जैसा कि कल दिनांक - 05 अक्टूबर को जनपद - सिद्धार्थनगर के पीड़ित शिक्षामित्रो के द्वारा बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ सतीश द्विवेदी जी का स्वागत समारोह किया गया लेकिन अफसोस बेसिक शिक्षा मंत्री जी ने फिर वही घिसी- पिसी पुरानी डायलॉग को रिपीट किया है कि हमारी सरकार ने इनका मानदेय 3500/- से बढ़ाकर 10,000/- कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आगे विवश हैं और अब हम आगे कुछ रास्ता हमारी सरकार निकालने के लिए विचार करेगी?*
*बहरहाल बेसिक शिक्षा मंत्री जी ने कल वही कहा जो अब तक मुख्यमंत्री जी सहित इस सरकार के सभी जिम्मेदार मंत्री जी हर
चौराहे पर पीड़ित शिक्षामित्रो के लिए ढिंढोरा पीटते चले आ रहे हैं, हमारे विचार से इस सरकार में पीड़ित शिक्षामित्रो का भला होना मुश्किल दिख रहा है क्योंकि आज तक यही समझ में नहीं आ पाया है कि वास्तविक निर्णायक पावर किस मंत्री के पास निहित है? पीड़ित शिक्षामित्रो ने अपनी पीड़ा की गुहार चाहे राष्ट्रपति जी हो, प्रधानमंत्री जी हो, उपराष्ट्रपति जी हो, गृहमंत्री श्री अमित शाह जी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जी हो... आदि अन्य सभी तक अपनी गतिमान परिदृश्य का अनुभव ट्यूटर व व्यक्तिगत मिल करके कराते हुए एवं दीनतापूर्वक प्रार्थना करते करते, मरणासन्न हो चुके हैं लेकिन जाना, समझा व झूठा आश्वासन दिया सभी ने और समाधान करने की पहल आज तक किसी ने भी नहीं की और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर झूठा आश्वासन देकर पल्ला झाड़ नित लिया, फिलहाल अब पीड़ित शिक्षामित्रो को लखनऊ खण्ड पीठ के डबल बेंच में गतिमान 69000/- शिक्षक भर्ती में विवादित प्रकरण पर व 124 को लेकर जो कि भोला प्रसाद शुक्ला व अन्य की याचिका पर शीर्ष अदालत में क्रमश: 16 व 21 अक्टूबर को बहस होनी है, उस मुकदमे पर अधिक विजय मिलने की उम्मीद अभी तक जीवित है, खैर जहाँ तक पीड़ित शिक्षामित्रो के द्वारा प्रेरणा एप्प का समर्थन करने व विरोध करने वाली बात है, हम 1.5 लाख की संख्या में इस समय रह गए हैं, विरोध करने पर भी कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है क्योंकि योगी सरकार जो ठान लेती हैं वह वही करती हैं उसे अपने अजेय होने का बहुत बड़ा अभिमान हो चुका है, 5.8 लाख परिषदीय स्थायी शिक्षक, विरोध करके कुछ भी नहीं अब तक उखाड़ पाये तो पीड़ित शिक्षामित्र तो एक तैरती हुई सूखी घास है, जिसका अस्तित्व बेसिक शिक्षा विभाग में कुछ भी नहीं है, जोकि ब्लाक स्तर का एक छोटा सा अधिकारी बीईओ कभी भी मनगढ़त आरोप गढ़ कर के संविदा समाप्त कर सकता है, कुल मिलाकर यदि रामराज्य में जीवित रहना है तो 24 घंटे राम राम का ही स्मरण करना है और इसके अतिरिक्त अब योगीराज में पीड़ित शिक्षामित्रो के लिए अब कोई विकल्प शायद हमारे विचार से अवशेष नहीं रह गया है*?
*बहरहाल बेसिक शिक्षा मंत्री जी ने कल वही कहा जो अब तक मुख्यमंत्री जी सहित इस सरकार के सभी जिम्मेदार मंत्री जी हर
चौराहे पर पीड़ित शिक्षामित्रो के लिए ढिंढोरा पीटते चले आ रहे हैं, हमारे विचार से इस सरकार में पीड़ित शिक्षामित्रो का भला होना मुश्किल दिख रहा है क्योंकि आज तक यही समझ में नहीं आ पाया है कि वास्तविक निर्णायक पावर किस मंत्री के पास निहित है? पीड़ित शिक्षामित्रो ने अपनी पीड़ा की गुहार चाहे राष्ट्रपति जी हो, प्रधानमंत्री जी हो, उपराष्ट्रपति जी हो, गृहमंत्री श्री अमित शाह जी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जी हो... आदि अन्य सभी तक अपनी गतिमान परिदृश्य का अनुभव ट्यूटर व व्यक्तिगत मिल करके कराते हुए एवं दीनतापूर्वक प्रार्थना करते करते, मरणासन्न हो चुके हैं लेकिन जाना, समझा व झूठा आश्वासन दिया सभी ने और समाधान करने की पहल आज तक किसी ने भी नहीं की और सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर झूठा आश्वासन देकर पल्ला झाड़ नित लिया, फिलहाल अब पीड़ित शिक्षामित्रो को लखनऊ खण्ड पीठ के डबल बेंच में गतिमान 69000/- शिक्षक भर्ती में विवादित प्रकरण पर व 124 को लेकर जो कि भोला प्रसाद शुक्ला व अन्य की याचिका पर शीर्ष अदालत में क्रमश: 16 व 21 अक्टूबर को बहस होनी है, उस मुकदमे पर अधिक विजय मिलने की उम्मीद अभी तक जीवित है, खैर जहाँ तक पीड़ित शिक्षामित्रो के द्वारा प्रेरणा एप्प का समर्थन करने व विरोध करने वाली बात है, हम 1.5 लाख की संख्या में इस समय रह गए हैं, विरोध करने पर भी कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है क्योंकि योगी सरकार जो ठान लेती हैं वह वही करती हैं उसे अपने अजेय होने का बहुत बड़ा अभिमान हो चुका है, 5.8 लाख परिषदीय स्थायी शिक्षक, विरोध करके कुछ भी नहीं अब तक उखाड़ पाये तो पीड़ित शिक्षामित्र तो एक तैरती हुई सूखी घास है, जिसका अस्तित्व बेसिक शिक्षा विभाग में कुछ भी नहीं है, जोकि ब्लाक स्तर का एक छोटा सा अधिकारी बीईओ कभी भी मनगढ़त आरोप गढ़ कर के संविदा समाप्त कर सकता है, कुल मिलाकर यदि रामराज्य में जीवित रहना है तो 24 घंटे राम राम का ही स्मरण करना है और इसके अतिरिक्त अब योगीराज में पीड़ित शिक्षामित्रो के लिए अब कोई विकल्प शायद हमारे विचार से अवशेष नहीं रह गया है*?