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भर्तियों की सीबीआइ जांच की मांग ने फिर पकड़ा जोर

 इलाहाबाद : उप्र लोकसेवा आयोग में हुई भर्तियों की सीबीआइ जांच की मांग के ठीक चार बरस होने जा रहे हैं। इस अंतराल में जांच की मांग कभी तेज तो कभी धीमी भी रही है, लेकिन प्रतियोगियों ने लंबे समय बाद भी यह रट नहीं छोड़ी। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका बार-बार भरोसा टूटता रहा है।
1‘आयोग की एक दवाई, सीबीआइ-सीबीआइ’ यह नारा पिछले वर्षो में प्रतियोगियों की जुबान पर रहा है और हर परीक्षा के पहले से दोहराया गया। सीबीआइ जांच की मांग की शुरुआत आयोग अध्यक्ष अनिल यादव की तैनाती के चंद माह बाद ही शुरू हो गई थी। आयोग में त्रिस्तरीय प्रणाली लागू होने के बाद 10 जुलाई 2013 को प्रतियोगी सड़क पर उतरे और तब तक आंदोलन चला, जब तक प्रस्ताव वापस नहीं हो गया। उस समय ‘दैनिक जागरण’ प्रतियोगियों की आवाज बना था। उस समय शुरू हुई मांग कुछ दिनों में धीमी पड़ गई, लेकिन तभी पीसीएस 2012 के परीक्षा परिणाम को लेकर चयनित अभ्यर्थियों पर सवाल उठे। यहां तक गनीमत रही दिसंबर 2013 में सम्मिलित अवर अधीनस्थ परीक्षा 2008 के रिजल्ट से असंतुष्ट दो जनवरी 2014 को उग्र प्रदर्शन किया। आंदोलन ठंडा होने पर 10 अगस्त 2014 को प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की ओर से अवनीश पांडेय ने हाईकोर्ट में सीबीआइ जांच के लिए जनहित याचिका दाखिल कर दी। 1उस समय से लेकर अब तक आयोग के लगभग हर परीक्षा परिणाम पर सवाल उठे, प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसे प्रश्न पूछे गए जिनके जवाब गलत थे,
कई परीक्षाओं के रिजल्ट संशोधन करने का हाईकोर्ट आदेश कर चुका है। यही नहीं पीसीएस 2015 में पहली बार प्रश्नपत्र लीक होने पर अभ्यर्थियों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। इसके बाद आरओ-एआरओ 2016 का पेपर भी लीक हुआ। आयोग ने प्रतियोगियों को नियमित अंतराल पर सड़क पर उतरने का मौका मुहैया कराया। इतने प्रकरण सामने आ गये कि आयोग में हुई भर्तियों की जांच होना ही एक विकल्प दिखा। हाईकोर्ट में आयोग की परीक्षाओं को लेकर करीब एक हजार याचिकाएं लंबित हैं। 1आयोग के पूर्व सचिव सुरेश कुमार सिंह के कार्यकाल में प्रतियोगियों और आयोग के बीच की दूरी मिटाने का काफी प्रयास हुआ। जिस बिंदु पर सवाल उठे आयोग ने सामने आकर उसे स्पष्ट किया।

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