यूपी लोक सेवा आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष और एक सदस्य की नियुक्ति भी
सवालों के घेरे में आ गई है। कार्यवाहक अध्यक्ष सुनील कुमार जैन और सदस्य
फरमान अली के खिलाफ याचिका दाखिल की गयी है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. धीरेंद्र सिंह तथा अधिवक्ता अंकित राय ने सुनील जैन और फरमान अली की नियुक्ति को चुनौती दी है। याचिका पर हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई हो सकती है।
याचिका में कार्यवाहक अध्यक्ष सुनील जैन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को आधार बनाया गया है। डॉ. सुनील जैन के संबंध में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के आधार पर याचिका में दावा किया गया है कि उनके विरुद्ध आगरा में हत्या के प्रयास और डकैती जैसी गंभीर धाराओं में दो मुकदमे दर्ज हैं। वकील आलोक मिश्र के मुताबिक सुनील जैन की नियुक्ति के समय इस तथ्य की पड़ताल नहीं की गई। नियमानुसार किसी भी व्यक्ति को सदस्य नामित करते समय उसके चरित्र का सत्यापन किया जाना भी जरूरी है। डॉ. जैन ने सभी डिग्रियां द्वितीय श्रेणी में पास की हैं। आधार लिया गया है कि पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के मामले में भी सरकार ने ऐसा ही किया, जिसे हाईकोर्ट ने अनुचित मानते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी थी।
सदस्य फरमान अली पर भी आरोप है कि वह स्वयं को अधिवक्ता होने का दावा करते हैं। उन्होंने बताया है कि वह वर्ष 1991 से अधिवक्ता हैं, जबकि यूपी बार कौंसिल में उनका पंजीकरण वर्ष 2002 का है। इतना ही नहीं फरमान अली के पंजीकरण से संबंधित फाइल बार कौंसिल से गायब है। दूसरे सदस्यों और कार्यवाहक अध्यक्ष को नियुक्त करने में किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। न तो किसी से बायोडेटा लिया गया और न ही एक से अधिक विकल्पों पर विचार किया गया। इस प्रकार से नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 14 और 316 का उल्लंघन है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल कुमार यादव की नियुक्ति इन्हीं आधारों पर हाईकोर्ट द्वारा रद्द की जा चुकी है। प्रतियोग छात्र स्रंघर्ष समिति के अवनीश कुमार पांडेय ने आरोप लगाया है कि सुनील कुमार जैन के विषय में आरटीआई से सूचना मांगने और याचिका दाखिल करने पर उनको धमकियां मिल रही हैं।
डॉ.धीरेंद्र और अंकित की ओर से दाखिल की गई याचिका
अध्यक्ष के अलावा एक अन्य सदस्य को भी हटाने की मांग
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गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. धीरेंद्र सिंह तथा अधिवक्ता अंकित राय ने सुनील जैन और फरमान अली की नियुक्ति को चुनौती दी है। याचिका पर हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई हो सकती है।
याचिका में कार्यवाहक अध्यक्ष सुनील जैन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों को आधार बनाया गया है। डॉ. सुनील जैन के संबंध में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के आधार पर याचिका में दावा किया गया है कि उनके विरुद्ध आगरा में हत्या के प्रयास और डकैती जैसी गंभीर धाराओं में दो मुकदमे दर्ज हैं। वकील आलोक मिश्र के मुताबिक सुनील जैन की नियुक्ति के समय इस तथ्य की पड़ताल नहीं की गई। नियमानुसार किसी भी व्यक्ति को सदस्य नामित करते समय उसके चरित्र का सत्यापन किया जाना भी जरूरी है। डॉ. जैन ने सभी डिग्रियां द्वितीय श्रेणी में पास की हैं। आधार लिया गया है कि पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव के मामले में भी सरकार ने ऐसा ही किया, जिसे हाईकोर्ट ने अनुचित मानते हुए उनकी नियुक्ति रद्द कर दी थी।
सदस्य फरमान अली पर भी आरोप है कि वह स्वयं को अधिवक्ता होने का दावा करते हैं। उन्होंने बताया है कि वह वर्ष 1991 से अधिवक्ता हैं, जबकि यूपी बार कौंसिल में उनका पंजीकरण वर्ष 2002 का है। इतना ही नहीं फरमान अली के पंजीकरण से संबंधित फाइल बार कौंसिल से गायब है। दूसरे सदस्यों और कार्यवाहक अध्यक्ष को नियुक्त करने में किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। न तो किसी से बायोडेटा लिया गया और न ही एक से अधिक विकल्पों पर विचार किया गया। इस प्रकार से नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 14 और 316 का उल्लंघन है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल कुमार यादव की नियुक्ति इन्हीं आधारों पर हाईकोर्ट द्वारा रद्द की जा चुकी है। प्रतियोग छात्र स्रंघर्ष समिति के अवनीश कुमार पांडेय ने आरोप लगाया है कि सुनील कुमार जैन के विषय में आरटीआई से सूचना मांगने और याचिका दाखिल करने पर उनको धमकियां मिल रही हैं।
डॉ.धीरेंद्र और अंकित की ओर से दाखिल की गई याचिका
अध्यक्ष के अलावा एक अन्य सदस्य को भी हटाने की मांग
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