निजी स्कूलों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति गलत: हाईकोर्ट

लखनऊ, विवि संवाददाता वित्तीय सहायता प्राप्त निजी प्रबंधन के स्कूलों को हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शिक्षकों की तदर्थ नियुक्ति के मामले में करारा झटका दिया है। अदालत ने सरकार को भारी राहत देते हुए कहा कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सहमति के बिना की गई नियुक्तियों के लिए सरकार वेतन देने के लिए बाध्य नहीं है।
अदालतें सरकार को वेतन देने के लिए परमादेश नहीं जारी कर सकती हैं। मुख्य न्यायाधीश डॉ. धनजंय यशवंत चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति श्रीनारायण शुक्ला की पीठ ने यह फैसला अभिषेक तिपाठी की ओर से दायर एक याचिका पर उठे कानूनी सवाल का निस्तारण करते हुए सुनाया। अभिषेक की याचिका दो परस्पर विरोधी निर्णयों के कारण पीठ ने एक कानूनी सवाल के निस्तारण के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया था। याचिका पर उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट 1921 तथा उत्तर प्रदेश सेकंड्री एजुकेशन र्सिवस सेलेक्शन बोर्ड एक्ट 1982 के प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या करते हुए पीठ ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में प्रतिपादित विधि के सिद्धांत को नकार दिया और प्रदीप कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार में दिए गए निर्णय को सही ठहराया। पीठ ने राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता एचपी श्रीवास्तव की इस दलील को स्वीकार किया कि बोर्ड सहमति के बिना स्कूल प्रबंधकों द्वारा की गई तदर्थ नियुक्तियां कानून की निगाह में शून्य हैं और सरकार को ऐसी नियुक्तियों के खिलाफ वेतन देने के लिए आदेशित नहीं किया जा सकता है। सरकारी वकील की दलील थी कि वर्ष 1982 का कानून बनाते समय विधायिका ने धारा 16 के तहत स्पष्ट किया था कि 1921 के शिक्षा कानून के तहत की जाने वाली कोई नियुक्ति केवल बोर्ड की संस्तुतियों पर ही की जा सकती है। संस्तुति लेना आश्वयक है और धारा 16 (1) के प्राविधान के विरुद्ध की गई कोई नियुक्ति शून्य होगी। सरकारी वकील का तर्क था कि विधायिका के इन कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में कई फैसलों में वैध ठहराया गया है। ऐसी दशा में प्राविधानों का उल्लघंन कर की गई नियुक्तियों के विरुद्ध सरकार को वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। सरकारी वकील का यह भी तर्क था कि 1982 के शिक्षा कानून की धारा 18 में जो संशोधन किया गया, वह सिर्फ प्राचार्य और प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति के संदर्भ में है। इस कारण अदालतें भी कानून के खिलाफ की गई शून्य नियुक्तियों के विरुद्ध सरकार को वेतन देने का परमादेश नहीं जारी कर सकती हैं। खंड पीठ ने इस बिन्दु पर 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने के मुद्दे पर राज्य सरकार को कहा है कि सरकार को नियमित नियुक्तियों के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नियुक्तियां बहुत लम्बे समय तक खाली न रखी जाएं, क्योंकि ये शिक्षा के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।

Sponsored links :
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Breaking News: सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC