कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी एक के बाद एक हमले कर प्रदेश की योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही हैं. पहले गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा. फिर सोमवार को ट्वीट कर शिक्षामित्रों और अनुदेशकों के मानदेय के मुद्दे को उठाकर योगी सरकार के दुखती राग पर हाथ रख दिया.
प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर लिखा "उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों की मेहनत का रोज़ अपमान होता है, सैकड़ों पीड़ितों नें आत्महत्या कर डाली. जो सड़कों पर उतरे सरकार ने उनपर लाठियां चलाई, रासुका दर्ज किया. भाजपा के नेता टीशर्टों की मार्केट्टिंग में व्यस्त हैं, काश वे अपना ध्यान दर्दमंदों की ओर भी डालते."
इसके बाद प्रियंका ने एक और ट्वीट किया, "मैं लखनऊ में कुछ अनुदेशकों से मिली. उप्र के मुख्यमंत्री ने उनका मानदेय रु 8470 से रु 17,000 की घोषणा की थी। मगर आजतक अनुदेशकों को मात्र 8470 ही मिलता है. सरकार के झूठे प्रचार का शोर है, लेकिन अनुदेशकों की अवाज गुम हो गई."
बीजेपी की जीत में शिक्षामित्रों का था अहम योगदान
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिलाने में माना गया था कि शिक्षा मित्र भी अहम भूमिका में रहे, लेकिन समायोजन रद्द होने के ढाई साल बाद भी शिक्षामित्रों के लिए कोई राहत न मिलने की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उनके कोप का भाजन बनना पड़ सकता है.
पार्टी मतदाता सूची से लेकर परिसीमन तक दुरुस्त करा रही है. इस काम को भी शिक्षा मित्र बीएलओ बनकर निपटा रहे हैं. शिक्षा मित्र प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने के साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में लाभार्थियों के सत्यापन का भी काम करते हैं. 90 फीसदी शिक्षामित्र ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात हैं. ऐसे में एक ग्राम पंचायत में आधा दर्जन शिक्षा मित्र हैं तो उनके परिवारजन और शुभचिंतकों की संख्या 100 तक पहुंचती है. इसीलिए सपा-बसपा के साथ ही कांग्रेस भी उन्हें लुभाने में लगी है. लेकिन बीजेपी सरकार के सामने शिक्षामित्र अब नई समस्या बन कर खड़े हुए हैं.
लोकसभा चुनाव में हो सकता है नुकसान
2019 में लोकसभा की 80 सीटों को फतह करने के लक्ष्य को लेकर चल रही बीजेपी का संगठन सरकार से शिक्षामित्रों को राहत देने की उम्मीद लगाए हुए थे. इसके लिए उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के नेतृत्व में कमेटी भी गठित हुई लेकिन कोई भी फैसला न हो सका.
पार्टी का मानना है कि गांव-गांव तक फैले ये पौने दो लाख शिक्षामित्र लोकसभा चुनाव तक संतुष्ट नहीं हुए तो उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है. यही नहीं ये शिक्षामित्र लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए सिरदर्द बन जाएं तो हैरत नहीं.
पीएम मोदी ने की राहत देने की बात
दरअसल सपा सरकार को शिक्षा मित्रों के समायोजन के मामले में हाईकोर्ट की ओर से गलत ठहराने के बाद प्रधानमंत्री ने 19 सितंबर 2015 को बनारस में ‘शिक्षा मित्रों की जिम्मेदारी अब हमारी’ कहकर राहत दी थी. इसके बाद भी चुनाव के दौरान बीजेपी के बड़े नेता अपने चुनावी दौरे में सरकार बनने पर शिक्षामित्रों की समस्या सुलझाने का वादा कर रहे थे.
बीजेपी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में यह वादा किया था कि उनकी समस्या को तीन महीनों में सुलझाया जाएगा. लेकिन सरकार बनने के दो साल बाद भी कोई ठोस रास्ता अभी तक नहीं निकला. हालांकि सरकार ने इस दौरान दो बड़े शिक्षक भर्ती परीक्षा करवाए, जिसमें शिक्षामित्रों को भारांक भी दिया गया, लेकिन सभी का समायोजन नहीं हुआ. दूसरी शिक्षक भर्ती परीक्षा में भारांक भी दिया गया लेकिन कट ऑफ मार्क निर्धारित होने की वजह से मामला फंस गया. अभी भर्ती का मामला हाईकोर्ट में लंबित है.
