MAN KI BAAT : एक दिन सम्मान कहें तो साल के 365दिन अपमान!अच्छे शिक्षक होने के बावजूद सोर्स के बिना सम्मानित हो पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है, शिक्षक पूरी ईमानदारी और निष्ठा से बच्चों को पढ़ाते है, लेकिन महज एक दिन ही उनका सम्मान होता है, जबकि पूरे साल उन्हें कई अपमान सहने पड़ते........
शिक्षक दिवस के मौके पर सरकारें बेहतर अध्यापन कार्यों के लिए कई शिक्षकों का सम्मान आज कर रहीं है, ताकि शिक्षक और भी अच्छे ढंग से बच्चों को ज्ञान प्रदान कर सकें, लेकिन दुर्भाग्य है कि उस सम्मान को पाने के लिए शिक्षकों को खुद ही अपना आवेदन कुण्डली बनाकर देना पड़ता है। शिक्षक दिवस पर मिलने वाले राष्ट्रपति और राज्यपाल सम्मान के लिए उच्चाधिकारियों के समक्ष अपनी उपलब्लियां गिनवाना शिक्षकों की मजबूरी बन गई है। अच्छे शिक्षक होने के बावजूद सोर्स के बिना सम्मानित हो पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है । शिक्षक पूरी ईमानदारी और निष्ठा से बच्चों को पढ़ाते है, लेकिन महज एक दिन ही उनका सम्मान होता है, जबकि पूरे साल उन्हें कई अपमान सहने पड़ते हैं ।
‘शिक्षक दिवस’ कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है, लेकिन इसके महत्त्व को अधिकांश लोग नहीं समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है। वास्तव में शिक्षक दिवस मानने का मूल मकसद शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के समाज में महत्व के प्रति जागरुकता लाना है।
कुछ सवालों के साथ जबाब चाहिए - जहां एक ओर "शिक्षक दिवस" के अवसर पर सम्मान समारोह आयोजित कर पुरस्कार देने की प्रकिया चरम पर है वहीं उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में शिक्षक दिवस के ही दिन स्कूलों के निरीक्षण करवाये जा रहे हैं । मेरे सोच से परे है कि जब हम सब शिक्षक सभी गणमान्य और सम्मानित महानुभावों के दिवस को बड़े धूमधाम से मनाते बताते हैं तो क्या एक दिन ही सही शिक्षक दिवस पर स्कूलों के निरीक्षण की प्रकिया जो आज के दिन करावाये गये उसे न करवाये जाएं और न ही प्रश्न चिन्ह खड़े किये जाएं क्या यह सम्भव नहीं की सभी लोग शिक्षक सम्मान समारोह पूर्ण मनोयोग से मनायें क्योंकि बड़े अधिकारी से लेकर चपरासी तक को कहीं न कहीं किसी शिक्षक ने पढ़ाया और मार्गदर्शन दिया है लेकिन इससे तो स्पष्टतया प्रतीत होता है कि "शिक्षक दिवस" के अवसर पर शिक्षकों के अपमान की पूरी योजना को क्रियान्वित किया गया ।
वहीं दूसरी तरफ यह बड़ा प्रश्न है कि गांव गांव शहर बिजली की जो सप्लाई ससमय होनी चाहिए हुई नहीं तो क्या किसी पर कारवाई हुई ?? डाक्टर मरीज तो ठीक नहीं कर पाता मामला मेडिकल कॉलेज का है रेफर लिखकर पल्ला झाड़ लेता है तो क्या उसका निलम्बन कर दिया जाता है?? रोडवेज बस के न आने से जाने वाले यात्री प्राइवेट बसों से ज्यादा पैसा खर्चकर गनतव्य को चली जाती है तो किसी पर कारवाई हुई?? जल निगम सप्लाई "जल ही जीवन है" कि उपलब्धता नहीं करा पाई के साथ ऐसे तमाम प्रश्न हैं क्या उन सब पर कारवाई हुई?? यदि नहीं तो बलि का बकरा आज का प्राइमरी का मास्टर क्यों ??
