इलाहाबाद : जिले में शिक्षा विभाग के सहायक समन्वयक अधिकारियों की भर्ती में धांधली के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सचिव शिक्षा अनुभाग-13 को नए सिरे से जांच का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि जरूरी हो तो सभी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और विभागीय कार्रवाई की जाए। प्रदेश सरकार को इस मामले में कोर्ट ने तीन सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। डायट इलाहाबाद के पूर्व प्राचार्य राजेंद्र प्रताप की याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति इरशाद अली की पीठ सुनवाई कर रही है।
याची का कहना है कि सहायक समन्वयकों की भर्ती में धांधली के आरोप में उसे निलंबित किया गया। उस पर आरोप है कि उसने भर्ती विज्ञापन में पांच वर्ष के अनुभव के बजाए आठ वर्ष का अनुभव दिखाया और लिखित परीक्षा का परिणाम जारी होने से पहले ही साक्षात्कार करा लिया गया। उत्तर पुस्तिकाओं पर अंक देने में भी धांधली की गई। याची का कहना है कि आठ मई 2017 के शासनादेश में अनुभव की अर्हता पांच वर्ष के बजाए आठ वर्ष दी गई है। विज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी ने जारी किया था न कि याची ने। इसलिए साक्षात्कार में सभी आवेदकों को बुलाया गया था। लिखित परीक्षा का परिणाम एक कमेटी ने जारी किया। जिसमें जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी भी शामिल थे। इन सभी ने हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए लिखित परीक्षा के परिणाम में गड़बड़ी करना अकेले याची के लिए संभव ही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याची की ओर से दर्शाए तथ्यों से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया इसमें अन्य अधिकारियों की भी मिलीभगत है। इसलिए सचिव शिक्षा अनुभाग-13 मामले को नए सिरे से देखें। याचिका पर अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी।
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कोर्ट ने कहा है कि जरूरी हो तो सभी संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक और विभागीय कार्रवाई की जाए। प्रदेश सरकार को इस मामले में कोर्ट ने तीन सप्ताह में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। डायट इलाहाबाद के पूर्व प्राचार्य राजेंद्र प्रताप की याचिका पर न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति इरशाद अली की पीठ सुनवाई कर रही है।
याची का कहना है कि सहायक समन्वयकों की भर्ती में धांधली के आरोप में उसे निलंबित किया गया। उस पर आरोप है कि उसने भर्ती विज्ञापन में पांच वर्ष के अनुभव के बजाए आठ वर्ष का अनुभव दिखाया और लिखित परीक्षा का परिणाम जारी होने से पहले ही साक्षात्कार करा लिया गया। उत्तर पुस्तिकाओं पर अंक देने में भी धांधली की गई। याची का कहना है कि आठ मई 2017 के शासनादेश में अनुभव की अर्हता पांच वर्ष के बजाए आठ वर्ष दी गई है। विज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी ने जारी किया था न कि याची ने। इसलिए साक्षात्कार में सभी आवेदकों को बुलाया गया था। लिखित परीक्षा का परिणाम एक कमेटी ने जारी किया। जिसमें जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और बेसिक शिक्षा अधिकारी भी शामिल थे। इन सभी ने हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए लिखित परीक्षा के परिणाम में गड़बड़ी करना अकेले याची के लिए संभव ही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याची की ओर से दर्शाए तथ्यों से पता चलता है कि प्रथम दृष्टया इसमें अन्य अधिकारियों की भी मिलीभगत है। इसलिए सचिव शिक्षा अनुभाग-13 मामले को नए सिरे से देखें। याचिका पर अगली सुनवाई 20 नवंबर को होगी।
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