Breaking Posts

Top Post Ad

Don't Miss , Must Read : हम शिक्षक ही क्यों रहें पीछे? व्यंग्य राही की कलम से

व्यंग्य राही की कलम से
आइए हाथ मिलाइए। हम अपने दोनों हाथों की अंगुलियों में अंटी लगाकर सामूहिक प्रण लेते हैं कि जितनी जल्दी हो सकेगा उतनी ही शीघ्रता से इस देश को डुबो कर छोड़ेंगे।
आखिर, क्या हुआ हम शिक्षक हैं तो? एक क्षण को भी शरमाइए मत। बिल्कुल भूल जाइए उन सूक्तियों को, जिनमें कहा गया था कि शिक्षक ही देश के भविष्य का निर्माता होते हैं। ये तो नादान और अशिक्षित लोगों की बातें थीं। आखिर, हम नए जमाने के प्रोफेसर हैं। हम विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं।

हम पेपर आउट कराकर ही दम लेंगे। यह कोई अपराध नहीं। अजी, जब हम 'पेपर' बना सकते हैं तो उस पेपर को 'आउट' क्यों नहीं करा सकते? हां, यह काम हमने अपने पूरे होशोहवास में किया है। जब नेता खाते हैं। अफसर रिश्वत लेते हैं। व्यापारी कालाबाजारी करते हैं। कर्मचारी टैक्स बचाने के लिए 'हाउस रेन्ट' की फर्जी रसीदें लगाते हैं। तो फिर हम 'टीचर' ही क्यों पीछे रह जाएं।
अरे पेपर आउट करके, कॉपियों में नम्बर बढ़ाकर हम देश के छात्रों का भविष्य ही तो बना रहे हैं। उन्हें आगे ही तो बढ़ा रहे हैं। और, ऐसा पुनीत कार्य करते हुए हम दस-पांच कमा लेते हैं तो क्या गुनाह करते हैं। अजी, जब सारा समाज ही देश की उतारने पर तुला हुआ है तो हम अपने कारनामों से उसे 'नग्न' क्यों न करें।
चाहे इस प्रयास में हम और हमारा चरित्र ही 'नंगा' क्यों न हो जाए! रही बात अपने सिद्धांतों की, तो उनका क्या करें। सिद्धान्तों पर चले तो मजे कैसे कर पाएंगे? पैसे वाले कैसे बनेंगे? बहरहाल हम सब उस्तादों ने प्रण किया है कि इस देश की शिक्षा प्रणाली, परीक्षा व्यवस्था को चौपट करके ही दम लेंगे।
मूर्ख हैं, वे ईमानदार अध्यापक, विद्वान प्रोफेसर जो आज भी शिक्षा को पवित्र मानते हैं। ईमानदारी आज विकलांग बुढिय़ा की तरह बन चुकी है जो बेईमानी के चौराहे पर खड़ी हुई हम जैसे लम्पटों से भीख मांगती है। देश के बेईमानों! एक हो। यही आज का नारा है।
sponsored links:
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines

No comments:

Post a Comment

Facebook