बोले शिक्षक- बंद हो शिक्षा का राजनीतिकरण , शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत

वाराणसी. शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है। मौजूदा व्यवस्था में कुछ ऐसी खामियां हैं जिनके चलते शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही। इसके लिए सबसे जरूरी है कि शिक्षा का राजनीतिकरण बंद हो। विद्यालयों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति हो।
विगत 46 साल में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में काफी गिरावट आई है। इसके पीछे शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया कहीं ज्यादा जिम्मेदार है।
यह कहना है शिवपुर विधानसभा के शिक्षकों का। पत्रिका के जागो जनमत मुहिम के तहत विधानसभा के शिक्षकों से हमने बात की जिसमें उन्होंने बड़ी साफगोई से शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए टिप्स दिए। प्रस्तुत है बातचीत के अंश...

इंक्रीमेंट छात्रों के परीक्षाफल के आधार पर तय हो
1970 तक प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति कहीं बेहतर थी। स्कूलों में अच्छी पढ़ाई होती थी। हां तब शिक्षक गुरुतर दायित्व का निर्वहन करते रहे। लेकिन ऐसा तब शिक्षक नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी थी। शिक्षकों की नियुक्ति उनकी योग्यता के आधार पर होती रही। वर्तमान में नियुक्ति का मानक बदल गया है। योग्यता गौंण हो गई है। ऐसे में शिक्षक भी नौकरी करने लगा है। विद्यालय राजनीति का अखाड़ा बन गए हैं। इस पर रोक लगनी चाहिए। शासन को स्कूलों पर दबाव बनाना चाहिए। स्कूलों में पैनल निरीरक्षण की प्रक्रिया दृढ़ता के साथ लागू होनी चाहिए। वार्षिक परीक्षाफल की मानीटरिंग हो और उस मानीटरिंग के आधार पर इंक्रीमेंट का निर्धारण हो।- जितेंद्र बहादुर सिंह, किसान इंटर कॉलेज, मिर्जामुराद, निवासी दीनापुर, शिवपुर.
बंद हो शिक्षा का विभेदीकरण
शिक्षा का विभेदीकरण बंद होना चाहिए। इसकी जगह सामान्यीकरण लागू होना चाहिए। विद्यालय ऐसे हों जहां गरीब और अमीर के बच्चे साथ पढ़ें। शिक्षा का एक स्तर एक हो। वर्तमान में एक ही शहर में भिन्न-भिन्न तरह की शिक्षा प्रणाली लागू है। कहीं लड़के सिर्फ भोजन के लिए जाते हैं तो कहीं जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए। ये कोई व्यवस्था है। बच्चे तो बच्चे हैं। सबके लिए समान शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। स्कूल चाहे सरकारी हो या निजी, टाई, बूट से न शिक्षा का लेना देना है न जीवन स्तर से। जरूरी है कि चरित्र निर्माण पर जोर दिया जाए। इसके लिए स्कूलों में कार्यशालाएं आयोजित की जाएं। नैतिक पतन को रोका जाए। सामाजिक मूल्य, अपनी संस्कृति, राष्ट्रीयता का भावना जागृत की जाए बच्चों में। शिक्षा रोजगारपरक हो, स्त्री-पुरुष का भेद खत्म करने वाली हो। ऊंच-नींच का भेद खत्म करने वाली हो। डॉ. एसएन सिंह, प्रधानाचार्य चिल्ड्रेन एकेडमी, सारनाथ।
आर्थिक अभाव में न रुके पढ़ाई
वर्तमान में सरकारें चाहे जो कहें। जनप्रतिनिधि चाहे जो बताएं, पर ऐसे बच्चे-बच्चियों की तादाद ज्यादा है जो आर्थिक तंगी के चलते चाहते हुए भी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे। इसमें बच्चियों की संख्या ज्यादा है। हालांकि इसके पीछे स्त्री-पुरुष का भेद भी काम करता है। परिवार के बुजुर्ग कर्ज ले कर भी बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं पर ये ही भाव बच्चियों के लिए नहीं होता। ऐसे में खास तौर पर ग्रामीण इलाकों की ज्यादातर बच्चियों को बीच में ही पढ़ाई छोड़ देनी पड़ती है। इस दिशा में सरकारों को राजनीतिक दलों को काम करना चाहिए कि बच्चियों की शिक्षा में किसी तरह की रुकावट न आए। कन्या विद्याधन हो या टैबेलट या लैपटॉप वह तो एक स्तर तक पहुंचने के बाद मिलता है। जरूरत तो बुनियादी स्तर पर मदद की है। जब 10वीं, 12वीं तक पहुंच ही नहीं पाएंगी बच्चियां तो कहां से मिलेगी साइकिल, कन्याविद्या धन, लैपटॉप और टैबलेट। पूनम यादव, शिक्षिका, मां बागेश्वरी महिला महाविद्यालय, शक्तिपीठ, निवासी खजुहीं, शिवपुर।

