NCTE के हालिया लेटर के बहुत पहले से कहता आया हूँ और फिर दोहराता हूँ कि शिक्षामित्र कार्यरत शिक्षक हैं, ये साबित करने में कोई भी तर्क काम नहीं आएगा, क्योंकि शिक्षामित्र योजना की संकल्पना और अवधारणा तथा इसके क्रियान्वयन-संबंधी प्रारंभिक शासनादेशों में बिना लाग-लपेट के शिक्षामित्र को स्वेच्छा से, नियत अवधि के लिए, नियत मानदेय के बदले, गैर-रोजगारपरक, सामुदायिक सेवा देनेवाले समाजसेवी करार दिया गया था
जो न कभी स्वयं को राज्य-सरकार या परिषद् का कर्मचारी समझेंगे, न ही ऐसा कोई दावा करेंगे। बाद में भी कभी शिक्षामित्रों को कभी वो वेतन-भत्ता-सुविधा नहीं दी गई जो इन्हें शिक्षक साबित करने में मददगार हो।
ऐसे में शिक्षामित्रों के हित में यही होगा कि येन-केन-प्रकारेण फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों के मुद्दे की सुनवाई को टालें या उसे लंबा खींचे और इस बीच उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ के आदेश में छोड़े गए लूपहोल, यानि शिक्षामित्रों के चयन और ट्रेनिंग को स्पष्ट रूप से अवैध न घोषित करने, का फायदा उठाते हुए सरकार से टेट-पास शिक्षामित्रों के समायोजन की प्रक्रिया शीघ्रातिशीघ्र पूरी करने की कार्यवाही करवाएं। ऐसा होने से कम से कम उन शिक्षामित्रों का भविष्य कुछ हद तक सुरक्षित हो जायेगा, जिन्होंने टेट पास किया है। इस समायोजन के खिलाफ पड़ने वाली किसी याचिका पर संभवतः कोई एकल पीठ स्थगनादेश भी नहीं देगी, और अगर एक बार अंदर हो गए तो फिर बाहर किये जाने से बचना मानवीय आधार पर अपेक्षाकृत अधिक सरल हो पायेगा।
मैं जानता हूँ कि आपके गैर-टेट साथी और नेता मेरे इस सुझाव को आपकी एकता में फूट डालने का प्रयास बताएँगे। मेरा इरादा भले यह न हो, पर इसका प्रभाव यही होनेवाला है, यह भी मैं जानता हूँ। पर मैं दावा करता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलने के पहले इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं कि राज्यसरकार को विश्वास में लेकर यह करवाया जाए। अगर किसी के पास हो तो जरूर बताये।
वैसे भी आगे चलकर सबके एक-साथ डूबने से ज्यादा कल्याणकारी होगा कि कम से कम उन्हें बचा लिया जाये, जिनको बचाना फ़िलहाल सम्भव है।
मेरी इस सलाह से तमाम वे लोग भी अप्रसन्न हो सकते हैं, जो अबतक मेरे केवल शिक्षामित्रों के समायोजन का विरोध किये जाने से प्रसन्न थे
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
जो न कभी स्वयं को राज्य-सरकार या परिषद् का कर्मचारी समझेंगे, न ही ऐसा कोई दावा करेंगे। बाद में भी कभी शिक्षामित्रों को कभी वो वेतन-भत्ता-सुविधा नहीं दी गई जो इन्हें शिक्षक साबित करने में मददगार हो।
ऐसे में शिक्षामित्रों के हित में यही होगा कि येन-केन-प्रकारेण फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में शिक्षामित्रों के मुद्दे की सुनवाई को टालें या उसे लंबा खींचे और इस बीच उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ के आदेश में छोड़े गए लूपहोल, यानि शिक्षामित्रों के चयन और ट्रेनिंग को स्पष्ट रूप से अवैध न घोषित करने, का फायदा उठाते हुए सरकार से टेट-पास शिक्षामित्रों के समायोजन की प्रक्रिया शीघ्रातिशीघ्र पूरी करने की कार्यवाही करवाएं। ऐसा होने से कम से कम उन शिक्षामित्रों का भविष्य कुछ हद तक सुरक्षित हो जायेगा, जिन्होंने टेट पास किया है। इस समायोजन के खिलाफ पड़ने वाली किसी याचिका पर संभवतः कोई एकल पीठ स्थगनादेश भी नहीं देगी, और अगर एक बार अंदर हो गए तो फिर बाहर किये जाने से बचना मानवीय आधार पर अपेक्षाकृत अधिक सरल हो पायेगा।
मैं जानता हूँ कि आपके गैर-टेट साथी और नेता मेरे इस सुझाव को आपकी एकता में फूट डालने का प्रयास बताएँगे। मेरा इरादा भले यह न हो, पर इसका प्रभाव यही होनेवाला है, यह भी मैं जानता हूँ। पर मैं दावा करता हूँ कि सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलने के पहले इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं कि राज्यसरकार को विश्वास में लेकर यह करवाया जाए। अगर किसी के पास हो तो जरूर बताये।
वैसे भी आगे चलकर सबके एक-साथ डूबने से ज्यादा कल्याणकारी होगा कि कम से कम उन्हें बचा लिया जाये, जिनको बचाना फ़िलहाल सम्भव है।
मेरी इस सलाह से तमाम वे लोग भी अप्रसन्न हो सकते हैं, जो अबतक मेरे केवल शिक्षामित्रों के समायोजन का विरोध किये जाने से प्रसन्न थे
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