सी.एम.ने स्कूल के निरीक्षण के दौरान जो व्यवहार किया वो उनकी ही सरकार के
भृष्ट अधिकारियों के लिये एक सबक होना चाहिये जो स्कूल मे निरीक्षण करते
हैं
तो उनका मकसद ये ही रहता है कि जिस स्कूल का भी निरीक्षण हो उस स्कूल के अध्यापक से,चाहे उस अध्यापक ने व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों ना कर रखी हो,उसपर कोई ना कोई कमी निकालकर उसका आर्थिक शोषण किया जाय.सी एम क्लास मे पड़ी कुर्सी पर ही बैठ गये,अधिकारी चाहे किसी भी विभाग का क्यों ना हो सीधे प्रधानाध्यापक की ऑफीस मे पड़ी कुर्सी पर ही बैठता है.सी एम ने क्लास मे पूछा की राष्ट्र गान आता है तो मात्र एक बच्चे ने हाथ उठाया.अधिकारी तो किसी एक बच्चे को खड़ा करके पूछता है यदि उस बच्चे से नही बताया गया तो वो शिक्षण गुणवत्ता को ही शून्य मान लेता है.क्योंकि उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ अध्यापक(यदि उस अध्यापक का राजनीतिक प्रभाव नही हो तो) का शोषण करना है.इन अधिकारियों की महानता देखिये ये स्कूल की सिर्फ नेगेटिव छवि दिखाते हैं.ये स्कूल/छात्रों/अध्यापकों की समस्याओं का समाधान नही करते बल्कि उनकी समस्याओं को बढ़ाते हैं..निरीक्षण के बाद अगले दिन अखबारों मे पूरे एक पेज पर ख़बर आती है कि वहाँ अध्यापक अनुपस्थित मिला,उस स्कूल मे शिक्षण कार्य शून्य मिला,एम डी एम सही नही मिला आदि आदि.कभी भी ये पढ़ने/सुनने को नही मिलता कि उस अधिकारी ने जाकर शिक्षण कार्य मे सहयोग किया,अध्यापक/स्कूल/छात्रों की समस्याओं के निराकरण हेतु प्रयास किया.ऐसा कभी भी सुनने पढ़ने को नही मिला है.बेसिक स्कूल/अध्यापक की नकारात्मक छवि बनाने मे इन भृष्ट अधिकारियों का बहुत बड़ा योगदान है.
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तो उनका मकसद ये ही रहता है कि जिस स्कूल का भी निरीक्षण हो उस स्कूल के अध्यापक से,चाहे उस अध्यापक ने व्यवस्था कितनी भी अच्छी क्यों ना कर रखी हो,उसपर कोई ना कोई कमी निकालकर उसका आर्थिक शोषण किया जाय.सी एम क्लास मे पड़ी कुर्सी पर ही बैठ गये,अधिकारी चाहे किसी भी विभाग का क्यों ना हो सीधे प्रधानाध्यापक की ऑफीस मे पड़ी कुर्सी पर ही बैठता है.सी एम ने क्लास मे पूछा की राष्ट्र गान आता है तो मात्र एक बच्चे ने हाथ उठाया.अधिकारी तो किसी एक बच्चे को खड़ा करके पूछता है यदि उस बच्चे से नही बताया गया तो वो शिक्षण गुणवत्ता को ही शून्य मान लेता है.क्योंकि उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ अध्यापक(यदि उस अध्यापक का राजनीतिक प्रभाव नही हो तो) का शोषण करना है.इन अधिकारियों की महानता देखिये ये स्कूल की सिर्फ नेगेटिव छवि दिखाते हैं.ये स्कूल/छात्रों/अध्यापकों की समस्याओं का समाधान नही करते बल्कि उनकी समस्याओं को बढ़ाते हैं..निरीक्षण के बाद अगले दिन अखबारों मे पूरे एक पेज पर ख़बर आती है कि वहाँ अध्यापक अनुपस्थित मिला,उस स्कूल मे शिक्षण कार्य शून्य मिला,एम डी एम सही नही मिला आदि आदि.कभी भी ये पढ़ने/सुनने को नही मिलता कि उस अधिकारी ने जाकर शिक्षण कार्य मे सहयोग किया,अध्यापक/स्कूल/छात्रों की समस्याओं के निराकरण हेतु प्रयास किया.ऐसा कभी भी सुनने पढ़ने को नही मिला है.बेसिक स्कूल/अध्यापक की नकारात्मक छवि बनाने मे इन भृष्ट अधिकारियों का बहुत बड़ा योगदान है.
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