शिक्षकों से शिक्षणेत्तर कार्य न लिया जाए
शिक्षक शिक्षा देने के लिए है न कि गाय-बैल, भैंस गिनने के लिए। दवा पिलाना हो तो शिक्षक, मतदाता बनाना हो तो शिक्षक। अब तो स्कूलों में खाना बनाने से लेकर बिल्डिंग बनवाने तक का काम शिक्षक ही करता है। ऐसे में उसके पास पढ़ाने का वक्त है कहां। सर्वोच्च न्यायालय तक का निर्देश है कि शिक्षकों से शिक्षणेत्तर कार्य न लिया जाए। लेकिन उसका पालन हो कहां रहा। मौजूदा समय में कभी चुनाव, कभी पल्स पोलियो, जनगणना, पशुगणना, पिछड़ा वर्ग गणना, समाजवादी पेंशन गणना, फल वितरण, दूध वितरण इन सब से मुक्ति मिले तब तो पढ़ाए शिक्षक। ऐसी व्यवस्था पर तत्काल प्रभाव से अंकुश लगना चाहिए। लेकिन इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिए। है किसके पास। दीपक मिश्रा, प्राइमरी शिक्षक, तिलिमापुर, शिवपुर।

शिक्षा ऐसी हो कि लड़कियों की स्थिति में सुधार हो
शिक्षा ऐसी चाहिए कि लड़कियों की स्थिति में सुधार हो। उन पर किसी तरह का दबाव न हो न घर पर, न कार्य स्थल पर न सड़क पर। ये कैसी शिक्षा कि लड़कों के लिए घर वापस आने का कोई वक्त नहीं और लड़कियां सूरज ढलने से पहले ही चौकठ के अंदर आ जाएं। जी हां आज 21वीं सदी में भी ये ही हाल है। जरा गांवों में घूम कर देखे। माहौल ऐसा बने कि सबको समान (लड़का-लड़की) अधिकार हो, समान शिक्षा मिले। शिक्षा ऐसी हो कि लड़कियां भी अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। उन्हें भी आर्थिक आजादी मिले। हां बच्चियां हों या किशोरी या युवती सभी को पर्याप्त सुरक्षा मिलनी चाहिए। ताकि वे स्वतंत्र भाव से जी सकें। आजादी की सांस ले सकें। रश्मि मिश्रा, प्राध्यापिका, जय प्रकाश डिग्री कॉलेज, निवासी आशापुर।

हर वर्ग को शिक्षित करने को बनें कमेटियां




समाज का हर वर्ग शिक्षित हो, इसके लिए जरूरी है कि हर गांव में एक कमेटी बनाई जाए। यह कमेटी हर जाति, वर्ग के बचचों को शिक्षित करने के लिए अभिभावकों को प्रेरित करे। बच्चों की पढ़ाई बीच में न रुकने पाए इसके लिए कमेटी लगातार मानीटरिंग करती रहे। इस कमेटी की सिफारिशों को शासन व प्रशासन तक पहुंचाया जाए। सिफारिशें लागू हों। अगर सबको शिक्षित करना है तो इसके लिए गंभीर प्रयास करने होंगे। केवल जुमलेबाजी से सबको शिक्षा नहीं दी जा सकती है। सबको शिक्षित नहीं किया जा सकता। जय प्रकाश दुबे, प्राइमरी शिक्षक, लूठां, चिरईगांव
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