प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा विद्या उपासक योजना के तहत लगे अध्यापकों को पेंशन वसेवा लाभ देने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट नेभी अपनी मुहर लगा दी है। जोगा सिंह और अन्य द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करने के न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर वाली खंडपीठ के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी है।
खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि विद्या उपासक योजना के तहत लगे अध्यापकों के नियमितीकरण तक की सेवा अवधि को पेंशन, सालाना वृद्धि औरअन्य सेवा लाभों के लिए गिना जाए। याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को विद्या उपासक योजना के तहत वर्ष 2000 में विद्या उपासक नियुक्त किया था और उनकी सेवाओं को वर्ष 2007 में नियमित किया था। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि चूंकि 15-5-2003 को और इसके बाद नियुक्त किए गए कर्मचारियों को पेंशन का लाभ नहीं दियाजाएगा, बल्कि उन्हें कंट्रीब्यूटरी पेंशन योजना (2006) के तहतलाभ दिया जाएगा। प्रार्थियों की सेवाओं को वर्ष 2007 में नियमित किया गया, इसलिए वे पेंशन के हकदार नहीं हैं।
अदालत ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि प्रार्थियों की नियुक्ति वर्ष 2000 में ही निर्धारित चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी, इसलिए इनकी नियुक्ति वर्ष 2000 से ही मानीजाएगी। अदालत ने पेंशन नियम 1972 को स्पष्ट करते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारी कीनियुक्ति उसी दिन से गिनी जाएगी, जिस दिन से उसने पद संभाला हो चाहेवे अस्थायी तौर पर ही क्यों न हों। यदि बीच के सेवा काल में कोई रूकावट न हो। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर अपनीमुहर लगा दी है।
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खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि विद्या उपासक योजना के तहत लगे अध्यापकों के नियमितीकरण तक की सेवा अवधि को पेंशन, सालाना वृद्धि औरअन्य सेवा लाभों के लिए गिना जाए। याचिका में दिए गए तथ्यों के अनुसार प्रार्थियों को विद्या उपासक योजना के तहत वर्ष 2000 में विद्या उपासक नियुक्त किया था और उनकी सेवाओं को वर्ष 2007 में नियमित किया था। राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई कि चूंकि 15-5-2003 को और इसके बाद नियुक्त किए गए कर्मचारियों को पेंशन का लाभ नहीं दियाजाएगा, बल्कि उन्हें कंट्रीब्यूटरी पेंशन योजना (2006) के तहतलाभ दिया जाएगा। प्रार्थियों की सेवाओं को वर्ष 2007 में नियमित किया गया, इसलिए वे पेंशन के हकदार नहीं हैं।
अदालत ने राज्य सरकार की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया था कि प्रार्थियों की नियुक्ति वर्ष 2000 में ही निर्धारित चयन प्रक्रिया के तहत हुई थी, इसलिए इनकी नियुक्ति वर्ष 2000 से ही मानीजाएगी। अदालत ने पेंशन नियम 1972 को स्पष्ट करते हुए कहा था कि सरकारी कर्मचारी कीनियुक्ति उसी दिन से गिनी जाएगी, जिस दिन से उसने पद संभाला हो चाहेवे अस्थायी तौर पर ही क्यों न हों। यदि बीच के सेवा काल में कोई रूकावट न हो। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाई कोर्ट के फैसले पर अपनीमुहर लगा दी है।
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