लखनऊ। तमाम परीक्षाओं को लेकर विवादों में घिरे उत्तर प्रदेश लोक सेवा
आयोग ने प्रतियोगियों के लिए तमाम राहत भरे वायदे जरूर कर लिए हैं लेकिन
इसकी राह इतनी आसान भी नहीं है। आइएएस परीक्षा की तर्ज पर पीसीएस का
पाठ्यक्रम निर्धारित करने में तमाम तकनीकी बाधाओं का सामना भी करना पड़ेगा।
सबसे बड़ा रोड़ा तो शासन का है जो पहले भी एक बार यह प्रस्ताव ठुकरा चुका है। इसके अलावा स्केलिंग की समीक्षा, विशेषज्ञों की गुणवत्ता जांचने आदि में भी मुश्किलें खड़ी होनी तय हैं।
आयोग के नए अध्यक्ष डा. सुनील कुमार जैन को महज तीन महीने का ही वक्त मिला है। इसी बीच राज्यपाल ने नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति का आदेश भी सरकार को दिया है। यदि सरकार नया अध्यक्ष नियुक्त करती है तो उसकी प्राथमिकताएं आयोग की दशा-दिशा तय करेंगी। कार्यवाहक अध्यक्ष के अधिकारों को लेकर भी बहस शुरू हुई है। जानकारों की मानें तो एक नए अध्यक्ष एक सीमा के भीतर ही फैसले कर पाएंगे। यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें आयोग के सदस्यों का कितना समर्थन हासिल होता है। आयोग में लगभग सभी सदस्य डा. अनिल कुमार यादव के दौर के ही हैं और कुछ उनके काफी नजदीकी माने जाते रहे हैं। ऐसे में पुराने फैसलों को पलटना इतना सहज नहीं होगा।
सुखद बात यही है कि आयोग के लिए फिलहाल सीसैट को क्वालीफाइंग करने जैसा बड़ा फैसला लागू करने में कोई समस्या नहीं आएगी। संघ लोक सेवा आयोग इसे लागू कर चुका है और उत्तर प्रदेश में भी सिर्फ अनिल यादव की हठधर्मी की वजह से ही लागू नहीं हो पाया था। शासन भी सिद्धांतत: इससे सहमत है और खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने इस मुद्दे पर छात्रों का समर्थन किया था। मुलायम पहले भी अंग्र्रेजी की अनिवार्यता के विरोधी रहे हैं। स्केलिंग का मामला अलबत्ता उलझाने वाला है। इसका एक स्टेटिकल फार्मूला है जो सर्वमान्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी समीक्षा का रास्ता खोल जरूर रखा है लेकिन इससे नए विवाद भी उभर कर सामने आ सकते हैं। सबसे बड़ा मुद्दा विशेषज्ञों की गुणवत्ता का है। कई परीक्षाओं में विशेषज्ञों को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। सूत्रों की मानें तो अनिल यादव ने अपनी इच्छानुसार लोगों को विशेषज्ञ बना रखा था। इसकी समीक्षा में भी नए अध्यक्ष को आयोग के भीतर से ही अवरोधों का सामना करना पड़ सकता है।
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सबसे बड़ा रोड़ा तो शासन का है जो पहले भी एक बार यह प्रस्ताव ठुकरा चुका है। इसके अलावा स्केलिंग की समीक्षा, विशेषज्ञों की गुणवत्ता जांचने आदि में भी मुश्किलें खड़ी होनी तय हैं।
आयोग के नए अध्यक्ष डा. सुनील कुमार जैन को महज तीन महीने का ही वक्त मिला है। इसी बीच राज्यपाल ने नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति का आदेश भी सरकार को दिया है। यदि सरकार नया अध्यक्ष नियुक्त करती है तो उसकी प्राथमिकताएं आयोग की दशा-दिशा तय करेंगी। कार्यवाहक अध्यक्ष के अधिकारों को लेकर भी बहस शुरू हुई है। जानकारों की मानें तो एक नए अध्यक्ष एक सीमा के भीतर ही फैसले कर पाएंगे। यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें आयोग के सदस्यों का कितना समर्थन हासिल होता है। आयोग में लगभग सभी सदस्य डा. अनिल कुमार यादव के दौर के ही हैं और कुछ उनके काफी नजदीकी माने जाते रहे हैं। ऐसे में पुराने फैसलों को पलटना इतना सहज नहीं होगा।
सुखद बात यही है कि आयोग के लिए फिलहाल सीसैट को क्वालीफाइंग करने जैसा बड़ा फैसला लागू करने में कोई समस्या नहीं आएगी। संघ लोक सेवा आयोग इसे लागू कर चुका है और उत्तर प्रदेश में भी सिर्फ अनिल यादव की हठधर्मी की वजह से ही लागू नहीं हो पाया था। शासन भी सिद्धांतत: इससे सहमत है और खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने इस मुद्दे पर छात्रों का समर्थन किया था। मुलायम पहले भी अंग्र्रेजी की अनिवार्यता के विरोधी रहे हैं। स्केलिंग का मामला अलबत्ता उलझाने वाला है। इसका एक स्टेटिकल फार्मूला है जो सर्वमान्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी समीक्षा का रास्ता खोल जरूर रखा है लेकिन इससे नए विवाद भी उभर कर सामने आ सकते हैं। सबसे बड़ा मुद्दा विशेषज्ञों की गुणवत्ता का है। कई परीक्षाओं में विशेषज्ञों को लेकर सवाल खड़े हुए हैं। सूत्रों की मानें तो अनिल यादव ने अपनी इच्छानुसार लोगों को विशेषज्ञ बना रखा था। इसकी समीक्षा में भी नए अध्यक्ष को आयोग के भीतर से ही अवरोधों का सामना करना पड़ सकता है।
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