कई बार या अब तो कहें बार-बार भ्रष्टाचार के व्याप्त युग में शिक्षक की छोटी-मोटी गलती होने पर अधिकारी उन पर तुरंत कार्रवाई कर देते हैं, इसके अलावा, शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य, घर-घर जाकर जनगणना, मतगणना, मिड डे मील, बीएलओ, हाउस होल्ड सर्वे, मलेरिया, कुष्ट और अन्य बीमारियों के रोगियों को खोजने की जिम्मेदारी या यूं कहें कई सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन हो सभी कामों के लिए शिक्षकों को ही पहली प्राथमिकता के तौर पर लगा दिया जाता है। यही वजह है कि दायित्व बंधनों में बंधकर अब शिक्षक शिक्षण कार्यों से सीमित हो गए हैं। आप सब बतायें क्या वास्तव में शिक्षकों की नियुक्ति इन्हीं सब कार्यों के लिए हुई है, या सरकार ने उन्हें स्कूल में पढ़ाने के लिए नौकरी दी है।
मुद्दे की बात करें तो खासकर, भारत देश में सम्मान के लिए शिक्षकों को खुद ही अपनी उपलब्धियों की कुंडली बनाकर विभागीय अधिकारियों को सौंपनी पड़ती है। शासन अपने अधिकारियों की नजरों को योग्य-अयोग्य शिक्षका का चयन करने के काबिल नहीं मानता, शायद इसीलिए शिक्षकों को उपलब्धियां गिनवाकर सम्मान की दौड़ में शामिल होना पड़ रहा है, जिससे मुझे लगता है वह सम्मान किसी अपमान से कम नहीं ।
हां एक बात और शिक्षा व्यवस्था का भी राजनीतिकरण हो चुका है। शिक्षा के व्यवसायीकरण का ही परिणाम है कि आज नियुक्ति से लेकर ट्रांसफर और प्रमोशन तक में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है, जिसका असर देश के भविष्य पर पड़ना तय है और तो और जैसा कि आये दिन समाचार पत्र व शोसल मिडिया के माध़्यमों से जानने, पढ़ने और सुनने को मिलता है कि बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, तो सोचने वाली बात है कि आखिर आगे चलकर विभाग की रूप रेखा क्या होगी ???
और क्या कहें दिल है कि मानता नहीं "मन की बात" निकल ही जाती है आज हम फ्री के होड़ में बिना किताब के बच्चों को परिपक्व बना रहे हैं, वहीं बिना सभी कक्षा के लिए शिक्षक और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के अभाव के साथ विद्यालयों को पानी, बिजली और दूसरी मूलभूत सुविधाओं के भी अभाव में प्राइवेट विद्यालयों के साथ सामनता करने की कोरी कल्पना मात्र के साथ परिषदीय शिक्षकों को बिना किसी ज्ञान परीक्षा के बच्चों को अर्थात निम्न बुद्धि, गैर जागरूरक अभिभावक, बच्चों की अनियमित स्थिति (जिस पर बेबस शिक्षक किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठा सकता है) और तमाम गैर शैक्षणिक कार्यों तथा राजनीतिक व्यक्ति ग्राम प्रधान से जंग के साथ विद्यालयों को सुचारू ढंग से बिना किसी बोझ के निजी विद्यालयों की तरह संचालित करें आखिर इन तमाम झंझावतों में आप सब बतायें सम्भव है?? यदि सम्भव है तो जैसा माननीय न्यायालय का आदेश है तो सभी अफसर, राजनेता अपने बच्चों का नामांकन करायें नजीर पेश करें हम सब स्वागत करते हैं वैसे प्रतिभाशाली बच्चों को ज्ञानवान बनाना आसान है पर सबको ज्ञानवान बनाना असम्भव ?
