गोरखपुर, जेएनएन। हालिया पांच-छह वर्षों से तुलना करें तो दीनदयाल
उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के लिए साल 2018 बेहद खास रहा। वर्ष की
सबसे बड़ी उपलब्धि शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया का पूरा होना रहा तो कई
शिक्षकों की योग्यता पर राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय मुहर भी लगी। पहचान भी
मिली।
पठन-पाठन और शोध-अनुसंधान के लिहाज से कोई उल्लेखनीय गतिविधि भले ही नहीं हो सकी, लेकिन बीए एलएलबी कोर्स की शुरुआत और इंजीनिय¨रग संकाय का बीजारोपण होना, इस बात की तस्दीक करता है कि अगर शासन सत्ता का सहयोग मिले तो गोरखपुर विश्वविद्यालय का भविष्य निश्चित ही सुनहरा होगा। महायोगी गुरु श्री गोरक्षनाथ और पं. दीनदयाल के नाम पर स्थापित शोध पीठ ने विश्वविद्यालय को सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के केंद्र के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। साल 2018 विश्वविद्यालय परीक्षा के पर्चा आउट के लिए भी याद किया जाता रहेगा। बीत रहा साल इस कलंक को साथ लेकर ही विदा ले रहा है। अब तक इस प्रकरण के दोषियों का कुछ पता नहीं है।
विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के स्नातक कोर्स में दाखिले के लिए साझा प्रवेश परीक्षा का आयोजन एक नवाचार रहा, हालांकि इसकी सफलता और असफलता को लेकर पूरे वर्ष प्रतिक्रियाओं का दौर जारी रहा। 2018 में ही करीब पांच वर्ष के बाद पहली बार शोध पात्रता परीक्षा होने की राह साफ हुई, तो डिजिटाइजेशन की गति को रफ्तार भी मिली।
इनका रह गया इंतजार
-पठन-पाठन और मूल्यांकन के लिए सर्वमान्य प्रणाली चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम इस वर्ष भी विवि में लागू नहीं हो सका।
- 2009 के बाद दोबारा नैक प्रत्यायन हो, इसका इंतजार 2019 में भी रहेगा।
- फाइल ट्रैकिंग सिस्टम को दुरुस्त करने के बाबत विश्वविद्यालय ने 2018 को लक्ष्य रखा रखा था, जबकि ऐसा कुछ नहीं हो सका। पूरे साल केवल बातें ही होती रहीं।
- विवि में बायोमीट्रिक अटेंडेंस की व्यवस्था शुरू होगी, इसका इस वर्ष भी इंतजार ही रहा।
इन मसलों ने कराई किरकिरी
कुलपति प्रो. वीके सिंह के कार्यकाल में लगातार दो सत्रों में तैयारी होने के बाद भी छात्रसंघ चुनाव नहीं हो सके। परिसर में पुलिस की लाठियां भी बरसीं और राजनीति का विद्रूप चेहरा भी नजर आया। दुखद यह कि शर्मशार करने वाली इन घटनाओं के असल दोषियों का कुछ पता नहीं लग सका।
परीक्षाओं की शुचिता का दावा करने वाले विवि प्रशासन की पोल 2018 के चर्चित पर्चा आउट प्रकरण ने खोल दी। इस एक प्रकरण ने पूरे प्रदेश विश्वविद्यालय की किरकिरी कराई। बावजूद इसके दोषियों का कुछ पता नहीं है।
नवाचार का हवाला देकर हुई साझा प्रवेश परीक्षा में कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, वित्त अधिकारी डीन जैसे अहम पदों पर बैठे लोगों के लिए मानदेय निर्धारण के बहाने धन के बंदरबांट का मामला इसी साल सामने आया। पर्दाफाश हुआ और आनन-फानन विश्वविद्यालय को फैसला बदलना पड़ा।
गौरव के पल
- भूगोल विभाग के आचार्य केएन सिंह राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए।
- ¨हदी विभाग के सेवानिवृत्त आचार्य सदानंद प्रसाद गुप्त को उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली।
- प्राचीन इतिहास विभाग के आचार्य ईश्वर शरण विश्वकर्मा को प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी।
- प्राचीन इतिहास विभाग के आचार्य राजवंत राव उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त हुए।
- विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह के बहाने छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के अध्यक्ष के शिवन का मार्गदर्शन मिला।
