यूपी सरकार को हाईकोर्ट से झटका, शिक्षा मित्रों का समायोजन अवैध
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को करारा झटका देते हुए शिक्षा मित्रों को सूबे में सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित करने के फैसले को रद कर दिया है। हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है और कहा है कि नियमों में ढील देने का राज्य सरकार को अधिकार नहीं। इसके साथ ही शिक्षा मित्रों को दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के जरिए दिया गया प्रशिक्षण भी रद कर दिया।
अवकाश के बावजूद आज भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। इसके लिए मुख्य न्यायधीश की अदालत विशेष रूप से खुली। पूर्ण पीठ में मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड के अलावा न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा शामिल थे। दोपहर बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस दौरान अदालत के बाहर सैकड़ों लोगों का जमावड़ा रहा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि प्रदेश सरकार ने शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित करने का फैसला लेकर विधाई सीमाओं का लांघा। राज्य सरकार को इसका अधिकार ही नहीं था। अध्यापक नियमावली में परिवर्तन का अधिकार एनसीटीई को है न कि राज्य सरकार को। शिक्षा मित्रों के पास निर्धारित योग्यता न होने की वजह से वह नियुक्ति के हकदार नहीं हैं। वह संविदाकर्मी ही रहेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यहां तक टिप्पणी की कि सरकार गलत नीतियों से प्रदेश के बेरोजगारों को लड़ा रही है और सामाजिक समरसता नष्ट कर रही है।
अदालत के फैसले ने राज्य सरकार के समायोजन के निर्णय की धज्जियां उड़ा दी हैं। इससे प्रदेश में एक लाख 70 हजार से अधिक शिक्षा मित्र प्रभावित होंगे। प्रदेश सरकार एक लाख 31 हजार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित कर चुकी है और शेष को तीसरे चरण में समायोजित किया जाना था।
इससे पहले ही टीईटी अभ्यर्थियों ने सरकार के इस फैसले को गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि टीईटी बिना किसी को शिक्षक न बनाया जाए और हाईकोर्ट से इस मामले में निर्णय लेने को कहा था। तीन जजों की पीठ ने इलाहाबाद और लखनऊ में दायर सभी याचिकाओं को मंगाकर एक साथ सुनवाई की जिसमें राज्य सरकार के फैसले को अवैध ठहराया गया।
बड़ी संख्या में होंगे प्रभावित
प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्र हैं। इनकी नियुक्ति बिना किसी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया। 2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षा मित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षा मित्र सहायक अध्यापक बनाए गये। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन सहित कई युवाओं ने समायोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के समायोजन पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विचाराधीन याचिकाओं पर अन्तिम निर्णय लेने को कहा। जिस पर यह पूर्णपीठ सुनवाई कर रही थी।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को करारा झटका देते हुए शिक्षा मित्रों को सूबे में सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित करने के फैसले को रद कर दिया है। हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है और कहा है कि नियमों में ढील देने का राज्य सरकार को अधिकार नहीं। इसके साथ ही शिक्षा मित्रों को दूरस्थ शिक्षा प्रणाली के जरिए दिया गया प्रशिक्षण भी रद कर दिया।
अवकाश के बावजूद आज भी इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया। इसके लिए मुख्य न्यायधीश की अदालत विशेष रूप से खुली। पूर्ण पीठ में मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड के अलावा न्यायमूर्ति दिलीप गुप्ता, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा शामिल थे। दोपहर बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस दौरान अदालत के बाहर सैकड़ों लोगों का जमावड़ा रहा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि प्रदेश सरकार ने शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित करने का फैसला लेकर विधाई सीमाओं का लांघा। राज्य सरकार को इसका अधिकार ही नहीं था। अध्यापक नियमावली में परिवर्तन का अधिकार एनसीटीई को है न कि राज्य सरकार को। शिक्षा मित्रों के पास निर्धारित योग्यता न होने की वजह से वह नियुक्ति के हकदार नहीं हैं। वह संविदाकर्मी ही रहेंगे। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यहां तक टिप्पणी की कि सरकार गलत नीतियों से प्रदेश के बेरोजगारों को लड़ा रही है और सामाजिक समरसता नष्ट कर रही है।
अदालत के फैसले ने राज्य सरकार के समायोजन के निर्णय की धज्जियां उड़ा दी हैं। इससे प्रदेश में एक लाख 70 हजार से अधिक शिक्षा मित्र प्रभावित होंगे। प्रदेश सरकार एक लाख 31 हजार शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पदों पर समायोजित कर चुकी है और शेष को तीसरे चरण में समायोजित किया जाना था।
इससे पहले ही टीईटी अभ्यर्थियों ने सरकार के इस फैसले को गलत बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि टीईटी बिना किसी को शिक्षक न बनाया जाए और हाईकोर्ट से इस मामले में निर्णय लेने को कहा था। तीन जजों की पीठ ने इलाहाबाद और लखनऊ में दायर सभी याचिकाओं को मंगाकर एक साथ सुनवाई की जिसमें राज्य सरकार के फैसले को अवैध ठहराया गया।
बड़ी संख्या में होंगे प्रभावित
प्रदेश में 1.71 लाख शिक्षामित्र हैं। इनकी नियुक्ति बिना किसी परीक्षा के ग्राम पंचायत स्तर पर मेरिट के आधार पर की गई थी। 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने दो वर्षीय प्रशिक्षण की अनुमति नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) से ली। इसी अनुमति के आधार पर इन्हें दूरस्थ शिक्षा के अंतर्गत दो वर्ष का बीटीसी प्रशिक्षण दिया गया। 2012 में सत्ता में आई सपा सरकार ने इन्हें सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। पहले चरण में जून 2014 में 58,800 शिक्षा मित्रों का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया। दूसरे चरण में जून में 2015 में 73,000 शिक्षा मित्र सहायक अध्यापक बनाए गये। तीसरे चरण का समायोजन होने से पहले ही मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
बीटीसी प्रशिक्षु शिवम राजन सहित कई युवाओं ने समायोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के समायोजन पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विचाराधीन याचिकाओं पर अन्तिम निर्णय लेने को कहा। जिस पर यह पूर्णपीठ सुनवाई कर रही थी।
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