माननीय सर्वोच्च न्यायालय के नाम खुला पत्र। देश की कार्यपालिका को सही दिशा देने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय सदैव श्री कृष्ण की भूमिका निभाता रहा है। और इस बार भी शिक्षामित्रों के पौने दो लाख परिवारों के साथ न्याय कर के उनका मान बढ़ाएगा।
कल हमारे संज्ञान में आया कि एक बीएड बेरोज़गार ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय को पत्र लिख कर न्याय को अपने पक्ष में करने के लिए तथ्यों को तोड़ मरोड़ के पेश किया। सर्वप्रथम तो किसी भी न्यायाधीश को पत्र लिख कर अपने मुक़द्दमे को पक्ष में करने को कहना या तथ्यों को गलत तरीके से रखना अपराध की श्रेणी में आता है। चूँकि ये बीएड धारक बेरोज़गार वर्ष 2014 से अब तक लगातार प्रदेश में अराजकता फैला रहे हैं। प्रदेश सरकार इनकी अराजकता से परेशान हो कर इन पर एफआईआर दर्ज करवाने को मज़बूर है। अब एक बार फिर न्याय की सर्वोच्च संस्था के माननीय न्यायाधीश महोदय को पत्र लिख कर कोर्ट के नियमों पर कुठाराघात किया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त न्यायाधीश महोदय से अनुरोध है कि इस व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करें ताकि कोई भी न्याय व्यवस्था में दखलंदाज़ी करने की हिम्मत न करे और एक नज़ीर बने।
हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि
आप के द्वारा निर्णीत उन्नीकृष्णन केस के कारण ही देश में 86 वां संविधान संशोधन किया गया और सब के लिए शिक्षा परियोजना शुरू कर के छात्र शिक्षक अनुपात बनाने के लिए एसएसए शिक्षकों अर्थात पैरा शिक्षकों की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की गई।
इस के बाद वर्ष 2005 में आरटीई एक्ट लागू करने की पूरी तैयारी कर ली गई लेकिन राज्य ने आर्थिक रूप से कमज़ोर होने का हवाला दे कर इसे स्थगित कर दिया गया। वर्ष 2004-5 में ही सभी शिक्षामित्रों को शिक्षकों के मूल वेतन के बराबर वेतन देने को केंद्र ने एडवाइजरी और गाइड लाइन जारी की। लेकिन राज्यों ने इसे लागू नहीं किया बल्कि हमें बहुत कम मानदेय पर काम करने को मज़बूर किया।
यहाँ उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन विश्वविद्यालय, भारत सरकार व् एनसीईआरटी ने एसएसए के तहत सर्वे रिपोर्ट जारी कर ये बताया कि देश में बुन्यादी शिक्षा को इन्ही लोगों ने संभाल रखा है। और ये लोग ही हैं जो देश में संविधान अनुच्छेद 21क को लागू करवाने के लिए खून पसीना बहा रहे हैं और बदले में 2 से 3 हज़ार रूपये पा रहे हैं।
हम पुनः आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 21 क को लागु करवाने के उद्देश्य से देश में 1 अप्रैल 2010 को आरटीई एक्ट लागू किया गया। और इसके लागू करने से पूर्व ही शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित कर शिक्षक बनाने का मसौदा तैयार किया गया।
और इसके लिए भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ही व्यवस्था दी। उपेन्द्र राय केस में आप के द्वारा एनसीटीई को शिक्षक की योग्यता तै करने का अधिकार छीन लिया। और फिर केंद्र सरकार ने एनसीटीई को शैक्षिक प्राधिकारी बनाने की व्यवस्था की और एनसीटीई एक्ट 1993 में संशोधन कर सेक्शन 12क जोड़ा और 32डीडी में संशोधन कर के शिक्षामित्रों को शिक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया।
हम ये भी आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि बीएड को आप के द्वारा विभिन्न केसेस में प्राथमिक शिक्षा के लिए अवैध घोषित किया जा चुका है।
साथ ही एनसीटीई द्वारा ने भी बीएड को ये कह कर अवैध बताया है कि
Note :
For appointment of teachers for primary classes, basic teachers’ training programme of 2 years’ duration is required. B.Ed. is not a substitute for basic teachers’ training programme.
इलाहबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा जिसे आप के ही द्वारा गठित करने का निर्देश दिया था उक्त पीठ ने भी बीएड को प्राथमिक शिक्षा में अवैध घुसपैठ बताया है
और इनको बेसिक में शिक्षक बनने के लिए 31 मार्च 2014 तक ही छूट दी गई है। क्योंकि राज्य का कहना था प्रदेश में शिक्षामित्रों के शिक्षक बना देने के बाद भी आरटीई मानक अनुसार शिक्षकों की कमी है
अतः राज्य को बीएड भर्ती की छूट दी जाये। और मज़बूरीवश केंद्र सरकार को छूट देना पड़ी। टेट में हुआ भ्रष्टाचार और फर्जीबाड़ा आप के संज्ञान में है ही।
इस सब के बावजूद बीएड धारक माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय पर मानसिक दवाब डालने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। कृपया प्रकरण का संज्ञान लेकर कठोर कार्यवाही करने की कृपा करें।
ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
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हम माननीय सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि
आप के द्वारा निर्णीत उन्नीकृष्णन केस के कारण ही देश में 86 वां संविधान संशोधन किया गया और सब के लिए शिक्षा परियोजना शुरू कर के छात्र शिक्षक अनुपात बनाने के लिए एसएसए शिक्षकों अर्थात पैरा शिक्षकों की व्यवस्था राज्य सरकारों द्वारा की गई।
इस के बाद वर्ष 2005 में आरटीई एक्ट लागू करने की पूरी तैयारी कर ली गई लेकिन राज्य ने आर्थिक रूप से कमज़ोर होने का हवाला दे कर इसे स्थगित कर दिया गया। वर्ष 2004-5 में ही सभी शिक्षामित्रों को शिक्षकों के मूल वेतन के बराबर वेतन देने को केंद्र ने एडवाइजरी और गाइड लाइन जारी की। लेकिन राज्यों ने इसे लागू नहीं किया बल्कि हमें बहुत कम मानदेय पर काम करने को मज़बूर किया।
यहाँ उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय शैक्षिक प्रबंधन विश्वविद्यालय, भारत सरकार व् एनसीईआरटी ने एसएसए के तहत सर्वे रिपोर्ट जारी कर ये बताया कि देश में बुन्यादी शिक्षा को इन्ही लोगों ने संभाल रखा है। और ये लोग ही हैं जो देश में संविधान अनुच्छेद 21क को लागू करवाने के लिए खून पसीना बहा रहे हैं और बदले में 2 से 3 हज़ार रूपये पा रहे हैं।
हम पुनः आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 21 क को लागु करवाने के उद्देश्य से देश में 1 अप्रैल 2010 को आरटीई एक्ट लागू किया गया। और इसके लागू करने से पूर्व ही शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित कर शिक्षक बनाने का मसौदा तैयार किया गया।
और इसके लिए भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ही व्यवस्था दी। उपेन्द्र राय केस में आप के द्वारा एनसीटीई को शिक्षक की योग्यता तै करने का अधिकार छीन लिया। और फिर केंद्र सरकार ने एनसीटीई को शैक्षिक प्राधिकारी बनाने की व्यवस्था की और एनसीटीई एक्ट 1993 में संशोधन कर सेक्शन 12क जोड़ा और 32डीडी में संशोधन कर के शिक्षामित्रों को शिक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया।
हम ये भी आप के संज्ञान में लाना चाहते हैं कि बीएड को आप के द्वारा विभिन्न केसेस में प्राथमिक शिक्षा के लिए अवैध घोषित किया जा चुका है।
साथ ही एनसीटीई द्वारा ने भी बीएड को ये कह कर अवैध बताया है कि
Note :
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इलाहबाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ द्वारा जिसे आप के ही द्वारा गठित करने का निर्देश दिया था उक्त पीठ ने भी बीएड को प्राथमिक शिक्षा में अवैध घुसपैठ बताया है
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अतः राज्य को बीएड भर्ती की छूट दी जाये। और मज़बूरीवश केंद्र सरकार को छूट देना पड़ी। टेट में हुआ भ्रष्टाचार और फर्जीबाड़ा आप के संज्ञान में है ही।
इस सब के बावजूद बीएड धारक माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश महोदय पर मानसिक दवाब डालने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं। कृपया प्रकरण का संज्ञान लेकर कठोर कार्यवाही करने की कृपा करें।
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