- गुरु गोरक्षनाथ शोध पीठ भवन की आधार शिला रखने में यूजीसी के चेयरमैन पो. डीपी सिंह की मेजबानी का अवसर मिला।
पठन-पाठन और शोध-अनुसंधान के लिहाज से कोई उल्लेखनीय गतिविधि भले ही नहीं हो सकी, लेकिन बीए एलएलबी कोर्स की शुरुआत और इंजीनिय¨रग संकाय का बीजारोपण होना, इस बात की तस्दीक करता है कि अगर शासन सत्ता का सहयोग मिले तो गोरखपुर विश्वविद्यालय का भविष्य निश्चित ही सुनहरा होगा। महायोगी गुरु श्री गोरक्षनाथ और पं. दीनदयाल के नाम पर स्थापित शोध पीठ ने विश्वविद्यालय को सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के केंद्र के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। साल 2018 विश्वविद्यालय परीक्षा के पर्चा आउट के लिए भी याद किया जाता रहेगा। बीत रहा साल इस कलंक को साथ लेकर ही विदा ले रहा है। अब तक इस प्रकरण के दोषियों का कुछ पता नहीं है।
विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के स्नातक कोर्स में दाखिले के लिए साझा प्रवेश परीक्षा का आयोजन एक नवाचार रहा, हालांकि इसकी सफलता और असफलता को लेकर पूरे वर्ष प्रतिक्रियाओं का दौर जारी रहा। 2018 में ही करीब पांच वर्ष के बाद पहली बार शोध पात्रता परीक्षा होने की राह साफ हुई, तो डिजिटाइजेशन की गति को रफ्तार भी मिली।
इनका रह गया इंतजार
-पठन-पाठन और मूल्यांकन के लिए सर्वमान्य प्रणाली चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम इस वर्ष भी विवि में लागू नहीं हो सका।
- 2009 के बाद दोबारा नैक प्रत्यायन हो, इसका इंतजार 2019 में भी रहेगा।
- फाइल ट्रैकिंग सिस्टम को दुरुस्त करने के बाबत विश्वविद्यालय ने 2018 को लक्ष्य रखा रखा था, जबकि ऐसा कुछ नहीं हो सका। पूरे साल केवल बातें ही होती रहीं।
- विवि में बायोमीट्रिक अटेंडेंस की व्यवस्था शुरू होगी, इसका इस वर्ष भी इंतजार ही रहा।
इन मसलों ने कराई किरकिरी
कुलपति प्रो. वीके सिंह के कार्यकाल में लगातार दो सत्रों में तैयारी होने के बाद भी छात्रसंघ चुनाव नहीं हो सके। परिसर में पुलिस की लाठियां भी बरसीं और राजनीति का विद्रूप चेहरा भी नजर आया। दुखद यह कि शर्मशार करने वाली इन घटनाओं के असल दोषियों का कुछ पता नहीं लग सका।
परीक्षाओं की शुचिता का दावा करने वाले विवि प्रशासन की पोल 2018 के चर्चित पर्चा आउट प्रकरण ने खोल दी। इस एक प्रकरण ने पूरे प्रदेश विश्वविद्यालय की किरकिरी कराई। बावजूद इसके दोषियों का कुछ पता नहीं है।
नवाचार का हवाला देकर हुई साझा प्रवेश परीक्षा में कुलपति, कुलसचिव, परीक्षा नियंत्रक, वित्त अधिकारी डीन जैसे अहम पदों पर बैठे लोगों के लिए मानदेय निर्धारण के बहाने धन के बंदरबांट का मामला इसी साल सामने आया। पर्दाफाश हुआ और आनन-फानन विश्वविद्यालय को फैसला बदलना पड़ा।
गौरव के पल
- भूगोल विभाग के आचार्य केएन सिंह राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए।
- ¨हदी विभाग के सेवानिवृत्त आचार्य सदानंद प्रसाद गुप्त को उत्तर प्रदेश ¨हदी संस्थान के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली।
- प्राचीन इतिहास विभाग के आचार्य ईश्वर शरण विश्वकर्मा को प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी।
- प्राचीन इतिहास विभाग के आचार्य राजवंत राव उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त हुए।
- विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह के बहाने छात्र-छात्राओं और शिक्षकों को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के अध्यक्ष के शिवन का मार्गदर्शन मिला।
- गुरु गोरक्षनाथ शोध पीठ भवन की आधार शिला रखने में यूजीसी के चेयरमैन पो. डीपी सिंह की मेजबानी का अवसर मिला।