मुझे
सांप्रदायिक नौजवानों की जमात का हीरो नहीं बनना है. मैं ज़ीरो ठीक हूं.
मैं जानता हूं कि 69000 शिक्षक भर्ती पद के सवा चार लाख उम्मीदवारों में से
ज़्यादातर घोर कम्युनल होंगे. फिर भी ये उम्र में मुझसे छोटे हैं और मैं
इनको ना नहीं कह पाता. इस उम्मीद में कि ये एक दिन यूपी के जड़ समाज को
धक्का देते हुए
सांप्रदायिकता से बाहर निकल आएंगे, मैं इनके बारे में लिखता रहता हूं. 69000 पदों के उम्मीदवारों से अजीब सा रिश्ता जुड़ गया है. अपने हक़ के लिए नए नए तरीक़े से लड़ने के उनके जज़्बे को सलाम करता हूं.
एक साल हो गए परीक्षा को. नियुक्ति नहीं मिली. पास कर गए मगर मुक़दमा कोर्ट में फंसा दिया. सरकार तारीख़ के बहाने चाल चल रही है. अब उसके ख़ज़ाने में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी देने का दम नहीं बचा है. कोर्ट में 23 बार तारीख़ पड़ी मगर सरकार का वकील तीन या चार बार ही कोर्ट पहुंचा. ज़ाहिर है सरकार टालने की नीति पर चल रही है.
ये उम्मीदवार पहले कोर्ट में लड़ते रहे. फिर सड़क पर लड़े. फिर अख़बारों ने भी छापा. हमने भी कई बार दिखाया. पर सरकार हिली नहीं. तब वे ट्विटर पर आए. ख़ूब ट्रेंड कराया. आईटी सेल वालों ने भी मदद नहीं की. उन्हें सिर्फ़ मुसलमानों से नफ़रत करने वाला युवा चाहिए. कम फ़ीस और नौकरी मांगने वाला नहीं.
लेकिन
अब इन्होंने एक नायाब तरीक़ा निकाला है. यूपी के कई शहरों में ये पोस्टर
अभियान चला रहे हैं. सरकारी इमारतों से लेकर दरो दीवार पर पोस्टर लगा कर
सरकार से गुहार कर रहे हैं. बसों पर पोस्टर लगा रहे हैं. ट्रेन के भीतर और
बाहर भी. ऑटो रिक्शा पर भी. कई शहरों के चौराहे को अपने पोस्टरों से पाट
दिया है.
इनके लड़ते रहने के जज़्बे को अनदेखा नहीं कर सकते. ये बेहद प्यारे लोग हैं. बस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने इनमें से कइयों को नफ़रती सोच का बना दिया होगा. ये और बात है कि कुछ मुझसे कहते हैं कि नफ़रत के इस खेल को समझने लगे हैं. बहुत लोग मेरा पोस्ट पढ़ने के बाद किनारा काट लेते हैं. सामने नहीं आते. मेरा इस्तमाल करते हैं. मैं इंतज़ार ही कर सकता हूं कि वे एक दिन पत्र लिखेंगे. मेरे दफ़्तर के पते पर. उस पत्र में ईमानदारी से लिखेंगे कि कैसे सांप्रदायिकता की चपेट में आए और किस तरह से इससे निकलने का प्रयास कर रहे हैं. जैसे वे मुझसे उम्मीद करते हैं वैसे ही मेरी उनसे भी ये उम्मीद है. मैं चार लाख पत्रों का इंतज़ार करूंगा. तब तक इन शानदार नौजवानों को प्यार करता रहूंगा. आंखें थक गईं हैं मगर इनकी बात लिखता रहूंगा.
- सर 12460 शून्य जनपद वाले अभ्यर्थी भी अबतक वंचित हैं
- 4000 जिले वालों को नियुक्ति दे दी गयी लेकिन ग़ैर जनपद वाले 8000 जो की मेरिट में हाई थे अबतक नियुक्ति की आस में हैं
- कोई दूसरे देश से आकर नागरिकता ले सकता है पर 12460 शून्य जनपद वाले दूसरे जिले में नियुक्ति नहीं ले सकते
मदद करिए सर
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
सांप्रदायिकता से बाहर निकल आएंगे, मैं इनके बारे में लिखता रहता हूं. 69000 पदों के उम्मीदवारों से अजीब सा रिश्ता जुड़ गया है. अपने हक़ के लिए नए नए तरीक़े से लड़ने के उनके जज़्बे को सलाम करता हूं.
एक साल हो गए परीक्षा को. नियुक्ति नहीं मिली. पास कर गए मगर मुक़दमा कोर्ट में फंसा दिया. सरकार तारीख़ के बहाने चाल चल रही है. अब उसके ख़ज़ाने में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी देने का दम नहीं बचा है. कोर्ट में 23 बार तारीख़ पड़ी मगर सरकार का वकील तीन या चार बार ही कोर्ट पहुंचा. ज़ाहिर है सरकार टालने की नीति पर चल रही है.
ये उम्मीदवार पहले कोर्ट में लड़ते रहे. फिर सड़क पर लड़े. फिर अख़बारों ने भी छापा. हमने भी कई बार दिखाया. पर सरकार हिली नहीं. तब वे ट्विटर पर आए. ख़ूब ट्रेंड कराया. आईटी सेल वालों ने भी मदद नहीं की. उन्हें सिर्फ़ मुसलमानों से नफ़रत करने वाला युवा चाहिए. कम फ़ीस और नौकरी मांगने वाला नहीं.
इनके लड़ते रहने के जज़्बे को अनदेखा नहीं कर सकते. ये बेहद प्यारे लोग हैं. बस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने इनमें से कइयों को नफ़रती सोच का बना दिया होगा. ये और बात है कि कुछ मुझसे कहते हैं कि नफ़रत के इस खेल को समझने लगे हैं. बहुत लोग मेरा पोस्ट पढ़ने के बाद किनारा काट लेते हैं. सामने नहीं आते. मेरा इस्तमाल करते हैं. मैं इंतज़ार ही कर सकता हूं कि वे एक दिन पत्र लिखेंगे. मेरे दफ़्तर के पते पर. उस पत्र में ईमानदारी से लिखेंगे कि कैसे सांप्रदायिकता की चपेट में आए और किस तरह से इससे निकलने का प्रयास कर रहे हैं. जैसे वे मुझसे उम्मीद करते हैं वैसे ही मेरी उनसे भी ये उम्मीद है. मैं चार लाख पत्रों का इंतज़ार करूंगा. तब तक इन शानदार नौजवानों को प्यार करता रहूंगा. आंखें थक गईं हैं मगर इनकी बात लिखता रहूंगा.
टिप्पणियां
- और यही नसीहत गुजारिश 12460 पदों के उम्मीदवारों से भी है- सर 12460 शून्य जनपद वाले अभ्यर्थी भी अबतक वंचित हैं
- 4000 जिले वालों को नियुक्ति दे दी गयी लेकिन ग़ैर जनपद वाले 8000 जो की मेरिट में हाई थे अबतक नियुक्ति की आस में हैं
- कोई दूसरे देश से आकर नागरिकता ले सकता है पर 12460 शून्य जनपद वाले दूसरे जिले में नियुक्ति नहीं ले सकते
मदद करिए सर
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.