प्रदेश में भर्ती की कोई नियमावली नहीं , एक लाख शिक्षकों की नौकरी बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर , सुनवाई 23 जनवरी को

इलाहाबाद वरिष्ठ संवाददातायूपी के सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में एकेडमिक रिकार्ड के आधार पर नियुक्त तकरीबन एक लाख शिक्षकों की नौकरी बचाने के लिए कुछ शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसकी सुनवाई 23 जनवरी को होनी है।
29,334 भर्ती में चयनित विक्रमादित्य सिंह व 15 हजार में चयनित अनिल मौर्य समेत अन्य की ओर से दायर याचिकाएं राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद की 11 फरवरी 2011 की गाइडलाइन और यूपी की अध्यापक सेवा नियमावली संशोधन के संबंध में दाखिल की गई है।इसके पूर्व इलाहाबाद हाईकोर्ट की वृहदपीठ के टीईटी वेटेज संबंधी निर्णय के खिलाफ दीपक शर्मा समेत अन्य पूर्व में याचिका दायर कर चुके हैं जिसकी सुनवाई 6 फरवरी को होनी है। इन नई याचिकाओं में एक दिसंबर 2016 को 16वां संशोधन रद्द करने को चुनौती दी गई है। संशोधन रद्द होने के कारण उच्च प्राथमिक स्कूलों में विज्ञान व गणित विषय के 29,334 सहायक अध्यापकों के साथ ही पिछले चार साल में हुई 9770, 10800, 4280 उर्दू, 10000, 15000 और 16448 सहायक अध्यापकों की भर्ती पर संवैधानिक खतरा पैदा हो गया है। जबकि पूर्व में शिव कुमार पाठक के केस में नियमावली के 15वें संशोधन 14(3) (परिशिष्ट) को 20 नवंबर 2013 को ही रद्द किया जा चुका है। इसके खिलाफ राज्य सरकार 2014 से सुप्रीम कोर्ट में लड़ रही है। इसी के आधार पर 16वें संशोधन को रद्द कर दिया गया है। इसके बाद प्रदेश में भर्ती की कोई नियमावली ही नहीं बची है।पैरवीकारों दीपक शर्मा, विक्रमादित्य सिंह, अनिल राजभर, अनिल मौर्या, कृष्णकान्त यादव का कहना है कि चयन का आधार तय करना राज्य का अधिकार है। न्यूनतम योग्यता तय करना एनसीटीई के दायरे में है। इसलिए उनकी चयन प्रक्रिया में एनसीटीई हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
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