लखनऊ. आज पूरे शहर में शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया गया।
शिक्षकों के सम्मान में जहां बच्चों ने केट काटे व भेंट दी वहीं तमाम एनजीओ
व सरकार ने भी शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय काम करने वाले शिक्षकों को
सम्मानित किया। लेकिन क्या ये सम्मान शिक्षकों के लिए काफी है।
इस सवाल के जबाव के लिए जब पत्रिका ने लखनऊ के तमाम शिक्षकों वा छात्रों से बात की तो ज्यादातर लोगों ने समाज मेेें आए इस परिवर्तन के पीछे आज के अर्थयुग को कारण माना। लोगों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में शिक्षकों के सम्मान में जो कमी आई है उसका मूल कारण है हमारे समाज की जरूतें व सिद्धांत का बदल जाना। लोगों का कहना है कि पहले समाज पर इतना आर्थिक दबाव नहीं था बच्चे पैसों के अभाव में भी शिक्षा प्राप्त कर लेते थे। शिक्षकों की भी मानसिकता भी इस तरह की होती थी कि वो छात्रों में गरीबी अमीरी को लेकर भेदभाव नहीं किया करते थे। जिसके चलते छात्र भी अपने गुरूओं का सम्मान करते थे।
एक आयुर्वेदिक अस्पताल के वैद उमेश तिवारी जी ने बताया कि अगर हम आज से दो या तीन दशक पहले की बात करें तो गुरू को भगवान के समान दर्जा दिया जाता था। लेकिन क्या आज के इस दौर में शिक्षकों का हमारे समाज में वो स्थान है जो पहले हुआ करता था। शायद नहीं आखिर इन कुछ सालों में ऐसा क्या बदलाव आया कि हमारे समाज में भगवान का दर्जा प्राप्ता शिक्षकों के सम्मान में इस कदर कमी आई कि अखबरों व न्यूज चैनकी की स्टोरी में छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ बत्तसलूकी करने यहां तक की मारपीट करने की खबरे छपने व दिखने लगी। इसका मूल कारण हैं समाज से हमारे संस्कार व सिद्धांत गायब होते जा रहे हैं। औऱ इन संस्कारों पर पैसा हावी होता जा रहा है। जो शिक्षकों के सम्मान पर हावी है।
वहीं एक कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में टीचर धर्मेंद्र का कहना है कि आज सामाजिक नैतिकता व पुराने संस्कारों के बल्कुल विपरीत चल रहा है आज यदि शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे पहली जरूरत पैसा है यदि आज आप के पाश पैसा नहीं है तो आप वद्यालय में प्रवेश भी नहीं कर सकते है। ऐसे आर्थिक युग में बच्चों से शिक्षकों के प्रति क्या वहीं पुराना सम्मान देख पाना संभव है। शायद नहीं और इस परिवर्तन के पीछे जितनी जिम्मेदारी समाज में परिवर्तन की है उतनी है शिक्षकों की है क्योंकि शिक्षकों ने भी अपने कर्तव्यों को निभाने में कमी की है नहीं आज ऐसी स्थिति नहीं होती
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इस सवाल के जबाव के लिए जब पत्रिका ने लखनऊ के तमाम शिक्षकों वा छात्रों से बात की तो ज्यादातर लोगों ने समाज मेेें आए इस परिवर्तन के पीछे आज के अर्थयुग को कारण माना। लोगों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में शिक्षकों के सम्मान में जो कमी आई है उसका मूल कारण है हमारे समाज की जरूतें व सिद्धांत का बदल जाना। लोगों का कहना है कि पहले समाज पर इतना आर्थिक दबाव नहीं था बच्चे पैसों के अभाव में भी शिक्षा प्राप्त कर लेते थे। शिक्षकों की भी मानसिकता भी इस तरह की होती थी कि वो छात्रों में गरीबी अमीरी को लेकर भेदभाव नहीं किया करते थे। जिसके चलते छात्र भी अपने गुरूओं का सम्मान करते थे।
एक आयुर्वेदिक अस्पताल के वैद उमेश तिवारी जी ने बताया कि अगर हम आज से दो या तीन दशक पहले की बात करें तो गुरू को भगवान के समान दर्जा दिया जाता था। लेकिन क्या आज के इस दौर में शिक्षकों का हमारे समाज में वो स्थान है जो पहले हुआ करता था। शायद नहीं आखिर इन कुछ सालों में ऐसा क्या बदलाव आया कि हमारे समाज में भगवान का दर्जा प्राप्ता शिक्षकों के सम्मान में इस कदर कमी आई कि अखबरों व न्यूज चैनकी की स्टोरी में छात्रों द्वारा शिक्षकों के साथ बत्तसलूकी करने यहां तक की मारपीट करने की खबरे छपने व दिखने लगी। इसका मूल कारण हैं समाज से हमारे संस्कार व सिद्धांत गायब होते जा रहे हैं। औऱ इन संस्कारों पर पैसा हावी होता जा रहा है। जो शिक्षकों के सम्मान पर हावी है।
वहीं एक कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में टीचर धर्मेंद्र का कहना है कि आज सामाजिक नैतिकता व पुराने संस्कारों के बल्कुल विपरीत चल रहा है आज यदि शिक्षा प्राप्त करने के लिए सबसे पहली जरूरत पैसा है यदि आज आप के पाश पैसा नहीं है तो आप वद्यालय में प्रवेश भी नहीं कर सकते है। ऐसे आर्थिक युग में बच्चों से शिक्षकों के प्रति क्या वहीं पुराना सम्मान देख पाना संभव है। शायद नहीं और इस परिवर्तन के पीछे जितनी जिम्मेदारी समाज में परिवर्तन की है उतनी है शिक्षकों की है क्योंकि शिक्षकों ने भी अपने कर्तव्यों को निभाने में कमी की है नहीं आज ऐसी स्थिति नहीं होती
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