सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में बदलाव कर दिया है। अब हंिदूी पढ़ने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है। संशोधित मसौदे में त्रिभाषा फामरूले के तहत छात्र अब कोई भी तीन भाषा पढ़ने के लिए स्वतंत्र होंगे। हालांकि इनमें एक साहित्यिक भाषा जरूरी होगी। पुराने मसौदे में हंिदूी, अंग्रेजी के साथ कोई एक स्थानीय भाषा पढ़ने का प्रावधान था।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में यह बदलाव सोमवार को गैर-हंिदूी भाषी प्रदेशों, खासकर दक्षिण भारतीय राज्यों, से उठ रहे विरोध के सुर को देखते हुए किया गया है। इसकी शुरुआत तमिलनाडु से हुई थी, जहां द्रमुक सहित कई राजनीतिक दलों ने इसे लेकर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने में जुट गए थे। द्रमुक के अलावा कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरमैया, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। हालांकि, सरकार ने कहा था कि किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। यह अभी एक शुरुआती मसौदा है। सभी पक्षों से सलाह के बाद ही कोई फैसला किया जाएगा।
संशोधित शिक्षा नीति के मसौदे में त्रिभाषा फामरूले को लचीला कर दिया गया है। अब इनमें किसी भी भाषा का जिक्र नहीं है। छात्रों को कोई भी तीन भाषा चुनने की स्वतंत्रता दी गई है। तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के राज्यों में पहले से दो भाषा पढ़ाई जा रही है। इनमें एक स्थानीय और दूसरी अंग्रेजी है। हालांकि संशोधित शिक्षा नीति के मसौदे में यह साफ कहा गया है कि स्कूली छात्रों को तीन भाषा पढ़नी होगी। नई शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर यह विवाद तब खड़ा हुआ है, जब सरकार ने इसे 31 मई को जारी कर लोगों से सुझाव मांगे। इसके तहत कोई भी व्यक्ति 30 जून तक अपने सुझाव दे सकता है। शिक्षा नीति के मसौदे को लेकर मिल रहे सुझावों पर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ मानव संसाधन विकास मंत्रलय और नीति तैयार करने वाली कमेटी भी पैनी नजर रख रही है।
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