिए हैं। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा के लिए 7941.97 करोड़ दिए।
केंद्र सरकार ने 450 करोड़ राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान में दिए हैं। सरकारी स्कूलों की शिक्षा के लिए किए गए बजट का मोटा हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है।
परिषदीय स्कूल में नई तैनाती पाने वाले शिक्षक को न्यूनतम 21 हजार रुपये वेतन मिलता है, जबकि प्राइवेट स्कूलों में बहुत कम वेतन होता है। इसी तरह राजकीय इंटर कॉलेजों में शिक्षक को न्यूनतम 32,000 रुपये वेतन मिलता है। इसके बाद भी सरकारी स्कूलों का रिजल्ट देखा जाए तो छात्र मेरिट में नहीं आ पा रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में घट रही संख्या
केंद्र सरकार भी सरकारी स्कूलों की शिक्षण व्यवस्था में सुधार लाना चाहती है। इसके लिए सरकारी व निजी स्कूलों के छात्रों का ब्यौरा हर साल तैयार होता है। यूडायस नाम से तैयार होने वाले ब्यौरे को केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है। सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार घट रही है।
परिषदीय स्कूलों में कक्षा पांच तक की शिक्षा लेने के बाद 15 से 20 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसी तरह कक्षा आठ तक की पढ़ाई के बाद 25 से 30 फीसदी तक छात्राएं पढ़ाई छोड़ती हैं। सबसे खराब स्थिति कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों की है।
इनमें कक्षा आठ तक की शिक्षा लेने वाली करीब 30 फीसदी छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं। सरकारी इंटर कॉलेजों का भी बुरा हाल है। राजकीय इंटर कॉलेजों में छात्र संख्या में खासा इजाफा नहीं हो रहा है।
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