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प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर लिखा "उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों की मेहनत का रोज़ अपमान होता है, सैकड़ों पीड़ितों नें आत्महत्या कर डाली. जो सड़कों पर उतरे सरकार ने उनपर लाठियां चलाई, रासुका दर्ज किया. भाजपा के नेता टीशर्टों की मार्केट्टिंग में व्यस्त हैं, काश वे अपना ध्यान दर्दमंदों की ओर भी डालते."
इसके बाद प्रियंका ने एक और ट्वीट किया, "मैं लखनऊ में कुछ अनुदेशकों से मिली. उप्र के मुख्यमंत्री ने उनका मानदेय रु 8470 से रु 17,000 की घोषणा की थी। मगर आजतक अनुदेशकों को मात्र 8470 ही मिलता है. सरकार के झूठे प्रचार का शोर है, लेकिन अनुदेशकों की अवाज गुम हो गई."
बीजेपी की जीत में शिक्षामित्रों का था अहम योगदान
2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिलाने में माना गया था कि शिक्षा मित्र भी अहम भूमिका में रहे, लेकिन समायोजन रद्द होने के ढाई साल बाद भी शिक्षामित्रों के लिए कोई राहत न मिलने की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उनके कोप का भाजन बनना पड़ सकता है.
पार्टी मतदाता सूची से लेकर परिसीमन तक दुरुस्त करा रही है. इस काम को भी शिक्षा मित्र बीएलओ बनकर निपटा रहे हैं. शिक्षा मित्र प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने के साथ ही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में लाभार्थियों के सत्यापन का भी काम करते हैं. 90 फीसदी शिक्षामित्र ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात हैं. ऐसे में एक ग्राम पंचायत में आधा दर्जन शिक्षा मित्र हैं तो उनके परिवारजन और शुभचिंतकों की संख्या 100 तक पहुंचती है. इसीलिए सपा-बसपा के साथ ही कांग्रेस भी उन्हें लुभाने में लगी है. लेकिन बीजेपी सरकार के सामने शिक्षामित्र अब नई समस्या बन कर खड़े हुए हैं.
लोकसभा चुनाव में हो सकता है नुकसान
2019 में लोकसभा की 80 सीटों को फतह करने के लक्ष्य को लेकर चल रही बीजेपी का संगठन सरकार से शिक्षामित्रों को राहत देने की उम्मीद लगाए हुए थे. इसके लिए उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के नेतृत्व में कमेटी भी गठित हुई लेकिन कोई भी फैसला न हो सका.
पार्टी का मानना है कि गांव-गांव तक फैले ये पौने दो लाख शिक्षामित्र लोकसभा चुनाव तक संतुष्ट नहीं हुए तो उसके मंसूबों पर पानी फिर सकता है. यही नहीं ये शिक्षामित्र लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए सिरदर्द बन जाएं तो हैरत नहीं.
पीएम मोदी ने की राहत देने की बात
दरअसल सपा सरकार को शिक्षा मित्रों के समायोजन के मामले में हाईकोर्ट की ओर से गलत ठहराने के बाद प्रधानमंत्री ने 19 सितंबर 2015 को बनारस में ‘शिक्षा मित्रों की जिम्मेदारी अब हमारी’ कहकर राहत दी थी. इसके बाद भी चुनाव के दौरान बीजेपी के बड़े नेता अपने चुनावी दौरे में सरकार बनने पर शिक्षामित्रों की समस्या सुलझाने का वादा कर रहे थे.
बीजेपी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में यह वादा किया था कि उनकी समस्या को तीन महीनों में सुलझाया जाएगा. लेकिन सरकार बनने के दो साल बाद भी कोई ठोस रास्ता अभी तक नहीं निकला. हालांकि सरकार ने इस दौरान दो बड़े शिक्षक भर्ती परीक्षा करवाए, जिसमें शिक्षामित्रों को भारांक भी दिया गया, लेकिन सभी का समायोजन नहीं हुआ. दूसरी शिक्षक भर्ती परीक्षा में भारांक भी दिया गया लेकिन कट ऑफ मार्क निर्धारित होने की वजह से मामला फंस गया. अभी भर्ती का मामला हाईकोर्ट में लंबित है.
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