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अध्यापकों के समायोजन की छूट : संशोधन कानून की वैधता पर जवाब तलब, महाधिवक्ता को नोटिस जारी : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

विधि संवाददाता, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिग्री कॉलेजों में कार्यरत अंशकालिक अध्यापकों को समायोजित करने की राज्य सरकार को छूट दी है किंतु शर्त यह लगाई है कि समायोजन उन पदों पर नहीं होगा जिन्हें आयोग द्वारा नियमित भर्ती के लिए विज्ञापित या अधिसूचित किया जा चुका है।

कोर्ट ने उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग संशोधन एक्ट 2014 की वैधता के मुद्दे पर महाधिवक्ता को सरकार का पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी की है। साथ ही राज्य सरकार व पार्ट टाइम टीचरों से याचिका पर छह हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई 26 जुलाई, को होगी।
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यह आदेश न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति पीसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने डॉ.दीनानाथ यादव व सात अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर स्थायी अधिवक्ता वीके चंदेल ने पक्ष रखा। कोर्ट ने कहा है कि कानून संशोधन की यह मंशा नहीं रही है कि सभी खाली पदों पर अंशकालिक अध्यापकों का समायोजन कर दिया जाए और नियमित भर्ती ही न होने पाए। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा विचारणीय है।

मालूम हो कि डिग्री कॉलेजों में प्रवक्ता भर्ती विज्ञापन आयोग द्वारा 2003, 2005, 2008 व 2014 में निकाला गया। मानदेय पर नियुक्त अंशकालिक अध्यापकों की याचिका सहित अन्य विवादों के चलते भर्ती नहीं की जा सकी। मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। सरकार ने अंशकालिक अध्यापकों को नियमित करने के लिए कानून में संशोधन किया जिसे भी चुनौती दी गई है। इन अध्यापकों के समायोजन का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। याचिका में संशोधन कानून की वैधता को यह कहते हुए चुनौती दी गई कि नियमित नियुक्ति न होने के कारण अंशकालिक को नियमित कर पद भरा नहीं जा सकता। सरकार की तरफ से कहा गया कि आयोग की भर्ती न्यायिक विवादों में उलझी होने के कारण शिक्षण कार्य की आपात स्थिति को देखते हुए सरकार ने समायोजन की व्यवस्था की है। धारा 31(ई) को संशोधित किया गया है। कोर्ट ने कहा कि स्टॉप गैप व्यवस्था नियमित नियुक्ति का विकल्प नहीं हो सकती। कोर्ट ने प्रथम दृष्टया संशोधन कानून को गलत माना है।
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