हम शिक्षकों पर बिना विचार किये प्रश्न तो खड़ा कर दिया जाता है लेकिन सबसे बड़ी बिडम्बना है कि लगातार बेरोक-टोक धड़ाधड़ प्राइवेट स्कूलों को मान्यता देने की प्रक्रिया जोरों पर इन सबके बावजूद 100 फिसदी नामांकन और गुणवत्ता बढ़ाने पर पुरा जोर इन सब विरोधाभासों में क्या सम्भव है ? इन सब झंझावतों में आज भी बिना किसी सम्मान के तमाम शिक्षक अपने स्कूलों में पूर्ण मनोयोग से महती भूमिका निभा रहे हैं, वैसे मैं यह नहीं कहता कि सभी शिक्षक साफ पाक हैं पर एक ही मछली तालाब को गन्दा करती है कुछ शिक्षक भी हमारे बीच का हमारा भाई ऐसा ही कर रहे हैं तो ऐसे शिक्षकों को निशाने पर लेकर कारवाई की प्रक्रिया होनी चाहिए ।
📌 MAN KI BAAT : विवादास्पद होता जा रहा शिक्षक सम्मान/पुरस्कार चयन आखिर क्यों ?? आशा है कि शिक्षक पुरस्कार चयन का विवाद इस दिन के अच्छाई को प्रभावित नहीं करेगा जो कि……………………यहीं क्लिक कर पढ़ें ।
वापस हम असली मुद्दे की बात करें तो क्या परिषदीय शिक्षक शैक्षिक गुणवत्ता से खिलवाड़ करते हैं, यदि हां तो मेरा मानना है की ज्ञान देने वाले और लेने वाले दोनों के पास हुनर व काबिलीयत होना चाहिए, अगर किसी को ऐसा नहीं लगता तो दम हो तो आगे बढ़कर सारे प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूलों के फ्री की व्यवस्था बंद करवाकर, सरकारी स्कूलों में कुछ फीस का निर्धारण करवाकर समाज के सभी वर्गों के बच्चों को सरकारी स्कूलों तक भेजें उसके बावजूद जब गुणवत्ता नहीं आये तो जो कहें वो मानने और सुनने को तैयार हैं, तो बताईये क्या ये किसी को स्वीकार है ???? हमें लगता है अर्थ के इस युग में ऐसा सम्भव प्रतीत नहीं होता इस कारण विद्यालय विद्या का मंदिर ना होकर प्रोफेशनल होता जा रहा, शिक्षक शिक्षक न होकर कर्मचारी बन गए और एक दिन का दिखावे का सम्मान अपमान बनता जा रहा ।
.....कहें तो ऐसा सम्मान नहीं चाहिए जो अपमानों से लबरेज हो ।
🚩🚩 जय शिक्षक जय भारत🚩🚩
आपका शिक्षक साथी
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शिक्षक दिवस के मौके पर सरकारें बेहतर अध्यापन कार्यों के लिए कई शिक्षकों का सम्मान आज कर रहीं है, ताकि शिक्षक और भी अच्छे ढंग से बच्चों को ज्ञान प्रदान कर सकें, लेकिन दुर्भाग्य है कि उस सम्मान को पाने के लिए शिक्षकों को खुद ही अपना आवेदन कुण्डली बनाकर देना पड़ता है। शिक्षक दिवस पर मिलने वाले राष्ट्रपति और राज्यपाल सम्मान के लिए उच्चाधिकारियों के समक्ष अपनी उपलब्लियां गिनवाना शिक्षकों की मजबूरी बन गई है। अच्छे शिक्षक होने के बावजूद सोर्स के बिना सम्मानित हो पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है । शिक्षक पूरी ईमानदारी और निष्ठा से बच्चों को पढ़ाते है, लेकिन महज एक दिन ही उनका सम्मान होता है, जबकि पूरे साल उन्हें कई अपमान सहने पड़ते हैं ।
