क्या कभी छात्र संख्या घटने के कारणों पर हमारे नीति निर्धारकों ने विचार किया ???? : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

क्या कभी छात्र संख्या घटने के कारणों पर हमारे नीति निर्धारकों ने विचार किया।
1- प्राईवेट स्कूल अपनी अच्छाइयों के प्रचार प्रसार में बहुत धन का उपयोग करते हैं और सरकारी में बुराइयों के प्रचार प्रसार के लिए अधिकतर शासन, समाज व समाचार पत्र पूरी निष्ठा का उपयोग करते हैं।सरकारी में प्रचार प्रसार के लिए धन  क्यों नहीं?

2- सरकारी में बच्चों की चिंता तो प्राईवेट स्कूल अभी तक बन्द क्यों नहीं?
3- प्राईवेट स्कूलों के अवैध वाहन बन्द क्यों नहीं?
4- प्राईवेट में बच्चा विद्यालय न आये तो अभिभावक दोषी और सरकारी में बच्चा विद्यालय न आये तो शिक्षक दोषी।ऐसा अन्याय क्यों?

5- मिड डे मील, भवन निर्माण, भवन रखरखाव, निःशुल्क पुस्तक और निःशुल्क यूनीफॉर्म में सहयोगी व सहभागी सब पर दण्डित केवल अध्यापक ही क्यों?
6- शिक्षण कार्य सतत अभ्यास का है फिर सरकारी शिक्षक को शिक्षण कार्य के अतिरिक्त अनेक कार्य क्यों?
7- विद्यालय संचालन में एक बैंक खाता और एक विद्यालय प्रबंधन समिति के अतिरिक्त बैंक खाते और समितियों का उलझाने वाला चक्रव्यूह क्यों?
8- गरीब और अमीर के लिए समान शिक्षा नीति क्यों नहीं? सरकारी शिक्षा पर आरोप लगाने वाले अपने बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ा के देखते क्यों नहीं?
9- जनसंख्या नियंत्रण जागरूकता अभियान के बावजूद अधिक बच्चों की आशा क्यों।
10- प्राईवेट स्कूलों में एक कक्षा एक शिक्षक और सरकारी में एक शिक्षक दो कक्षाएं। प्राईवेट में कक्षा एक पांच साल में और सरकारी में पांच साल में कक्षा पांच अनिवार्य पास। फिर दोनों की तुलना क्यों?
11- प्राईवेट में प्रधानाध्यापक व प्रबंधक को अपनी अवश्यकतानुसार स्वयं निर्णय का अधिकार।सरकारी में शासनादेश व अधिकारी को अधिकार। फिर तुलना क्यों।
12- प्राईवेट में प्रत्येक कार्य अभिभावक के अनुकूल व सुविधा अनुसार और सरकारी में शासन की मंशा के अनुसार।फिर तुलना क्यों?
13- विद्यालय संचालन का समय और मिड डे मील का मीनू अभिभावक, बच्चों और विद्यालय प्रबंधन समिति के अनुसार क्यों नहीं?

14- प्राईवेट में केवल विद्यार्थी पढ़ते है और सरकारी में अगड़ी पिछड़ी ए.पी.एल, बी.  पी. एल. अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक वर्ग के छात्र पढ़ते है । सरकारी योजनाएं के लालच से अबोध बच्चों को जाति वर्ग का अप्रत्यक्ष पाठ पढ़ाया जाता। जो बहुत से अभिभावक पसंद नहीं करते हैं। ऐसे परिवेश में सभी जाति वर्ग के एक साथ एक विद्यालय में पढ़ने की आशा क्यों?  हमें देव स्वरूप अबोध बच्चों को राष्ट्र हित के लिए बिना भेदभाव के केवल शिक्षित करने दो। हमें भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह के चक्कर से मुक्त करो।
अन्यथा आरोप लगाना बन्द करो।
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