सत्ता-संगठन की कमान युवा हाथों में सौंपने का प्रयोग कर चुकी समाजवादी
पार्टी ने अब चुनावी डुगडुगी से महीनों पहले प्रत्याशी घोषित करने का दांव
चला है। वर्ष 2012 में हारी सीटों में से 141 के प्रत्याशियों की पहली सूची
में 20 फीसद टिकट मुसलमानों व दस फीसद महिलाओं की झोली में डालकर वोट बैंक
साधने का प्रयास
भी हुआ है।1सपा ने 2012 के चुनावों से पहले ही संगठन की कमान अखिलेश को सौंप दी थी। बाद में वे ही मुख्यमंत्री भी बने। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद अखिलेश यादव ने भी ग्रामीणों की पार्टी वाली छवि तोड़कर सपा को
ट्विटर, फेसबुक और अंग्रेजी बोलने वाली माडर्न पार्टी बनाने का प्रयास किया। अब विधानसभा चुनाव-2017 की डुगडुगी से बहुत पहले वर्ष 2012 में हारी सीटों में से 141 प्रत्याशी घोषित करने का प्रयोग किया है। पार्टी के लिए इतने पहले प्रत्याशी घोषित करना नया प्रयोग माना जा रहा है।
वैसे सूची जारी होते ही बदलने व प्रत्याशिता रोकने का सिलसिला भी शुरू हो गया। अभी कुछ और टिकट बदलने की चर्चा भी रात तक होती रही। हालांकि, इस टिकट वितरण में पार्टी ने परंपरागत समीकरणों पर भी भरोसा बनाये रखा। मुसलमान, पिछड़ा, अति पिछड़े, ब्राrाण, क्षत्रिय को टिकट देने की पार्टी की पुरानी लाइन पर चलने की कोशिश हुई है।
युवा ब्रिगेड के निर्भय सिंह पटेल, अतुल प्रधान व डॉ.श्वेता सिंह को हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी बनाने का जोखिम भी उठाया है।
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वैसे सूची जारी होते ही बदलने व प्रत्याशिता रोकने का सिलसिला भी शुरू हो गया। अभी कुछ और टिकट बदलने की चर्चा भी रात तक होती रही। हालांकि, इस टिकट वितरण में पार्टी ने परंपरागत समीकरणों पर भी भरोसा बनाये रखा। मुसलमान, पिछड़ा, अति पिछड़े, ब्राrाण, क्षत्रिय को टिकट देने की पार्टी की पुरानी लाइन पर चलने की कोशिश हुई है।
युवा ब्रिगेड के निर्भय सिंह पटेल, अतुल प्रधान व डॉ.श्वेता सिंह को हारी हुई सीटों पर प्रत्याशी बनाने का जोखिम भी उठाया है।
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