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मुकदमे में बरी होने भर से नौकरी पक्की नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि किसी अभ्यर्थी के आपराधिक मामले में अदालत से बरी हो जाने के बाद भी नियुक्ति प्राधिकारी उसके अपराध के इतिहास व आचरण पर विचार कर उचित निर्णय ले सकता है।
इसी के साथ कोर्ट ने हत्या के प्रयास के आरोप में बरी दरोगा भर्ती के अभ्यर्थी को ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही राज्य सरकार को इस मामले में जिलाधिकारी बुलंदशहर की रिपोर्ट के आधार पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति वीके शुक्ल एवं न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील में एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसके तहत 2011 की दरोगा भर्ती में चयनित औरंगाबाद बुलंदशहर के विनय कुमार को ट्रेनिंग पर भेजने का अंतरिम आदेश देते हुए सरकार से जवाब मांगा था। याची हत्या के प्रयास के मुकदमे में गवाहों के पक्षद्रोही होने के कारण अदालत से बरी हो गया है।
स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने अपील के समर्थन में तर्क दिया कि एकलपीठ ने 2011 की पुलिस सेवा नियमावली के प्रावधान के विपरीत पर ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश देकर वैधानिक गलती की है। जबकि नियमानुसार चरित्र सत्यापन रिपोर्ट पर विचार के बाद ही चयनित अभ्यर्थी को प्रशिक्षण पर भेजने की व्यवस्था है। इस मामले में जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि याची गंभीर प्रकृति के अपराध में शामिल था और वह गुणदोष पर अपराध से बरी नहीं हुआ है।
अभ्यर्थी की ओर से कहा गया कि अंतरिम आदेश के खिलाफ अपील पोषणीय नहीं है। साथ ही ट्रेनिंग पर भेजने का एकल पीठ का आदेश याचिका के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। दो सदस्यीय खंडपीठ ने अंतरिम आदेश रद्द करते हुए कहा कि पुलिस बोर्ड जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर उचित निर्णय ले।
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