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कुछ सवालों के साथ जबाब चाहिए - जहां एक ओर "शिक्षक दिवस" के अवसर पर सम्मान समारोह आयोजित कर पुरस्कार देने की प्रकिया चरम पर है वहीं उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में शिक्षक दिवस के ही दिन स्कूलों के निरीक्षण करवाये जा रहे हैं । मेरे सोच से परे है कि जब हम सब शिक्षक सभी गणमान्य और सम्मानित महानुभावों के दिवस को बड़े धूमधाम से मनाते बताते हैं तो क्या एक दिन ही सही शिक्षक दिवस पर स्कूलों के निरीक्षण की प्रकिया जो आज के दिन करावाये गये उसे न करवाये जाएं और न ही प्रश्न चिन्ह खड़े किये जाएं क्या यह सम्भव नहीं की सभी लोग शिक्षक सम्मान समारोह पूर्ण मनोयोग से मनायें क्योंकि बड़े अधिकारी से लेकर चपरासी तक को कहीं न कहीं किसी शिक्षक ने पढ़ाया और मार्गदर्शन दिया है लेकिन इससे तो स्पष्टतया प्रतीत होता है कि "शिक्षक दिवस" के अवसर पर शिक्षकों के अपमान की पूरी योजना को क्रियान्वित किया गया ।
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मुद्दे की बात करें तो खासकर, भारत देश में सम्मान के लिए शिक्षकों को खुद ही अपनी उपलब्धियों की कुंडली बनाकर विभागीय अधिकारियों को सौंपनी पड़ती है। शासन अपने अधिकारियों की नजरों को योग्य-अयोग्य शिक्षका का चयन करने के काबिल नहीं मानता, शायद इसीलिए शिक्षकों को उपलब्धियां गिनवाकर सम्मान की दौड़ में शामिल होना पड़ रहा है, जिससे मुझे लगता है वह सम्मान किसी अपमान से कम नहीं ।
हां एक बात और शिक्षा व्यवस्था का भी राजनीतिकरण हो चुका है। शिक्षा के व्यवसायीकरण का ही परिणाम है कि आज नियुक्ति से लेकर ट्रांसफर और प्रमोशन तक में राजनीतिक हस्तक्षेप किया जाता है, जिसका असर देश के भविष्य पर पड़ना तय है और तो और जैसा कि आये दिन समाचार पत्र व शोसल मिडिया के माध़्यमों से जानने, पढ़ने और सुनने को मिलता है कि बेसिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है, तो सोचने वाली बात है कि आखिर आगे चलकर विभाग की रूप रेखा क्या होगी ???
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📌 MAN KI BAAT : विवादास्पद होता जा रहा शिक्षक सम्मान/पुरस्कार चयन आखिर क्यों ?? आशा है कि शिक्षक पुरस्कार चयन का विवाद इस दिन के अच्छाई को प्रभावित नहीं करेगा जो कि……………………यहीं क्लिक कर पढ़ें ।
वापस हम असली मुद्दे की बात करें तो क्या परिषदीय शिक्षक शैक्षिक गुणवत्ता से खिलवाड़ करते हैं, यदि हां तो मेरा मानना है की ज्ञान देने वाले और लेने वाले दोनों के पास हुनर व काबिलीयत होना चाहिए, अगर किसी को ऐसा नहीं लगता तो दम हो तो आगे बढ़कर सारे प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूलों के फ्री की व्यवस्था बंद करवाकर, सरकारी स्कूलों में कुछ फीस का निर्धारण करवाकर समाज के सभी वर्गों के बच्चों को सरकारी स्कूलों तक भेजें उसके बावजूद जब गुणवत्ता नहीं आये तो जो कहें वो मानने और सुनने को तैयार हैं, तो बताईये क्या ये किसी को स्वीकार है ???? हमें लगता है अर्थ के इस युग में ऐसा सम्भव प्रतीत नहीं होता इस कारण विद्यालय विद्या का मंदिर ना होकर प्रोफेशनल होता जा रहा, शिक्षक शिक्षक न होकर कर्मचारी बन गए और एक दिन का दिखावे का सम्मान अपमान बनता जा रहा ।
.....कहें तो ऐसा सम्मान नहीं चाहिए जो अपमानों से लबरेज हो ।
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