भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की स्पष्ट गाइडलाइन है कि 31 जुलाई तक समस्त शिक्षण संस्थान बन्द रहेंगे। संघ द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार व विभाग के अधिकारियों से उक्त गाइडलाइन के विपरीत 01 जुलाई से शिक्षकों को विद्यालय में भेजने से रोकने हेतु अनेक अनुरोध किये गये,परंतु बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी भारत सरकार एवं मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश की गाइडलाइन के विपरीत प्रदेश के लाखों शिक्षकों को कोरोना संक्रमण में धकेलने पर आमादा हैं।जिससे शिक्षकों में भारी रोष है।शिक्षकों का कर्त्तव्य छात्रों को शिक्षा देना है जब विद्यालय में छात्र ही नहीं होंगे तो अध्यापक विद्यालय क्यों भेजे जा रहे हैं?विद्यालयों को सेनेटाइज करने का शासनादेश हुआ है, परन्तु प्रदेश के अधिकांश जनपदों से सूचना मिली कि आज तक विद्यालय सेनेटाइज नहीं किये गये हैं।
जिस विद्यालय में ग्रीष्मावकाश के पश्चात सफ़ाई हेतु ग्राम पंचायत या नगर पंचायत का सफ़ाई कर्मचारी न पहुँचता हो और शिक्षक को स्वयं साफ सफाई करनी पड़ती है उन्हें प्रशासन द्वारा सेनेटाइज कराने की बात करना केवल कल्पना या शिक्षकों को दिलासा ही हो सकती है। स्पष्ट प्रतीत होता है कि कोविद 19 महामारी के दौरान सामूहिक एकत्रीकरण पर प्रतिबंध या सोशल distancing की अनिवार्यता जैसे नियमों का अधिकारियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है और शिक्षकों को आंदोलन के लिये उकसाया जा रहा है।जबकि प्रदेश के शिक्षक राशन वितरण, पुष्टाहार वितरण, राशनकार्ड का सत्यापन, हॉटस्पॉट क्षेत्रों व कोरन्टीन केन्द्रों पर बिना किसी सुरक्षा के ड्यूटी देकर निरंतर सहयोग कर रहे हैं।प्रदेश के बेसिक शिक्षक ही हैं जिन्होंने सबसे पहले कोरोना से लड़ाई में लगभग 75 करोड़ रुपये अपने वेतन से देकर सरकार का सहयोग किया।शिक्षक सदैव सरकार को सहयोग करता आया है और करता रहेगा।परंतु शिक्षक निरीह नहीं है अपने सम्मान की रक्षा करना जानता है।सदैव की है और आगे भी करेंगे। शिक्षक साथियों से अनुरोध करता हूँ कि अपने स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का ध्यान रखें।