कॉलेजों में भी बिना नेट नियुक्ति नहीं
मेरठ वरिष्ठ संवाददाता बिना नेट उत्तीर्ण किए सिर्फ पीएचडी के आधार पर कैंपस के विभिन्न कोर्स में पढ़ा रहे संविदा शिक्षकों की सीसीएसयू ने सेवाएं खत्म कर दी है। सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए विश्वविद्यालय ने इसी महीने इन शिक्षकों की सेवाएं खत्म होने के आदेश दे दिए हैं। विश्वविद्यालय के इस फैसले से कैंपस से कॉलेजों तक शिक्षकों में हड़कंप मच गया है।
कैंपस के बाद नए सत्र में कॉलेजों में भी बिना नेट पढ़ा रहे संविदा शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडराने लगा है।कैंपस में 40 रेगुलर और सेल्फ फाइनेंस कोर्स में संविदा शिक्षक कार्यरत हैं। विश्वविद्यालय इन्हें टीचिंग असिस्टेंट मानता है। इनमें से अधिकांश शिक्षक कैंपस में लंबे समय से पढ़ा रहे हैं। पिछले वर्ष सीसीएसयू ने नए शिक्षकों की नियुक्ति की। उस वक्त विश्वविद्यालय ने नेट से छूट देते हुए पीएचडी डिग्रीधारकों को नियुक्ति दी थी, लेकिन इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने प्रवक्ता के लिए नेट अनिवार्य कर दिया। इसी का हवाला देते हुए कार्यवाहक रजिस्ट्रार प्रभाष द्विवेदी ने 31 मई को बिना नेट सभी संविदा शिक्षकों की नियुक्ति निरस्त करने के आदेश दे दिए। सीसीएसयू ने आदेश को एक माह का नोटिस मानने की बात कही है। वहीं, विश्वविद्यालय के इस फैसले से शिक्षक लामबंद हो गए हैं। शिक्षकों के अनुसार फैसला प्रवक्ता पद पर स्थायी नियुक्ति के लिए है, संविदा पर नहीं। आखिर फैसले का औचित्य क्या है: सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला देते हुए सीसीएसयू के इस पत्र पर शिक्षकों ने सवाल खड़े किए हैं। शिक्षकों के अनुसार कुछ अधिकारी जानबूझकर कैंपस को गर्त में ले जाने पर तुले हैं। संविदा शिक्षक आदेशों के दायरे में नहीं आते। साथ ही, यूजीसी में यह मामला अभी विचाराधीन है। ऐसे में सीसीएसयू की कार्रवाई एकतरफा है।
कैंपस में आदेश लागू होने का असर कॉलेजों तक जाएगा। डिग्री कॉलेजों में
फिलहाल पीएचडी धारक पढ़ा रहे हैं। कॉलेज इनको ज्यादा सेलरी भी नहीं देते।
लेकिन नेट की बाध्यता से छात्र एवं कॉलेज दोनों के सामने संकट खड़ा होना तय
है। कॉलेज की बाध्यता अब नेट उत्तीर्ण छात्रों को रखने की होगी, जबकि
पीएचडी धारक बेरोजगार हो जाएंगे। इसका सर्वाधिक असर कार्यरत पीएचडी धारकों
पर होगा। विश्वविद्यालय के अनुसार ट्रेडिशनल कोर्स में ही यूजी-पीजी में नौ
जिलों में करीब एक हजार पीएचडी धारक पढ़ा रहे हैं।
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