राज्य ब्यूरो, इलाहाबाद : जिले के अंदर शिक्षकों के तबादले की बागडोर जिलाधिकारियों को यूं ही नहीं सौंपी गई है। दरअसल अब तक अधिकांश बीएसए की कार्यशैली पर सवाल उठते रहे हैं और इसी वजह से प्राथमिक शिक्षा की तस्वीर भी बदहाल हुई है
अधिकारियों ने विद्यालय का बेहतर संचालन एवं पठन-पाठन दुरुस्त कराने के बजाए शिक्षकों की सुविधा के अनुसार स्कूलों का आवंटन किया। यही वजह है कि प्रदेश में तमाम विद्यालय एकल शिक्षक एवं कई बंद चल रहे हैं।
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में इधर बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती होने के बाद पठन-पाठन में सुधार की उम्मीद थी, लेकिन वह अफसरों की कार्यशैली की भेंट चढ़ गई। तमाम नियुक्तियों से भी शिक्षकों कमी ज्यों की त्यों बनी है। यही नहीं कुछ स्कूलों में काफी अधिक शिक्षक तैनात हैं तो तमाम विद्यालय शिक्षक को तरस रहे हैं। इस असमानता के मूल में बीएसए ही हैं। हाल में ही शिक्षा निदेशक बेसिक ने संबद्ध शिक्षकों की सूची तलब की थी उसमें भी बड़े पैमाने पर ऐसे गुरू जी मिले जो पहुंच एवं प्रभाव के दम पर संबद्ध थे। उनका संबद्धीकरण जैसे-तैसे खत्म कराया गया है। शिक्षकों के प्रमोशन के बाद स्कूल आवंटन में गड़बड़ी की शिकायतें आम हैं। इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में जिले के अंदर शिक्षकों का तबादला किया गया इसमें परिषद सचिव से अनुमोदन भी लिया गया, लेकिन बीएसए ने स्थानांतरण में एकल एवं बंद स्कूलों की ओर गौर नहीं किया।
शासन ने व्यवस्था सुधारने के लिए डीएम को जिले के अंदर शिक्षकों के फेरबदल की कमान सौंप दी है, लेकिन यह तभी कारगर होगी, जब जिलाधिकारी खुद निरीक्षण करेंगे व मातहतों से दौरे कराएंगे। हर जिले की अहम समितियों का मुखिया डीएम होता है, पर रोजमर्रा की कार्यवाही की जिम्मेदारी किसी दूसरे अफसर को सौंपी जाती रही है। पहले जिले के अंदर तबादले मुख्य विकास अधिकारी के अनुमोदन से होते रहे हैं, लेकिन तस्वीर नहीं बदली। इसीलिए तीन वर्ष पहले शासन ने मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशकों की अगुवाई में समिति बनाई थी, लेकिन धीरे-धीरे वह भी असरहीन हो गई। इन तबादलों में बेसिक शिक्षा परिषद को जवाबदेह बनाए जाने की जरूरत थी, ताकि बीएसए पर विभागीय अफसरों का दबाव बनता, लेकिन बीएसए को मनमुताबिक फेरबदल का अब शासन ने लाइसेंस दे दिया है।
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अधिकारियों ने विद्यालय का बेहतर संचालन एवं पठन-पाठन दुरुस्त कराने के बजाए शिक्षकों की सुविधा के अनुसार स्कूलों का आवंटन किया। यही वजह है कि प्रदेश में तमाम विद्यालय एकल शिक्षक एवं कई बंद चल रहे हैं।
बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में इधर बड़ी संख्या में शिक्षकों की भर्ती होने के बाद पठन-पाठन में सुधार की उम्मीद थी, लेकिन वह अफसरों की कार्यशैली की भेंट चढ़ गई। तमाम नियुक्तियों से भी शिक्षकों कमी ज्यों की त्यों बनी है। यही नहीं कुछ स्कूलों में काफी अधिक शिक्षक तैनात हैं तो तमाम विद्यालय शिक्षक को तरस रहे हैं। इस असमानता के मूल में बीएसए ही हैं। हाल में ही शिक्षा निदेशक बेसिक ने संबद्ध शिक्षकों की सूची तलब की थी उसमें भी बड़े पैमाने पर ऐसे गुरू जी मिले जो पहुंच एवं प्रभाव के दम पर संबद्ध थे। उनका संबद्धीकरण जैसे-तैसे खत्म कराया गया है। शिक्षकों के प्रमोशन के बाद स्कूल आवंटन में गड़बड़ी की शिकायतें आम हैं। इस वर्ष गर्मी की छुट्टियों में जिले के अंदर शिक्षकों का तबादला किया गया इसमें परिषद सचिव से अनुमोदन भी लिया गया, लेकिन बीएसए ने स्थानांतरण में एकल एवं बंद स्कूलों की ओर गौर नहीं किया।
शासन ने व्यवस्था सुधारने के लिए डीएम को जिले के अंदर शिक्षकों के फेरबदल की कमान सौंप दी है, लेकिन यह तभी कारगर होगी, जब जिलाधिकारी खुद निरीक्षण करेंगे व मातहतों से दौरे कराएंगे। हर जिले की अहम समितियों का मुखिया डीएम होता है, पर रोजमर्रा की कार्यवाही की जिम्मेदारी किसी दूसरे अफसर को सौंपी जाती रही है। पहले जिले के अंदर तबादले मुख्य विकास अधिकारी के अनुमोदन से होते रहे हैं, लेकिन तस्वीर नहीं बदली। इसीलिए तीन वर्ष पहले शासन ने मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशकों की अगुवाई में समिति बनाई थी, लेकिन धीरे-धीरे वह भी असरहीन हो गई। इन तबादलों में बेसिक शिक्षा परिषद को जवाबदेह बनाए जाने की जरूरत थी, ताकि बीएसए पर विभागीय अफसरों का दबाव बनता, लेकिन बीएसए को मनमुताबिक फेरबदल का अब शासन ने लाइसेंस दे दिया है।
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