यूजीसी से अपात्र लोगों को पीडीएफ लेने का आरोप, मेरठ से प्रधानमंत्री को हुई शिकायत
जागरण संवाददाता, मेरठ: यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) से मिलने वाले पीडीएफ (पोस्ट डाक्टरल फेलोशिप) को अपात्र लोग भी हासिल कर रहे हैं। आरोप है कि बगैर पीएचडी किए अभ्यर्थियों तक को इस फेलोशिप के लिए चुन लिया जा रहा है। इस मामले में मेरठ के एक अभ्यर्थी ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्रलय से शिकायत की है।
..यूजीसी के स्तर पर एससी-एसटी पोस्ट डाक्टरल फेलोशिप में किस तरह की गड़बड़ी हो रही है, इसका खुलासा मेरठ के डीएन डिग्री कालेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. यशवंत राय ने किया है, जिसमें उन्होंने पिछले सात वर्षो में करोड़ों रुपये की फेलोशिप अपात्र हाथों तक पहुंचने का आरोप लगाया है। इस मामले में बुधवार को प्रधानमंत्री को पूरे साक्ष्य सहित पत्र भेजकर शिकायत की गई है। अपने पत्र में डा. यशवंत ने बताया कि पीडीएफ की इंटरफेस मीटिंग में अपात्र अभ्यर्थियों को टॉप रैंक पर रख दिया गया। इसमें ऐसे अभ्यर्थी, जिसने वर्ष 2012 में पीएचडी की, का चयन 2010 -11 में पीडीएफ के लिए हो गया। कई अभ्यर्थियों का एनओसी न होने पर भी उन्हें टॉप रैंक देकर रिकमंड कर दिया गया। यहीं नहीं कई अभ्यर्थियों को दोबारा से पीडीएफ के लिए चुन लिया गया। सबसे बड़ी बात यह कि कई अभ्यर्थियों के कोई भी शोध पत्र न प्रकाशित होने के बाद भी केवल उसके दावे के आधार पर उसका चुनाव कर लिया गया। यूजीसी के जिम्मेदार लोगों ने ऐसे शोध की जांच करना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे तमाम अपात्र लोगों के चयन से योग्य अभ्यर्थियों का हक मारा जा रहा है।
पांच साल के लिए पीडीएफ : यूजीसी की नई नियमावली में एससी-एसटी के पीडीएफ में करीब 50 हजार रुपये महीने की फेलोशिप पांच साल के लिए मिलती है। जिसमें 25 हजार रुपये हर महीने दो साल तक, तीसरे साल से 30 हजार रुपये महीने मिलता है। 50 हजार रुपये वार्षिक पांच साल के लिए कंटीजेंसी फेलोशिप, दो हजार रुपये महीने रीडर असिस्टेंट के लिए और इसके लिए अलावा एचआरए दिया जाता है। ऐसे में अगर अपात्र लोग यह राशि हड़प रहे हैं तो यूजीसी की साख पर सवाल उठना लाजिमी है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
जागरण संवाददाता, मेरठ: यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) से मिलने वाले पीडीएफ (पोस्ट डाक्टरल फेलोशिप) को अपात्र लोग भी हासिल कर रहे हैं। आरोप है कि बगैर पीएचडी किए अभ्यर्थियों तक को इस फेलोशिप के लिए चुन लिया जा रहा है। इस मामले में मेरठ के एक अभ्यर्थी ने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन मंत्रलय से शिकायत की है।
..यूजीसी के स्तर पर एससी-एसटी पोस्ट डाक्टरल फेलोशिप में किस तरह की गड़बड़ी हो रही है, इसका खुलासा मेरठ के डीएन डिग्री कालेज के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. यशवंत राय ने किया है, जिसमें उन्होंने पिछले सात वर्षो में करोड़ों रुपये की फेलोशिप अपात्र हाथों तक पहुंचने का आरोप लगाया है। इस मामले में बुधवार को प्रधानमंत्री को पूरे साक्ष्य सहित पत्र भेजकर शिकायत की गई है। अपने पत्र में डा. यशवंत ने बताया कि पीडीएफ की इंटरफेस मीटिंग में अपात्र अभ्यर्थियों को टॉप रैंक पर रख दिया गया। इसमें ऐसे अभ्यर्थी, जिसने वर्ष 2012 में पीएचडी की, का चयन 2010 -11 में पीडीएफ के लिए हो गया। कई अभ्यर्थियों का एनओसी न होने पर भी उन्हें टॉप रैंक देकर रिकमंड कर दिया गया। यहीं नहीं कई अभ्यर्थियों को दोबारा से पीडीएफ के लिए चुन लिया गया। सबसे बड़ी बात यह कि कई अभ्यर्थियों के कोई भी शोध पत्र न प्रकाशित होने के बाद भी केवल उसके दावे के आधार पर उसका चुनाव कर लिया गया। यूजीसी के जिम्मेदार लोगों ने ऐसे शोध की जांच करना भी जरूरी नहीं समझा। ऐसे तमाम अपात्र लोगों के चयन से योग्य अभ्यर्थियों का हक मारा जा रहा है।
पांच साल के लिए पीडीएफ : यूजीसी की नई नियमावली में एससी-एसटी के पीडीएफ में करीब 50 हजार रुपये महीने की फेलोशिप पांच साल के लिए मिलती है। जिसमें 25 हजार रुपये हर महीने दो साल तक, तीसरे साल से 30 हजार रुपये महीने मिलता है। 50 हजार रुपये वार्षिक पांच साल के लिए कंटीजेंसी फेलोशिप, दो हजार रुपये महीने रीडर असिस्टेंट के लिए और इसके लिए अलावा एचआरए दिया जाता है। ऐसे में अगर अपात्र लोग यह राशि हड़प रहे हैं तो यूजीसी की साख पर सवाल उठना लाजिमी है।
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